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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ ३९२] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः। [तकारादि __गन्धकको अद्रक, लकुच ( कटहल ) और (२५३२) तालकादिप्रयोगः (वा.भ.।उ.अ.१३) भंगरे से किसी एकके रसमें घोटकर समान भाग आलश्च सौवीरकमञ्जनश्च तांबेके बारीक पत्रों पर लेप कर दीजिए और ताभ्यां समं ताम्ररजश्च सूक्ष्मम् । फिर उन्हें सम्पुट में बन्द करके गजपुटकी अग्नि पिल्लेषु रोमाणि निषेवितोऽसौ दीजिए । इसी प्रकार बारबार पुट देकर ताम्र भस्म चूर्ण करोत्येकशलाकयाभिः॥ तैयार कर लीजिए। हरताल और सौवीराजन १-१ भाग तथा ताम्र चूर्ण २ भाग लेकर सबको एकत्र खरल यह ताम्र भस्म, अभ्रक भस्म और तुत्थ (नीला करके अत्यन्त महीन सुरमा बना लीजिए। थोथा) १०-१० निष्क ( ४ तो० २ माशे) इसे आंखमें लगानेसे पिल्ल रोग नष्ट होता लेकर सबको अच्छी तरह घोटकर मिट्टी या ताम्र और पलकोंके गिरे हुवे बाल पुनः निकल आते हैं। अथवा लोहेके पात्रमें डालकर मन्दाग्निपर रखिए और उसके ऊपर दूसरा ऐसा पात्र ढक दीजिए (२५३३) तालकाद्यञ्जनम् (वं.से. नेत्ररोगा.) कि जिसमें धूम्र निकलनेके लिए कुछ छिद्र हो । आलदारुवचापिष्टवा सुरसापत्रवारिणा । छायाशुष्ककृता वर्तिःक्लिन्नवर्त्मनिवारिणी॥ अब नीचे वाले पात्रमें थोड़ा थोड़ा गन्धक डालकर जलाना आरम्भ कीजिए । जब एक बारके डाले ____ हरताल, देवदारु और बच । सबको तुलसीके हुवे गन्धकका धूम्र निकल जाय तो पुनः डालना पत्तोंके रसमें घोटकर गोलियां बनाकर छाया चाहिये । इसी प्रकार जब ३० कर्ष (३७॥ तोले) सुखा लीजिए। गन्धक जल जाय तो पात्रके स्वांग शीतल होने एक गोलीको पानीमें घिसकर आंखमें आंजनेपर उसे नीचे उतार कर उसमें १ सेर पानी डाल- से क्लिन्नवर्त्म रोग नष्ट होता है। कर अच्छी तरह विलोडन कीजिए और फिर (२५३४) तिमिरनाशिनीवर्तिः(धन्वं.। चक्षु.) निथरनेके लिए रख दीजिए। जब पानी निथर कतकस्य फलं शङ्ख सैन्धवं व्युषणं वचा । जाय तो उसे धीरे धीरे नितारकर उसमें नीला फेनो रसाञ्जनं क्षौद्रं विडङ्गानि मनःशिला ॥ थोथा और सफेद सुरमेका चूर्ण १। १। तोला एषां वतिर्हन्ति काचं तिमिरं पटलन्तथा ॥ मिलाकर घोटिए और धूपमें सुखा लीजिए। ___निर्मलीके फल, शंख भस्म, सेंधा नमक, इसे घी, स्त्रीके दूध अथवा शहदमें मिलाकर त्रिकुटा, बच, समुद्रफेन, रसौत, बायबिडंग और आंखमें आंजनेसे काच ( मोतिया ), अर्म, पिल्ल, मनसिलके महीन चूर्णको शहदमें घोटकर बत्तियां अभिष्यन्द, अण और फूला नष्ट होता है । पात्रके बना लीजिए । नीचे जो गाद रह जाती है उसका लेप करनेसे यह वर्ति काच, तिमिर और पटल नामक दाद, किटिभ और पामादि नष्ट होते हैं। नेत्ररोगोंको नष्ट करती हैं। For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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