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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra रसप्रकरणम् ] www.kobatirth.org द्वितीयो भागः । (२५६९) ताम्रपर्पटी (बृ. नि. र. यो. र. र. चं. | कास. ) मृतं ताम्र त्रिभागं च रसं गन्धं च तत्समम् । भागमेकं वत्सनाभं कज्जलीं खल्वमध्यगाम् || गोघृतेन कृतं कल्क लोहपात्रे विपाचयेत् । ढाल दर्कपत्रस्थां पर्पटी रससिद्धये ॥ गुञ्जाद्वयं त्रयं चैव पिप्पलीमधुसंयुतम् । त्रिसप्तरात्र योगेन रोगराजं च नाशयेत् ॥ आर्द्रस्य रसेनैव सन्निपातं नियच्छति । त्रिफलारससंयुक्ता सर्व पाण्डुं विनाशयेत् ॥ वातारितैलसंयुक्ता सर्वशूलनिवारिणीम् । कुमारीरसयोगेन वातपित्तोपशान्तिकृत् ॥ वाकुचीरससंयुक्ता सर्वदविनाशिनी । त्रिफलामधुसंयुक्ता सर्वमेह निवारिणी ॥ खदिरकाथपानेन कुष्ठाष्टादशनाशिनी । मन्थानभैरवेणोक्ता लोकानां हितकाम्यया ।। ताम्र भस्म, शुद्ध पारद और शुद्ध गन्धक ३- ३ भाग तथा शुद्ध वछनाग विष (मीठा तेलिया) १ भाग लेकर सबको घोटकर महीन कजली बना लीजिये फिर उसमें थोड़ासा गोघृत मिलाकर लुगदी बना लीजिये और उसे लोहपात्रमें निर्धूम अग्नि पर पिघला कर भूमि पर गोबर बिछाकर उस पर आक के पत्ते फैलाकर उनपर ढाल दीजिये और तुरन्त ही उसके ऊपर पुनः आकके पत्ते बिछाकर उनपर ताजा गोबर फैला दीजिये । स्वांग शीतल होने पर औषधको निकालकर अत्यन्त महीन पीसकर रक्खें । इसे २ - ३ रत्तीकी मात्रानुसार पीपल के चूर्ण भा० ५२ Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ ४०९ ] और शहद के साथ ३ सप्ताह तक सेवन कराने से राजयक्ष्मा रोग नष्ट हो जाता है । इसे अद्रकके रसके साथ देनेसे सन्निपात ज्वर, त्रिफला काथ साथ देनेसे हर प्रकारका पाण्डु: अरण्डके तैलके साथ देनेसे सर्व प्रकार के शूल, घृतकुमारी ( कुंवार पाठा) के रसके साथ देने से वातज तथा पित्तज रोग, बाबचीके रससे दाद, त्रिफला चूर्ण और शहद से प्रमेह तथा खैरके काथ के साथ देने १८ प्रकारके कुछ नष्ट होते हैं । (२५७०) ताम्रपर्पटी ( र. र.; धन्वं । वाजी.; र. का. धे । कास. ) रसगन्धकताम्राणां चूर्ण कृत्वा समांशिकम् । पुटपाकविध पक्वा मधुनालोड्य संलिहेत् ॥ सर्वरोगहरं चैतत्पर्पटाख्यं रसायनम् ॥ पारा, गन्धक और ताम्र भस्म समान भागलेकर कजली करके उसे लोहे के पात्र में जरासे घीके साथ निर्धूम अग्नि पर पिघलाकर पर्पटी बनाइये और फिर उसे सम्पुट में बन्द करके लघु पुट लगा दीजिए। ( पुट में अग्नि बहुत ही हल्की होनी चाहिये) इसे शहद के साथ सेवन करने से समस्त रोग नष्ट होते हैं । ( मात्रा - २ - ३ रत्ती | ) (२५७१) ताम्र भस्मनिरुत्थीकरणम् ( रसायनसार ) art frerrari ब्रवीमि ताम्रस्य यत्स्यादखिलो गुणोऽस्य । मित्रैः पुरःपञ्चमिरुत्थितं तद्भस्म प्रकुर्यात्परिमट्टनेन ॥ १ ॥ For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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