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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir रसप्रकरणम् ] द्वितीयो भागः। [ ४१५] इस भस्मको ३ रत्तीको मात्रानुसार सेवन हिङ्गुलोत्थ पारद मिलाकर ताम्बेके आधे नीम्बूके करानेसे श्वास, खांसी, क्षय, पाण्डु, अग्निमांद्य, रसमें धोटें । जब तीन पहर घोटले, तब सायङ्काल अरुचि, गुल्म, मूर्छा, तिल्ली, जिगर पक्तिशूल को बहुत होशियारीके साथ (जिसमें पारद पानीके और धातुगत ज्वर नष्ट होते हैं । साथ खरलसे बाहर न गिर जाय) जलसे धो डाले। (२५८३) ताम्रभस्मविधिः ( ५ ) ऐसा धोना चाहिए कि जिसमें नीम्बूकी खटाई ( रसायनसार.) बिल्कुल निकल जाय । बाद दूसरा नीम्बूका रस इत्युक्तरीत्या सुविशुद्धताम्र डालकर रात्रिभर रखदे, प्रातःकाल फिर तीन पहर पत्राणि खण्डानि विधाय कामम् । धोटे । इस प्रकार कमसे कम तीन दिन धोटे । तेषां समानं खलु हिङ्गलोत्थं फिर ताम्बे वो पारदके तुल्य शुद्ध की हुई आमला रसं समादाय च मर्दयेत ।। सार गन्धक डालकर कजली बनावे । उस कजली ताम्रार्द्धमानेन च निम्बुनीरं को कपरमिट्टी की हुई आतशी शीशीमें भरकर विनिक्षिपेन्मर्दनकाल एव । रससिन्दूरको विधिसे पकावे । यह स्मरण रहे यामत्रयं प्रत्यहमाविमर्थ कि जिस शीशीमें ४ सेर कजली आ सके नैम्बूकनीरच नवम्पदेयम् ॥ उसमें एक सेर कजली भरनी चाहिए; प्रयत्नतैश्चैव जलेन सायं अर्थात् पावभर ताम्र, पावभर पारद, आधा सेर प्रक्षालनीयं खलु ताम्रपत्रम् । | गन्धक इन तीनों चीजोंकी बनी हुई कजली (एक यथा न सूतस्तु परिसूतः स्यान्न सेर ) शीशीमें भरकर चार अहोरात्रकी अग्नि दे। चाम्लयोगः परिशेषितः स्यात् ।। ऐसा करनेसे स्वाङ्गशीतल होनेपर शीशीके तल ताभ्यां समश्च विशुद्धगन्ध भागमें पावभर ताम्रभस्म मिलेगी और गले में कुछ मावाप्य कार्या खलु कज्जली सा। कम पावभर रस सिन्दूर मिलेगा। बस, अब क्या ता काचकुप्यां शनकैनिधाय | चाहते हो ? रस सिन्दूर बनानेके लिए शीशी सिन्दूरयुक्त्या प्रपचेत् वैद्यः ॥ चढ़ानी ही पड़ती सो इस प्रकार करनेसे रस तले च तिष्ठेदिह ताम्रभस्म सिन्दूर भी बन गया और ताम्रभस्म मुफ्तमें मिल गले च सिन्दरसो विलयः। गई तो “ एक पन्थ दो काज" यह कहावत चरितार्थ हो गई । वैद्य लोग ताम्बेमें पारदको इस मत्यक्षिता ऽनेन हि किम्बदन्ति कारण नहीं दिया करते हैं कि गजपुटमें देनेसे एका क्रिया द्वयर्थफरी प्रसिद्धा ॥ पारा उड़ जायगा तो नुक्सान होगा, वह भय ताम्रभस्मविधिः अब नहीं करना चाहिये । क्यों कि पारदके अर्थ--पूर्वोक्त रीतिसे शुद्ध किये हुए तान- | योगसे ताम्रभस्म भी अच्छी बन जाती है, और पत्रों के छोटे छोटे टुकड़े बनाकर उनके समान | सिन्दूर रस भी तैयार हो जाता है ।५।। (र०सा०) For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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