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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir रसप्रकरणम् द्वितीयो भागः। [४४१] Vvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvwwwwwwwwwwwwww. शुद्ध हरताल, शुद्ध गन्धक, शुद्ध पारद, शुद्ध | हो जाय तो चने बराबर गोलियां बनाकर रक्खें। हिंगुल (शंगरफ), सुहागेकी खील और त्रिकुटाका इनमेंसे १-१ गोली खांडके साथ देनेसे चूर्ण समान भाग लेकर प्रथम पारेगन्धककी शीतज्वर अवश्य नष्ट होता है । कजली बना लीजिये तत्पश्चात् अन्य ओषधियोंका चूर्ण मिलाकर १ दिन आदाके रसमें घोटकर मूंग (२६३८) तालकादिष्वराङ्कुशः (र.रा.सु.।ज्व.) के बराबर गोलियां बना लीजिये। तालकं शुक्तिकाचूर्ण तुल्यं तत्रोभयोरपि । ___इनमेंसे एक एक गोली प्रातःकाल सेवन नवमांशं च तुत्यं स्यान्मर्दयेत्कन्यकाद्वैः॥ करनेसे प्रसूति रोग, वातव्याधि, अग्निमांद्य संग्रहणी, तत्तु संशुष्कमुपलैर्वन्यैर्गजपुटे पचेत् । .. कफ, विषमज्वर और शीतज्वर नष्ट होता है। शीतं तचूर्णये पूर्ण गुञ्जामा सितायुतम् ।। (२६३७) तालकादिज्वराङ्कशः प्रभाते भक्षयेत् तेन याति शीतज्वरः क्षयम् । (र. रा. सुं. । ज्व. ) | वान्तिर्भवति कस्यापि कस्यापि न भवत्यपि॥ एक कर्ष भवेत्तालं द्विकर्ष तुत्थकं भवेत् । एकेन दिवसेनैव शीतज्वरहरं परम् ।। षट् कर्षा भृष्टशुक्तीनां चूर्णमेकत्र कारयेत् ॥ मध्याह्नसमये पथ्यं भक्तं शिखरिणीयुतम् ॥ धत्तरपत्रस्वरसैर्मर्दयेद्याममात्रकम् । शुद्ध वर्की हरताल ९ भाग, सीपका चूर्ण निधाय भाजने लौहे सम्मद्य क्रमशो बुधैः॥ ९ भाग और नीलाथोथा (तुत्थ) २ भाग लेकर उपर्यग्नेः स्थापयित्वा तद्रसं शोषयेद्भिषक् ॥ सबको (१ पहर) घीकुमार (ग्वारपाठा) के रसमें पुनः पर्युषितं मातगृहीत्वा किश्चिदमितः। घोटकर टिकिया बनाकर सुखा लें और उसे सम्पुट कोष्णं कृत्वा कल्कमेतत्ततो वठ्यः प्रसाधिताः।। में बन्द करके वन्य उपलों (अरने उपलों) की चणकममितास्तासामेका शर्करया सह। आगमें गजपुटमें फूंक दें । सम्पुटके स्वांगशीतल शीतज्वरं निहन्त्येष सर्व नास्त्यत्र संशयः॥ होनेपर उसमेंसे औषधको निकालकर पीसकर रक्खें। शुद्ध वर्की हरताल १ कर्ष (१। तोला ), इसमेंसे १ रत्ती चूर्ण मिश्रीके साथ प्रातःकाल शुद्ध नीलाथोथा (तुत्थ) २ कर्ष और सीपकी भस्म खिलानेसे शीतज्वर एकही दिनमें नष्ट हो जाता ६ कर्ष लेकर सबको १ पहर धतूरेके पत्तोंके | है। इससे किसी किसीको उल्टी हो जाती है। रसमें घोटकर लोहेके पात्र में डालकर अग्निपर रक्खें और जब तक सब रस न सूख जाय तब पथ्य-मध्याह्नमें शिखरन और भात खिलाएं। तक बराबर घोटते रहें । रस सूख जाने पर घोटना (नोट-रसकामधेनुका ज्वराधिकारका 'चिन्ताबन्द कर दें और औषधको कड़ाहीमें ही रहने दें। मणिरस' भी लगभग इसी के समान है उसमें __ दूसरे दिन उसमें थोड़ासा धतूरेका रस और हरताल १ भाग, तुत्थ २ भाग और चूना ३ भाग मिलाकर पुनः गर्म करें और गोलियां बनाने योग्य पड़ता है। शेष निर्माणविधि इसीके समान है।) भा० ५६ For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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