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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org रसप्रकरणम् ] द्वितीयो भांगः | [ ४२१ ] शीतल होने पर ताम्र भस्मको निकालकर पीसकर | हुआ और चक्कर आने लगे, तबियत बहुत खराब रख लीजिये । रही । तब हमने उस भस्मको घृतकुमारीके रस में टिकिया बनाकर २१ बार गोमूत्र में बुझाई तब शुद्ध हुई । टिकिया बनानेका अभिप्राय यह है कि ताम्र भस्म बुझानेसे बरबाद न होगी । (२५८९) ताम्र भस्मामृतीकरणम् ( रसायनसार ) पञ्चामृतैरत्र कृते कषाय के विम कुर्यात् खलु भस्मचक्रिकाम् । पचेत्पुटे नाम गजे त्रिवारक मिमां वदन्ति मृतकृतिं पराम् ॥ ताम्र भस्मका अमृतीकरणअर्थ --- अमृतपञ्चक ( सोंठ, गिलोय, सफ़ेद मूसली, शतावर, गोखरू ) के बनाये हुए काथ में ताम्र भस्मको घोटकर टिकिया बनालें। खूब सूख जाने पर सम्पुटमें रखकर गजपुटमें फूंकदे । इसी प्रकार ३ बार संस्कार करनेको अमृतीकरण कहते हैं । इसे यथोचित अनुपान के साथ सेवन करनेसे परिणाम शूल, उदररोग, पाण्डु, ज्वर, गुल्म, लोह, यकृत्, क्षय, अग्निमांद्य, प्रमेह और अर्श (बवासीर) रोग नष्ट होता है । इससे दुष्ट संग्रहणीभी अवश्य मिट जाती है । इसे 'सोमनाथी ताम्र भस्म' कहते हैं । मात्रा - ६ रत्ती तक । नोट - ताम्र भस्मकी कुछ विधियां 'ताम्रमारणम्' नामसे दी गई हैं । (२५८८) ताम्र भस्मशुद्धि: ( रसायनसार ) यदि पर्याप्तविशुद्धं कथमपि न कृतं कृतं तु भस्मापि तवा तोमूत्रे निर्वाप्यं त्वेकविंशतिं वारान् ॥ अर्थ – यदि किसी वैद्य ने ताम्रकी पूर्ण शुद्धि नहीं करके ताम्र भस्म बना डाली हो तो, उस ताम्र भस्मको घृतकुमारीके रसमें घोटकर टिकिया बनाले | जब टिकिया खूब सूख जाय तब कलछामें रखकर शोधनार्थ भ्राष्ट्री में तपाकर इक्कीस बार गोमूत्र में बुझा दे । ऐसा करनेसे ताम्र भस्म शुद्ध हो जायगी । वान्ति, भ्रान्ति इत्यादि दोष निवृत हो जायेंगे । एक बार हमने “ सप्तैव वारांश्च पृथक् पृथक् वै” इस पाठका खयाल नहीं करके "त्रिधा त्रिधा विशुद्धि: स्यात्स्वर्णादिनां समासतः इस साधारण नियम के अनुसार ताम्रपत्रोंको उक्त तैल आदि वस्तुओंमें तीन तीन बार ही बुझाकर सात सेर ताम्र भस्म बना डाली; उस भस्मको हमने खाकर देखा तो खाते ही वमन 99 } Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir (२५९०) ताम्रभैरवो रसः (र.रा.सु. | कास.) विषं खदिरसारव करहाटं टङ्कणं तथा । व्योषं ताम्र शुद्धफेनं चणमात्रा वटी कृता ॥ नाशयेन्नात्र सन्देहस्तिमिरश्च यथा रविः ।। दीयते कासश्वासेषु पीनसे ग्रहणीकफे । ताम्रभैरव इत्येष ज्वराणाञ्च निकृन्तनः ॥ शुद्ध मीठा तेलिया, खैरसार, अकरकरा, सुहागेकी खोल, त्रिकुटा, ताम्रभस्म और अफीम समान भाग लेकर सबको महीन घोटकर चनेके बराबर गोलियां बना लीजिये । इनके सेवन से खांसी, श्वास, पोनस, ग्रहणी, कफ और वर नष्ट होते हैं । For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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