________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
गुटिकामकरणम् ]
गोरक्षवटी
रस प्रकरण में देखिए ।
www.kobatirth.org
द्वितीयो भागः ।
कुर्यान्मोचरसान्वितं समजये
लोध्रं समङ्गारजाः ॥
चातुर्जातकचव्यजीरकयुगं,
व्योषारलूग्रन्थिकम् ।
(१३१६)ग्रहणीकपाटवटिका (यो.चिं.। गुटिका. ३) (१३१७) ग्रहणी शार्दूलवटिका (भै.र. प्र. चि. जातीफलं देवपुष्पमजाजीकुष्ठटङ्कणम् । विडन्त्वगेलाधत्तूरं फणिफेनसमं समम् ॥ प्रसारिणीरसेनैव संमद्ये वटिका कृता । यथा दोषानुपानेन सेविता ग्रहणीं हरेत् ॥ नानावर्णमतीसारं दारुणाञ्च प्रवाहिकाम् । नाना ग्रहणीशार्दूलवटिका ग्राहिणी परम् ॥
श्रीवृक्षांतिविषाजमोदयुगलं,
चूतास्थि पाठाम्बुदम् || यष्टी चेन्द्रयवालिकास्थिकवचा,
द्वासावनो तद्गुहान् ॥
आवध्य ग्रहणीकपाट टिका
नक्षप्रमाणान्भजेत् ।
साध्याया ग्रहणीविकाररुधिरा
तिसारविच्छित ||
चातुर्जात (तेजपात, दाल चीनी, इलायची, नागकेसर ) चत्र्य, सफेद जीरा, स्याहजीरा, सोंठ, मिर्च, पीपल, अरल (सोनापाठ) की छाल, पीपलामूल, बेलगिरी, अतीस, अजमोद, अजवायन,
की गुठली ( का गूदा ) पाठा ( जलजमनी), नागरमोथा, मुलैठी, इन्द्रयव, इम्लीके बीज, बच, लोध मजीठ और मोचरस समान भाग लेकर चूर्ण करके सबके समान गुड़ में मिलाकर एकएक कर्ष (१ । तोले) की गोलियां बना लीजिए |
यह 'ग्रहणी कपाट' नामक वटिका साध्यासाध्य ग्रहणो विकार और रक्तातिसारका नाश करती हैं।
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
[ ३७ ]
ग्रहणीगजेन्द्रवटिका (भै. र. र. सा. सं. (ग्रह) ( रस प्रकरण में देखिए )
जायफल, लौंग, जीरा, कूठ, सुहागेकी खील, बायबिडङ्ग, दारचीनी, इलायची, धतूरे के बीज और अफीम बराबर बराबर लेकर प्रसारिणी ( खीप) के रस में घोटकर गोलियां बना लीजिए ।
..
इन्हें यथा दोष अनुपान और उचित मात्रानुसार सेवन करनेसे ग्रहणी, अनेक वर्ण संयुक्त अतिसार और प्रबल प्रवाहिका, नष्ट होती है । इसका नाम " ग्रहणीशार्दूल वटिका " है । (१३१८) ग्रह नाशिनी गुटिका ( र. र. स. बा.रो.) राजीकरञ्जपुन्नाटशिरीषार्क निशाद्वयम् ।. प्रियंङ्गत्रिफलादारुहिंगुव्योषकुचन्दनम् ॥ मञ्जिष्ठोग्राजमूत्रं च गुटिका ग्रहणाशिनी । पाननस्याञ्जनालेपस्नानोद्वर्त्तनधूपनात् ॥
राई ( अथवा बाबची ), करञ्जकी गिरी, पवाड़ के बीज, सिरसकी छाल, अर्क (आक), हल्दी, दारूहल्दी, फूल प्रियङ्गु, त्रिफला ( हर्र, बहेड़ा, आमला ) देवद्वार, हींग, त्रिकुटा ( सोंठ, मिर्च, पीपल ), पतङ्ग, मजीठ और बचके महीन चूर्णको बकरी के मूत्र में पीसकर गोलियां बना लीजिए । इन्हें पान, नस्य, अञ्जन, लेप, स्नान, उद्वर्तन,
(मात्रा ६ माशे । तक्रके साथ प्रातः सायं और धूमद्वारा प्रयुक्त करनेसे ग्रहदोष नष्ट होता है ।
सेवन करें। )
इति गकरादि गुटिका प्रकरणम्
For Private And Personal