________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
[३८८]
भारत-भैषज्य-रत्नाकरः।
[तकारादि
त्रिफलेको ज़रा तैलमें भूनकर पीसकर (तैलमें । अयस्कान्त (चुम्बक )के पात्रमें रातको मिलाकर) विपादिका (पैरोंकी बिवाई) में बारबार भांगरेके रसमें पिसे हुए त्रिफलेका लेप कर लेप करनेसे बिवाई नष्ट होकर पैर कमलके समान दीजिए । प्रातःकाल उसे छुड़ाकर भंगरेके रसमें कोमल हो जाते हैं।
मिलाकर लेप करनेसे २१ दिनमें बाल काले हो (२५१५) त्रिफलादियोगः (र. र. र.।उप. ५)
जाते हैं और ५ मास तक सफेद नहीं होते । त्रिफलालोहचूर्ण तु कृष्णमृद्भङ्गजद्रवम । (२५१७) त्रिफलादिलेपः इक्षुदण्डद्रवं चैव मासं भाण्डे निरोधयेत् ॥ (वृ. नि. र.; वं. से.; यो. र.; ग. नि.; वं. तल्लेपाञ्जयेत्केशान् स्याद्यावन्मासपञ्चकम् ॥ मा. । विसर्प; शा. ध. । खं. ३ अ. ११)
त्रिफला, लोहेका चूर्ण, काली मिट्टी, भांगरे । त्रिफलापनकोशीरसमड़ाकरवीरकम् । का रस और ईखका रस मिट्टीके बरतनमें भरकर | नलमूलमनन्ता च लेपः श्लेष्मविसर्पहा ॥ उसके मुखपर शराव ढककर तथा उस पर कपरौटी त्रिफला, पनाख, खस, मजीठ, करवीर करके उसे भूमिमें गाढ़ दीजिए । इसे एक मास (कनेर ), नलकी जड़ और अनन्तमूलका समान पश्चात् निकालकर बालोंपर लेप करनेसे बाल काले भाग चूर्ण लेकर पानीमें पीसकर लेप करनेसे कफज हो जाते हैं और फिर ५ मास तक सफेद नहीं विसर्प नष्ट होता है । होते।
(२५१८) त्रिफलादिलेपः (वृ.नि.र.।त्वग्दोष.) ___ नोट-भूमिसे औषधको निकालकर अच्छी : त्रिफला नीलिकापत्रं लोहचूर्ण रसाञ्जनम् । तरह घोटकर छान लेना चाहिये । रातको बालों श्वेतगुञ्जां दन्तिदन्तभस्म तुल्यं च मार्कवम् ।। पर लगाकर अरण्डके पत्ते बांध देने चाहिये, मेषीदग्धेन सम्पिष्य स्थापयेल्लोहभाजने। .
और प्रातःकाल त्रिफलेके काढ़ेसे धोकर तेल लगा दिनमेकं ततो लिम्पेन्मुहाचित्रेष्वनक्रमात ॥ देना चाहिये । जब तक बाल अच्छी तरह काले श्चित्राण्यनेन लेपेन निजवर्ण त्यजन्ति वै॥ न हो जायं तब तक रोज़ इसी प्रकार लेप :
त्रिफला, नीलके पत्ते, लोहका चूर्ण, रसौत, करते रहें।
सफेद चौंटली, हाथीदांतकी भस्म और भंगरा भांगरेका रस और ईखका रस समस्त ओष
समान भाग लेकर सबको भेड़के दूधमें अच्छी धियोंसे २-२ गुना लेना चाहिये।
तरह घोटकर १ दिन लोहपात्रमें रक्खा रहने (२५१६) त्रिफलादियोगः (र.र.र.।उप.५) दीजिए, फिर चौड़े मुंहकी शीशी या बरनी आदिमें अयस्कान्तमये पात्रे रात्रौ लेप्यं फलत्रयम्। भरकर रख दीजिए। भृङ्गराजद्रवैःसार्ध प्रातः केशान् प्रलेपयेत् ॥ श्वेत कुष्ठ पर बारबार इसका लेप करनेसे एवं कुर्यात्रिसप्ताहं जायते पूर्ववस्फलम् ॥ वह नष्ट हो जाता है।
For Private And Personal