SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 355
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir चूर्णप्रकरणम् ] द्वितीयो भागः। [३४३] हृद्ग्रह और विर्षोंका नाश होता तथा अग्निवृद्धि | त्रिफलादिचूर्णम् (यो. र.; वं. से. । नेत्र.) होती है। रसप्रकरणमें देखिए । ( व्यवहारिक मात्रा ३ माशे) (२३५४) त्रिफलादिचूर्णम् (वं. से.। शू.) (२३५२) त्रिफलादिचूर्णम् | त्रिफलायास्तथा चूर्ण चूर्ण वा काललोहजम् । (हा. सं. । स्था. ३ अ. १०) शर्कराचूर्णसंयुक्तं सर्वशूलनिवारणम् ॥ रक्तातिसारे च प्रयोजनीयं त्रिफला (हर्र, बहेड़ा, आमला ) के चूर्ण रक्तप्रवाहे सरुजे सदाहे। अथवा तीक्ष्णलोहके चूर्णको समान भाग मिश्रीमें फलत्रिकञ्चैव विषा समङ्गा मिलाकर खानेसे सर्व प्रकारके शूल नष्ट होते हैं । सपर्पटं दाडिमधातुकीनाम्॥ (मात्रा-त्रिफलाचूर्ण ६ माशे। लोहचूर्ण । चूर्ण मधुशर्करया समेत माशा।) तथैव दध्ना सघतं सलेहम् । नोट-लोहचूर्ण शुद्ध लेना चाहिए, अथवा रक्तातिसारं रुधिरप्रवाह शुद्ध मण्डूर प्रयुक्त करना चाहिए। योनिप्रवाहं सततं स्त्रियश्च ॥ (२३५५) त्रिफलादिचूर्णम् (बृ.यो.त.;ग.नि.) निवारयत्याशु हितं नराणां त्रिफलारजःसमानं रजो रजन्या सितासमानेन । बालातिसारे प्रशमाययोग्यम् ॥ त्रिफला, अतीस, मजीठ, पित्तपापड़ा, अनार मधुना च लीढमेतत्पमेहनामापि नाशयति । त्रिफला और हल्दी का समान भाग चूर्ण दाना और धायके फूल । समान भाग लेकर चूर्ण एकत्र मिलाकर उसमें उसके बराबर मिश्री मिला बनाएं। लीजिए। ___ इसे मिश्री और शहद में अथवा दही और घीमें मिलाकर चाटनेसे पीड़ा और दाहयुक्त रक्तातिसार, प्रमेह नष्ट हो जाते हैं। इसे शहदके साथ सेवन करनेसे सर्व प्रकारके रक्तस्राव, रक्तप्रदर और बालकोंका अतिसार नष्ट (मात्रा-६ माशे।) होता है। (२३५६) त्रिफलादिचूर्णम् (२३५३) त्रिफलादिचूर्णम् । (वृ. नि. र.; ग. नि. । ज्व.) (यो.र.; वृ. नि.र.। ऊस्त.; वृं. मा.। आ.वा.) लिवावरातत्रिफलां पिप्पलीच समाक्षिकाम। त्रिफलाचव्यकटुकाग्रन्थि मधुना लिहेन् । कासे श्वासे च मधुना सर्पिषा च सुखी भवेत् ॥ ऊरुस्तम्भविनाशाय पुरं मूत्रेण वा पिवेत् ॥ त्रिफला और पीपल के चूर्णको शहदके साथ त्रिफला, चव, कुटकी, और पीपलामूल के चाटनेसे ज्वर, और शहद तथा घीके साथ चाटनेसे चूर्णको शहदके साथ चाटने अथवा गूगलको खांसी श्वास नष्ट होते हैं । गोमूत्रके साथ सेवन करनेसे ऊरुस्तम्भ रोग नष्ट ( मात्रा-३ से ६ माशे तक। घी १ तो. होता है। शहद ४ तोले ।) For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy