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भारत-भैषज्य रत्नाकरः
[तकारादि शुद्ध चांदीको दाडिम और कीकरके पत्तोंकी एतेन तारपत्राणि लेपयेच्छोषयेत्ततः । लुगदीमें रखकर शरावसम्पुट में बन्द करके बराह शरावसम्पुटे तेषामूर्खाधो गन्धकं क्षिपेत् ॥ पुटमें फंकनेसे ३ पुटमें चांदी भस्म हो जाती है। तारतुल्यं ततस्तानि रुवा गजपुटे पचेत् । (२६२१) तारमारणम् (२) (अनु.त.को.१) त्रिंशद्वनोत्पलैरेव स्वागशीतं समुद्धरेत् ॥ तारपत्राणि सूक्ष्माणि कृत्वा संशोध्य पूर्ववत् । चार भाग शुद्ध चांदीके सूक्ष्म पत्र, १ भाग तत्समौ सूतगन्धौ च काञ्जिकेन विलेपयेत् ॥ शुद्ध हरताल और ८ भाग गन्धक लेकर हरतालको स्थाल्यां पचेदिनं रुध्वा भस्म स्यात्तीक्ष्णवह्निना। जम्बोरी नीबूके रसमें पीसकर चांदीके पत्रोंपर लेप बालकैणाक्षि बिम्बोष्ठि स्वर्णकुम्भकुचे प्रिये ॥ करके सुखा लीजिये और फिर ऊपर नीचे आधा
चांदीके सूक्ष्म पत्रों को शुद्ध करके उनके आधा गन्धक रखकर उन्हें शराव सम्पुट में बन्द ऊपर उनके बराबर पारे गन्धककी कजलीको करके ३० अरने उपलों ( अरण्योत्पल )में गजपुटके काञ्जीमें पीसकर लेप कर दीजिये और फिर उन्हें गढ़ेमें फूंक दीजिये और स्वांगशीतल होने पर ४-५ कपरौटी की हुई हाण्डीमें बन्द करके १ चांदी भस्मको निकालकर सुरक्षित रखिये । दिन तीक्ष्णाग्नि पर पकाइये और स्वांग शीतल (नोट-यदि एक बारमें भस्म न हो जाय होनेपर भस्मको निकालकर सुरक्षित रखिये। तो फिर इसी प्रकार पुट देनी चाहिये । ) (२६२२) तारमारणम् (३) (वृ.यो.त.त.४१) (२६२४) तारमारणम् (५) (र.प्र.सु.अ.४) तारपत्राणि सूक्ष्माणि कृत्वा तत्तुल्ययोः पृथक् । भागमेकं तु रजतं सूतभागचतुष्टयम् । सतगन्धकयोस्तुल्यं तालयोः खल्वसंस्थयोः॥ मईयेदिनमेकं तु सततं निम्बुवारिणा ॥ कल्कं कृत्वा कुमार्याद्भिस्तेन तानि मलेपयेत्। पेषणाजायते पिष्टिदिनैकेन तु निश्चितम् । शरावसंपुटे रुद्भवा त्रिंशद्वन्योत्पलैः पुटेत् ॥ मूषामध्ये तु तां मुक्का ह्यधोवे गन्धकं न्यसेत् ॥ एवं रजतमाप्नोति मृतिं वारद्वयेन वै॥ बालुकायन्त्रमध्यस्थां दिनैकं तु दृढाग्निना।
पारा और गन्धक १-१ भाग तथा वर्की पाचितां तु प्रयत्नेन स्वाङ्गशीतलतां गताम् । हरताल २ भाग लेकर तीनोंको घृतकुमारीके रसमें तालेनाम्लेन सहितां मर्दितां हि शिलातले। घोटकर १ भाग चांदीके शुद्ध सूक्ष्मपत्रोंपर लेप कर ततो द्वादशवाराणि पुटान्यत्र प्रदापयेत् ॥ दीजिये और उन्हें शराव सम्पुटमें बन्द करके ३० अनेन विधिना सम्यग्रजतं म्रियते ध्रुवम् ॥ बन उपलों ( अरने उपलों )में फूंक दीजिये। इसी १ भाग शुद्ध चांदीके पत्र या चूर्ण और प्रकार २ पुट देनेसे चांदी भस्म हो जाती है। चार भाग पारेको एकत्र मिलाकर निरन्तर एक (२६२३) तारमारणम् (४) (वृ.यो.त.।त.४१) दिन नीबूके रसमें घोटें । इस प्रकार घोटनेसे एक तारपत्रं चतुर्भागं भागैकं शुद्धतालकम् । ही दिनमें दोनोंकी पिट्ठी हो जायगी । इस पिट्टीके एतज्जम्बीरजद्रावैः कल्कीकृत्यालकं भिषक | बराबर आमलासार गन्धकका चूर्ण लेकर उसमेंसे
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