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[३६८ ]
भारत-भैषज्य-रत्नाकरः।
[तकारादि
इसके सेवनसे नक्तान्ध्य (रतौंधा), नकुलान्ध्य, इसे यथोचित मात्रानुसार सेवन करनेसे तिमिर, आंखोंकी खुजली, रोहे, नेत्रस्राव, पटल, तिमिर, नेत्रस्राव, कामला, काच, नेत्रार्बुद, विसर्प, प्रदर, और अन्य कितने ही भयङ्कर नेत्ररोग नष्ट होते हैं। नेत्रकण्डू, सूजन, खालित्य (गंज), पलित [ बाल
इस घृतको पिलाना तथा नस्यद्वारा प्रयुक्त । सफेद होना], बालोंका गिरना, विषमज्वर, नेत्रकराना चाहिए।
फूला और अन्यान्य नेत्ररोग नष्ट होते हैं । (मात्रा-१ तोला । गर्म दूधमें डालकर पिलाएं) । (२४४६) त्रिफलादिघतम् (२४४५) त्रिफलावृतम् (मध्यम)
(वं. से.; वृं, मा. । नेत्र० ) (वै. र.; वृ. यो. त.; वं. से.; . मा.। नेत्ररोगा.)
फलत्रिकाभीरुकपायसिद्ध त्रिफला त्र्यूषणं द्राक्षा मधुकं कटुरोहिणी ।
__ कल्केन यष्टीमधुकांशयुक्तम् ।। प्रपौण्डरीकं सूक्ष्मैला विडङ्ग नागकेसरम् ॥
सर्पिःसमं क्षौद्रचतुर्थभागं नीलोत्पलं सारिवे द्वे चन्दनं रजनीद्वयम् ।
हन्यात्रिदोष तिमिरं भवन्तम् ।। कार्षिकैः पयसा तुल्यं त्रिगुणं त्रिफलारसम् ॥
त्रिफलेका काथ २ सेर, शतावरका रस घृतपस्थं पचेदेतत्सर्वनेत्ररुजापहम् ।
२ सेर, घी १ सेर, और मुलैठीका कल्क पावसेर तिमिरं दोषमास्रावं कामलां काचमर्बुदम् ।। वीसपै प्रदरं कण्डूं रक्तं श्वयथुमेव च ।
लेकर सबको एकत्र मिलाकर पकाइये; जब समस्त खालित्यं पलितं चैव केशानां पतनं तथा।।
| पानी जल जाय तो घीको छानकर उसमें २० तोले विषमज्वरमर्माणि शुक्रं चाशु व्यपोहति ।
शहद मिला लीजिए। अन्ये च बहवो रोगा नेत्रजा ये च मर्मजाः ॥
इसे सेवन करनेसे त्रिदोषज तिमिर रोग नष्ट तान्सर्वान्नाशयत्याशु भास्करस्तिमिरं यथा। न चैवास्मात्परं किश्चिदृषिभिः काश्यपादिभिः॥ (२४४७) त्रिफलादिघृतम् (सु. सं.। उत्तर.) दृष्टिप्रसादनं दृष्टं तथा स्यात्रैफलं घृतम् ॥ त्रिफलोशीरशम्पाककटुकातिविषान्वितैः ।
हर्र, बहेडा, आमला, त्रिकुटा सोंठ, मिर्च, शतावरीसप्तपर्णगुडूचीरजनीद्वयैः ।। पीपल ), मुनक्का, मुलैठी, कुटकी, पुण्डरिया, छोटी चित्रकत्रितामूपिटोलारिष्टवालकैः । इलायची, बायबिडंग, नागकेसर, नीलोत्पल, सारिवा, किराततिक्तकवचाविशालापनकोत्पलैः ।। कृष्णसारिया, चन्दन, हल्दी और दारुहल्दी। सारिवाद्वययष्ट्याहचविकारक्तचन्दनैः। प्रत्येकका कल्क १-१ कर्ष (१।-१। तोला), दुरालभापर्पटकत्रायमाणाटरूषकैः ॥ दूध १ सेर, और त्रिफलेका काथ ३ सेर तथा रास्नां कुङ्कममञ्जिष्ठामागधीनागरैस्तथा । घी १ सेर लेकर सबको एकत्र मिलाकर पकाइये। धात्रीफलरसैःसम्यग्द्विगुणै साधितं हविः ॥ जब समस्त पानी जल जाय तो घी को छानकर परिसर्पज्वरश्वासगुल्मकुष्ठनिवारणम् । रख लीजिए।
पाण्डुप्लीहाग्निमान्येभ्य एसदेवं परमं हितम् ।।
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