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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir रसप्रकरणम् ] द्वितीयो भागः। [४७१ ] इनके सेवनसे समस्त प्रकारके अर्श (बवासीर) तांबेका बारीक अर्थात् रेतीसे रिता हुवा चूर्ण नष्ट होते हैं। और नौसादर बराबर बराबर लेकर एकत्र मिलाकर पथ्य-सूरणका शाक और घृतयुक्त आहार ।। कूटें और फिर उसमें दोनोंके बराबर नीबूका रस अपथ्य-पेठा, उर्द, खीर, अत्यधिक परिश्रम, मिलाकर मिट्टीके पात्रमें भरकर रखदें। एक मास और धूप । पश्चात् तूतिया तैयार हो जायगा । (२६९०) तीक्ष्णमुखरसः (४) नोट-यदि नीबूका रस १ मास पश्चात् भी शेष रह जाय तो उसे धूपमें सुखा लेना चाहिये । (र. रा. मुं.; र. र.; धन्वं.; र. सा. सं.; __वृ. नि. र. । अर्श.) (२६९२) तुत्थभस्मविधिः (र. र. स. पू. ख. अ.२; आ. वे. प्र.। अ. १२) मृतमूताभ्रलोहातीक्ष्णं मुण्डं च गन्धकम् । लकुचद्रावगन्धाश्मटङ्कणेन समन्वितम् । मण्डूरञ्च समं ताप्यं मर्य कन्याद्रवैर्दिनम् ॥ निरुध्य मूषिकामध्ये म्रियते कौकटैः पुटैः ॥ अन्धमूषागतं पाच्यं त्रिदिनं तुपवह्निना। शुद्ध तूतियाको समान भाग गन्धक और चूर्णितं सितया मासं खादेत्पित्तार्शसाञ्जयेत् ॥ सुहागेके साथ मिलाकर लकुच ( बढ़ल )के रसमें रसस्तीक्ष्णमुखो नाम ह्यनुयोज्यं मधुत्रयम् ॥ | घोटकर कुक्कट पुटमें फंकनेसे उसकी भस्म बन पारद भस्म (अभावमें रससिन्दूर ), अभ्रक जाती है। भस्म, लोह भस्म, ताम्र भस्म, तीक्ष्णलोह भस्म, ! (२६९३) तमाम ( रसायनसार. ) मुण्डलोह भस्म, शुद्ध गन्धक, मण्डूर भस्म और मूतगन्धककज्जल्यां समं तुत्थं विमर्दयेत् । स्वर्णमाक्षिक भस्म समान भाग लेकर सबको एक मूतादै टङ्कणं दत्त्वा भावयेल्लकुचद्रवैः ।। दिन घृतकुमारीके रसमें घोटें और अन्धमूषामें बन्द भृत्वा कृप्यां पचेद् वह्नौ तीने मूतं समुद्धरेत् । करके तीन दिन तक तुषाग्निमें पकाएं, तत्पश्चात् गले सिन्दुरनामा स्यात् तुत्थभस्माऽप्यधस्तले।। उसके स्वांग शीतल होनेपर औषधको निकालकर अर्थ-पावभर शुद्ध पारद, पावभर शुद्ध पीसकर रक्खें। गन्धक, दोनोंकी कजली करके उसमें आधासेर - इसे घी, शहद और मिश्रीके साथ मिलाकर तूतिया डालकर घोटे । बाद आध पाव शुद्ध सुहागा सेवन करनेसे पित्तज अर्श (बवासीर) नष्ट होती है । डालकर बड़हरके काथकी भावना देकर सुखाले । (२६९१) तुत्थनिर्माणविधिः (रसायनसार) इस कजलीको शीशीमें भरकर प्रथमसे ही ताम्रस्य चूर्ण कुरु घर्षणीत तिब्राग्नि दे । दो दिनके बाद अग्नि लगाना बन्द स्तत्तुल्यमस्मिन्नवसादरश्च । । करे । स्वाङ्गशीतल होने पर शीशीके गलेपर सम्मेल्यनिम्बूकजलश्च तुल्यं | सिन्दूर रस मिलेगा और तल भागमें तूतियाकी मासेन तुत्थं स्वयमेव सिद्धयेत् ॥ भस्म मिलेगी। इसके गुण ताम्रभस्मके तुल्य हैं । For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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