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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org भारत - भैषज्य रत्नाकरः । [ ४६० ] गृधस्याद्या मूढविकाराः, राजयक्ष्माद्याः शोषाः, किञ्चाशीतिसंख्यावातरोगाः, अनुपानभेदेन चत्वारिंशत्पित्तरोगाः, विंशतिसंख्याका कफजा रोगाः, दशरक्तजा रोगाः शीघ्रं प्रणश्यन्ति; जराव्याधिविनाशश्च भवति; दिव्यदेहः कान्तिधृतिमान् सत्वसंयुतः कामिनीकामदर्पनस्तार्क्ष्यदृष्टिः शूरो वदान्यश्च भवतीति सिद्धमते हरितालमारणम् | सिद्धाद्यैस्तु हरितालश्चतुविधः प्रोक्तः- बुगदादी १, गोदन्ती २, तबकी ३, पिण्डतालश्च ४ । एते पिण्डाख्यात् क्रमेण श्रेष्ठतरा ज्ञेयाः । शुद्धि-तबकी हरतालको भैंसके मूत्र, घृतकुमारी (ग्वारपाठा) के रस, चूने के पानी, सरफोंकाके रस, पेठे (कुम्हेड़े)के रस और नीबूके रसमें पृथक् पृथक् दोलायन्त्र विधिसे ६ - ६ पहर स्वेदित करनेसे वह शुद्ध हो जाती है । प्याज, मर्दनम्-पेठा, कागजी नीबू, धतूरा, सहदेवी, पलाश (ढाक ) की छाल, बेरीकी जड़की छाल, अद्रक, गोभी, नकछिकनी, हुलहुल, नागार्जुनी (दूधी), भंगरा, अरण्डमूल, ब्रह्मदण्डी, सफेद ल्हसन, स्वर्णवल्ली, काकमाची (मकोय), और बला (खरैटी); इनमें से प्रत्येकके रस या काथ और आक तथा सेहुण्ड (सेंड - थोहर ) के दूध में २१ - २१ दिन घोटें । इस प्रकार कुल औषधोंमें घोटनेमें ४४१ दिन अर्थात् १ वर्ष २ मास और २१ दिन लगते हैं। यदि इतना कष्ट सहन करना असम्भव हो तो हरेक चीजकी २१ - २१ भावना दे लेनी चाहियें । (धूपमें भावना देनेसे एक एक दिनमें २-३ भावना तक दी जा सकती हैं । ) तकारादि इस प्रकार मर्दन करनेके पश्चात् हरताल की टिकिया बनाकर धूप में सुखाना चाहिये और फिर एक मज़बूत हाडीपर २१ कपरौटी करके सुखाकर उसमें पीपल वृक्षकी राख एक अङ्गुल ऊंचाई तक भर दें और उसपर वह टिकिया रखकर हाण्डीके गले तक वही राख खूब दबा कर भरदें | तत्पश्चात् हाण्डीके मुखपर शराब ढककर उसके जोड़को गुड़ चूने बन्द करके ८ दिन तक क्रमशः मृदु, मध्यम और तीव्राग्निपर पकाएं। पश्चात् हाडीके स्वांग शीतल होनेपर उसमेंसे भस्मको निकालकर सुरक्षित रक्खें । Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir शिव, देव, गो, ब्राह्मण और वैद्यकी पूजा करके इसे १ चावल से १ रत्ती मात्रा तक यथोचित अनुपानोंके साथ सेवन करना चाहिये । इसके सेवनकालमें लवण, अम्ल और तीखे पदार्थ तथा तैलसे परहेज़ करना चाहिये । इसके सेवन से १ मण्डल या ३ सप्ताह में श्वित्रादि अठारह प्रकारके कुष्ट, समस्त रक्तविकार, १३ प्रकारके सन्निपात, अपस्मार, भगन्दर और नासूरादि सब प्रकार के महाव्रण ( घाव ), वातरक्त, उपदंश इत्यादि लिङ्गरोग, समस्त शीत और वायु विकार, श्वास, खांसी, वातव्याधि, दुष्ट पीनस, प्रतिश्याय, अर्श (बवासीर) इत्यादि आठ महारोग, अग्निमांद्य, संग्रहणी, मधुमेहादि समस्त प्रकारके प्रमेह, मेदोवृद्धि, गण्डमाला, अर्बुद, आमवात, गृध्रसी, राजयक्ष्मा, हर प्रकारका शोष, अस्सी प्रकारके वातरोग, ४० प्रकारके पित्त रोग, २० प्रकारके कफ रोग और १० प्रकारके रक्तज रोग तथा जरा ( वृद्धावस्था ) नष्ट होकर For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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