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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [३७४ ] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः। [तकारादि श्वासे सकासे खथ पाण्डुरोगे (२४६३) त्र्यूषणाचं घृतम् (ग.नि.।ग्रहणी०) हलीमके हृद्ग्रहणीप्रदोषे ।। त्र्यूषणत्रिफलाकल्के विल्वमात्रे गुडात्पलम् । त्रिकुटा (सोंठ, मिर्च, पीपल), हर्र, बहेड़ा, सर्पिषोऽष्टपलं पक्त्वामात्रांमन्दानलः पिबेत् ॥ आमला, खम्भारीके फल, मुनक्का, फालसेके फल, त्रिकुटा (सोंठ, मिर्च, पीपल) और त्रिफलाका पाठा, कटेली, गोखरु, बला (खरैटी), अतिबला कल्क आधा आधा पल ( २॥ २॥ तोले ) गुड़ (कंघी), ऋद्धि, छोटी इलायची, भुई आमला, १ पल और धी ४० तोले तथा पानी २ सेर कौंचके बीज, मेदा, महामेदा, मुलैठी, महुवेके फूल, एकत्र मिलाकर पानी जलने तक पकाइये और शालपर्णी, शतावर, जीवक और पृश्निपर्णीका कल्क | फिर घृतको छान लीजिए। १-१ कर्ष (१।–१। तोला), घी १ सेर, भैंसका इसे यथोचित मात्रानुसार पीनेसे मन्दाग्नि दही १ सेर और पानी ४ सेर। सबको एकत्र नष्ट होती है । ( मात्रा-१ तोले तक) मिलाकर पकाएं। (२४६४) त्र्यूषणाद्यं घृतम् इसे ५ तोले, २॥ तोले या ११ तोलेकी (ग. नि.।घृता.; यो. र.; च. सं.। चि. अ. २२) मात्रानुसार शहदमें मिलाकर सेवन करनेसे श्वास, त्र्यूषणं त्रिफलां द्राक्षां काश्मयं च परूषकम् । खांसी, पाण्डुरोग, हलीमक, हृद्रोग, और ग्रहणी द्वे पाठे देवदारुवद्धिःस्वगुप्तां चित्रकं शठीम्।। रोग नष्ट होता है। व्याघ्रीमामलकी मेदां काकनासां शतावरीम्। (२४६२) ज्यूषणादिघृतम् त्रिकण्टकं गुडूची च पिष्ट्वा कर्षसमान्घृतात् ।। (वृ. नि. र. । अति.; वृ. यो त.। त. ६४) । चतुःप्रस्थं चतुर्गुणे क्षीरे सिद्धं कासहरं पिबेत् । यषणा त्रिफला चैव चित्रको गजपिप्पली ज्वरगुल्मारुचिप्लीहशिरोहृत्पार्श्वशूलनुत् ॥ विल्वं कर्कटिका हिंस्रा विडङ्ग सनिदिग्धिकम्॥ | कामलार्शोऽनिलार्तिघ्नं क्षतशोषक्षयापहम् । घतपस्थं पचेदेभिर्गवां मूत्रे चतुर्गुणे। यूषणं नाम विख्यातमेतद्धतमनुत्तमम् ॥ त्रिकुटा ( सोंठ, मिर्च, पीपल ), हर्र, बहेड़ा, तत्पयोगं पिबेत्कोलं हन्यात्तेन प्रवाहिकाम् ॥ | | आमला, द्राक्षा ( मुनक्का ), खम्भारीके फल, ___ त्रिकुटा (सोंठ, मिर्च, पीपल), हर्र, बहेड़ा, | फालसा, दो प्रकारका पाठा, देवदारु, वृद्धि, आमला, चीता, गजपीपल, बेलगिरी, ककड़ी, कौंचके बीज, चीता, कचूर, कटैली, आमला, मेदा, कटेला, बायबिड़ङ्ग और कटेली प्रत्येक १॥ तोला | काकनासा, शतावर, गोखरु, और गिलोयका कल्क लेकर पानीके साथ पीस लें। तत्पश्चात् इस कल्क ११-१। तोला, दूध ४ सेर तथा घी १ सेर (८० और ४ सेर गोमूत्रके साथ १ सेर घी पकाएं। तोले ) लेकर सबको एकत्र मिलाकर पकाएं । इसे १। तोलेकी मात्रानुसार पीनेसे प्रवाहिका इसे यथोचित मात्रानुसार ( १ तोला तक ) नष्ट होती है। । पीनेसे खांसी, ज्वर, गुल्म, प्लीहा, शिरो-पीड़ा, For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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