________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
[ ३३८ ]
भारत - भैषज्य रत्नाकरः
[ तकारादि
इसे गर्म पानी या जौके काथके साथ सेवन (२३३१) तेजोद्वादिदन्तधावन चूर्णम् । करनेसे सब प्रकारके गुल्म, शूल, अफारा और (वं. से. । मुख.) उदरविकार नष्ट होते हैं ।
( मात्रा - ३ माशे । ) (२३२९) तुम्बुर्वादिचूर्णम्
तेजोवा मागधीमूलं समङ्गा कटुका घनम् । पाठा ज्योतिष्मती लोध्रं दार्विकुष्ठञ्च चूर्णयेत् ॥ दन्तानां घर्षणं कण्डूरक्तस्रावरुजापहम् ॥
( वृ. नि. र. ग. नि.; वं. से.; वृं. मा. । उदर . ) च. सं. । चि. स्था. अ. ९ ) तुम्बुरुन्यभयाहिङ्ग पौष्करं लवणत्रयम् । पिबेद्यवाम्बुना वातशूलगुल्महरं परम् ॥+
चच, पीपलामूल, मजीठ, कुटकी, मोथा, पाठा, मालकंगनी, लोध, दारूहल्दी और कूठ समान भाग लेकर चूर्ण बना लीजिए ।
तुम्बुरु ( नैपाली धनिया ), हर्र, हींग, पोखरमूल, सैंधा, विडलवण और कालानमक । समान भाग लेकर चूर्ण बना लीजिए। इसे जोके पानी के साथ सेवन करने से वातजशूल और गुल्म नष्ट होता है।
इसका मञ्जन करनेसे मसूढ़ोंकी खुजली, रक्तस्राव और पीड़ा नष्ट होती है । (२३३२) पुषवीजादियोगः (ग.नि.मूत्रा.) त्रपु सैर्वास्वीजानि कुमुदं कृषकं बला | पुष्करस्य तु वीजानि पिवेद्राक्षारसेन तु ॥ एतेन मूत्रकृछ्राणि पैत्तिकानीतराणि च । अश्मरीशर्करा चैव वस्तिशूलञ्च शाम्यति ॥
(नोट- पिछला प्रयोग " तुम्बुर्वादिचूर्ण' इसी चरको प्रयोगका परिवर्द्धित रूप प्रतीत होता है | )
""
(२३३०) तुम्बुर्वादिचूर्णम् (हा.सं.स्था. ३ अ. ७) तुम्बरु ग्रन्थिकैरण्डव्योषं पथ्याजमोदकम् । सक्षारलवणोपेतं चूर्ण शुले कफात्मके ॥
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
तुम्बुरु ( नेपाली धनिया ), पीपला मूल, अरण्डमूल, त्रिकुटा (सोंठ, मिर्च, पीपल ), हरे, अजमोद, यवक्षार और सेंधानमक समान भाग लेकर चूर्ण बना लीजिए ।
खीरे और फूट ( ककड़ी भेद) के बीज, नीलोत्पल, बासा, खरैटी और कमलगट्टे समान भाग लेकर चूर्ण बना लीजिए ।
इस चूर्ण को द्राक्षाके रस ( ताज़ी द्राक्ष न मिले तो मुनक्का के शीतकषाय ) के साथ सेवन करनेसे पैत्तिक तथा अन्य सब प्रकारके मूत्रकृच्छ्र, अश्मरी, शर्करा और वस्तिशूल नष्ट होते हैं। ( मात्रा १ - १ | तोला । )
1
(२३३३) त्रपुषादियोगः (ग. नि. अश. ) पुसैव रुवीजानि हरिद्रे दारुसाद्दयम् ।
इसे ( गर्म पानी के साथ ) खाने से कफज शूल | तण्डुलं. दकपीतश्च हन्यादर्शो हि पित्तजाम् ॥ नष्ट होता है । खीरे और ककड़ी के बीज तथा हल्दी, दारु
( मात्रा २ - ३ माशा | )
हल्दी और देवद्वारके समान भाग मिश्रित चूर्णको
+ इस प्रयोगमें गदनिग्रह में अम्लवेतस अधिक है ।
For Private And Personal