SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 375
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org द्वितीयो भागः । घृतप्रकरणम् ] सबके बराबर लेकर गोखरुके काथमें घोटकर गोलियां बना लीजिए । इन्हें दोषकाल और बलाबलके अनुसार सेवन करनेसे प्रमेह, मूत्राघात, बालरोग और उदर विकार नष्ट होते हैं। अथ तकारादिलेहप्रकरणम् (२४२९) त्रिफलापाकः (नपुंसकामृतार्णव । त. ७) प्रस्थार्द्ध त्रिफला चूर्ण शुद्धतोये विभावयेत् । चतुःपले घृते भये मन्दमन्देन वह्निना ॥ त्रिकटु गोक्षरु एला चित्रकं पुष्करं तथा । शाणद्वयप्रमाणेन मुस्तकं त्वक्पत्रजम् ।। निस्तुषं धान्यकं दद्यात्पलार्द्धं च प्रमाणतः । काश्मीरमश्मजं शुद्धं षण्मासञ्च प्रमाणतः । प्रस्थैकस्य सितायास्तु पाकं कृत्वा विधानतः । शीते मधु प्रदातव्यं वैकमितन्तथा ॥ कर्षद्वयमाणेन भोक्तव्यं च द्विसन्धययोः । नेत्ररोगशिरोरोगान्सर्वान्मेहांश्च नाशयेत् ॥ आधे प्रस्थ ( ४० तोले ) त्रिफला चूर्णको स्वच्छ पानी में भिगो दीजिए; जब वह कोमल हो जाय तो उसे पीसकर पिट्टीसी बना लीजिए और फिर ४ पल ( २० तोले) घीमें मन्दाग्नि पर भून लीजिए । तत्पश्चात् १ प्रस्थ ( ८० तोले ) खांडकी चाशनी करके उसमें यह त्रिफला और त्रिकुटा (सोंठ, मिर्च, पीपल), गोखरु, इलायची, चीता और पोखरमूलका चूर्ण २-२ शाण (१० माशे ); मोथा, दालचीनी, तेजपात और तुष ( भूसी) रहित धनिये का चूर्ण २॥ - २॥ तथा ७|| माशे शुद्ध शिलाजीत और | तोले केसर [ ३६३ ] इनके सेवन कालमें किसी प्रकारके भी परहेकी आवश्यकता नहीं हैं । ( मात्रा ३ माशे । अनुपान उष्ण जल ) इति तकारादिगुग्गुलु प्रकरणम् ॥ Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir मिला दीजिए और ठण्डा होने पर उसमें २० तो शहद मिलाइये । इसे प्रतिदिन प्रातः सायं २ कर्ष ( २ || तोले ) मात्रानुसार सेवन करने से समस्त नेत्ररोग, शिरोरोग और प्रमेह नष्ट होते हैं । (२४३०) त्रिफलावलेह : (बृ.नि.र. | अजी.) त्रिफलामुस्त विडङ्गैः कणया सितया समैः । स्थात्वरमज्ञ्जिरिवीजैर्लेहो भस्मकनाशनः ॥ हरे, बहेड़ा, आमला, मोथा, बायबिडंग, पीपल, अपामार्ग ( चिरचिटे ) के बीज और मिश्री समान भाग लेकर पीसकर शहद में ( अथवा मिश्रीकी चाशनी में ) मिलाकर अवलेह बना लीजिए । इसे सेवन करने से भस्मक रोग नष्ट होता है । इति तकारादिलेहप्रकरणम् ॥ अथ तकारादिघृतप्रकरणम् (२४३१) तण्डुलीयकं घृतम् (र. र.; वं. से.; भै. र.; धन्वं । विष. ) तण्डुलीयकमूलेन गृहधूमेन चैकतः । क्षीरेण सघृतं सिद्धं समस्तविषरोगनुत् ॥ चौलाई की अड़ और घरके धुवेंके कल्क तथा दूधके साथ पका हुवा घृत पीने से समस्त विषविकार नष्ट होते हैं । For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy