SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 482
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [४७० ] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः। तकारादि द्राक्षागारमृदापयोजविसिनीकन्दान्विता चामृता। भस्म, शुद्ध गन्धक और स्वर्णमाक्षिक भस्म समान घृष्ट्वा यष्टिरसैः सिता मधुयुता गद्याणमात्रा वटी॥ भाग लेकर सबको घृतकुमारीके रसमें घोटकर पित्तं हन्ति च पित्तसम्भवगदान सर्वाश्च गोला बनाकर, सुखाकर, सम्पुटमें बन्द करके पित्तज्वराः। गजपुट में फेंक दीजिये। कासवासगलामयान्क्षयतृषादाहश्च शाष शम्।। इसके सेवनसे अर्श (बवासीर) नष्ट होती है । प्रज्ञापारमितैनिशीथसमये स्वप्ने प्रसादीकृतो।। ( मात्रा-२-३ रत्ती । ) नाम्ना तीक्ष्णमुखोरसेन्द्रप्रवरः श्रीनागवोधोदितः ... तीक्ष्ण लोहभस्म, ताम्रभस्म, स्वर्णभस्म, । (२६८९) तीक्ष्णमुखरमः ( ३.) । स्वर्णमाक्षिक भस्म, हरताल भस्म, गोदन्ती भस्म (र. र. स. । उं. खं. । अ. १५ ) और पारद (रससिन्दूर) समान भाग लेकर सबको नागं पारदगन्धकं त्रिलवणं वार्यर्कजं मेलयेएकत्र खरल करके मुनक्का, तालाबकी मिट्टी, कमल, देकैकं च पलं पलं त्रयमतः पश्चक्रमान्मर्दयेत् । मृणाल ( कमलनाल ), कमलकन्द, गिलोय, मुलैठी, सर्व तदिवसत्रयं तदनु तहत्त्वा पुटं भावनाः मिश्री और शहदमेंसे जिनका स्वरस मिल सके । कुर्यात्सत्रिफलाग्निवेतसरसैः पश्चाधिकविंशतिः।। उनके स्वरसके साथ, जो क्वाथ करने योग्य हों पश्चैतत् क्रमशस्ततो गुडभवैर्दत्तोस्थ वल्लो जलैउनके काथके साथ और मिट्टी तथा मिश्रीको । हन्त्य स्यखिलानि सूरणवृतैस्तस्यान८ गुने पानीमें घोलकर उसके साथ १-१ दिन । मस्मिन्हितम् । घोटकर ६-६ माषेकी गोलियां बना लीजिए। अर्केशः परिवर्यतामितिमुनिःश्रीवासुदेवोऽवद इनके सेवनसे पित, पित्तज समस्त रोग, स्कूष्माण्डीफलमाषपायसमतिव्यायाममर्कातपम्।। पित्तज्वर, खांसी, श्वास, गलरोग, क्षय, तृष्णा, दाह । सीसा भस्म, शुद्ध पारद और शुद्ध गन्धक और शोषका नाश होता है। १-१ पल (५--५ तोले) और तीनों लवण (सेंधा, ( व्यवहारिक मात्रा-३ रत्ती ।) सञ्चल और समुद्र लवण) ५ पल लेकर प्रथम (२६८८) तीक्ष्णमुखरसः (२) पारे गन्धककी कजली बना लीजिये और फिर ( र. र. स. । उ. खं. अ. १५) अन्य ओषधियोंका बारीक चूर्ण मिलाकर ३ दिन रसेन्द्रहेमार्कविडाऽऽलगोल तक आकके पत्तोंके रसमें घोटकर, गोला बनाकर सुरायसं लोहमलाभ्रगन्धाः । मुखाकर उसे सम्पुट में बन्द करके गजपुटमें फूंक ताप्यं च कन्यारसमर्दितीयं दीजिये । तपश्चात् उसे हर्र, बहेड़ा, आमला, पकापुटे तीक्ष्णमुखोऽशंसां स्यात् ।। चीता और अम्लवेतके काथ तथा गुड़के पानीकी पारद, स्वर्णभस्म, ताम्रभस्म, विडलवण, पृथक् पृथक् ५-५ भावना देकर ३-३ रत्तीकी हरताल, रोहिपतृण, लोहभस्म, मण्डूर भस्म, अभ्रक | गोलियां बना लीजिये । For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy