________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
[४६२]
भारत-भैषज्य-रत्नाकरः।
[तकारादि
-
क्षारके पानी, वा चूनेके पानीमें पकानेसे वह शुद्ध शुद्ध वर्की हरतालमें सुहागा, भैंसका घी और हो जाती है।
| शहद मिलाकर उसे १ दिन कुलथीके काथमें (२६७२) तालशोधनम्
घोटें । फिर ८ पल यह हरताल और १ पल ( शा. ध. सं. । म. अ. ११; यो. र. । प्र. भा.; (५ तोले ) छिलके-रहित अरण्डीके बीजोंकी वृ. यो. त. । त. ४१; भा. प्र. । पू. खं; पिदीको एकत्र मिलाकर अच्छी तरह घोटकर जौके __ आ. वे. प्र.। अ. ५; र. चिं. म. ।)
समान बत्तियां बनालें; और उन्हें सुखाकर कपरतालकं कणशः कृत्वा तच्चूर्ण काञ्जिके क्षिपेत्। मिट्टी की हुई आतशी शीशीमें भरदें। अब इसे दोलायन्त्रेण यामैकं ततः कूष्माण्डजद्रवैः ॥ बालुकायन्त्रमें रखकर बारह पहरकी अग्नि दें तिलतैलै पचेद्यामं यामं च त्रिफलाजले।
' और शीशीके स्वांगशीतल होनेपर उसके ऊपरवाले चूर्णोदके च यामैकं पक्कं शुध्यति तालकम् ॥ भागमें ( गलेके आसपास ) लगे हुवे हरताल वर्की हरतालके चावलोंके समान बारीक
सत्वको निकालकर सुरक्षित रक्खें । टुकड़े करके दोलायन्त्रविधिसे १-१ पहर काजी,
धातु और पाषाण (संखिया आदि )के सत्व पेटेके रस, तिलके तैल, त्रिफलाके काथ और
निकालनेकी सैकड़ों विधियां हैं परन्तु हमने केवल चूनेके पानीमें स्वेदन करनेसे वह शुद्ध हो जाती है।
कार्योपयोगी विधियोंका ही वर्णन किया है। (२६७३) तालसत्वपातनम् (१) ।
(र. प्र. सु. । अ. ६) (२६७४) तालसत्वम् (२) (र. चिं.म.।स्त.५) कुलत्थकाथसौभाग्यमाहिषाज्यमधुप्लुतम्। गोमूत्रे भावयेत्तालं दिनैकं शेरमात्रकम् । खल्वे सिस्वा च तत्तालं मर्दयेदेकवासरम् ।। चूर्णयित्वा प्रमाणेन तन्दुलानां न चाधिकम् ॥ निस्तुषीकृत्य चैरण्डबीजान्येव तु मर्दयेत् । हण्डिकायां निवेश्याथ काञ्जिकं तत्र दीयते । पलाष्टमानं तालस्य चाष्टमांशन्तु कारयेत् ॥ वस्त्रेणाच्छादयेदेत यथा चूर्ण न लिप्यते ॥ वीजान्येरण्डजान्येव क्षिप्त्वा चैकत्र मर्दयेत् ॥ तस्याई दीयते तालं चूर्ण तालोपरि क्षिपेत् । यवाभा गुटिका कार्याशुष्का कूप्यां निधाय च ॥ उपरिष्टात्पुनर्दिग्धं तेन चूर्णेन तालकम् ॥ वालुकायन्त्रमध्ये तु वह्नि द्वादशयामकम् । पालिकामुपरि प्राज्ञः पुनर्दत्वा मृदापि तम् । स्वाङ्गशीतं समुत्तार्य ऊर्ध्वगं सत्वमाहरेत् ॥ यावद्यामं ततो वह्नि कुर्याच्चुल्ल्याः समन्ततः ।। पाषाणधातुसत्वानां प्रकाराः सन्ति कोटिशः। पुनस्तेन प्रकारेण द्विवेलं तालकं तथा। यानि कार्यकराण्येव सत्वानि कथितानि वै॥ कदलीकन्दतोयेन पुनस्तालं च पेषयेत् ।।
१ रसप्रकाश सुधाकरके मतानुसार यवक्षार अथवा चाहे जो क्षार ले सकते है ।
२ सुहागा हरतालके बराबर और घृत तथा शहद इतना मिलाना चाहिये कि जिससे हरताल गोली बनने योग्य हो जाय ।।
३ छायामें सुखाना चाहिये । धूप में सूखना कठिन है ।
For Private And Personal