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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir मिश्रप्रकरणम् ] द्वितीयो भागः। [ ३११] - - (प्र. वि. तैल १ तो. पानी ८ तो. लेना | रात्रि बीतने पर (ब्राह्म मुहूर्तमें ) जलपान चाहिए)। करनेसे खांसी, श्वास, अतिसार, ज्वर, पिडिका, (२१८५) जलधाराप्रयोगः (भा.प्र.म.खं.ज्वर.) कटिशूल, कुष्ट, मेद, मूत्राधात, उदररोग, अर्श (बवासीर) शोथ, गले या शिरसे स्राव होना उत्तानसुप्तस्य गभीरताम्रकांस्यादिपात्रे निहितश्च नाभौ।। (नज़ला और जुकाम) शिरशूल, गलेका दर्द, नेत्र शीताम्बुधारा बहुला पतन्ती | रोग, तथा अन्य वातज, पित्तज, कफज और श्रम जनित रोग नष्ट होते हैं । निहन्ति दाहं त्वरितं ज्वरश्च॥ रोगीको सीधा लिटाकर उसकी नाभि पर (लगभग १ शेर पानी पी लेना चाहिए।) ताम्र वा कांसीका खूब गहरा पात्र रखकर उसमें | (२१८८) जलप्रयोगः (वं. से. । रसा.) (कुछ देर तक) शीतल जलकी धारा छोडनेसे ज्वर विगतघननिशीथे प्रातरुत्थाय नित्यम् । और उसका सन्ताप नष्ट होता है। पिबति खलु नरो यो वाणरन्ध्रेण वारि ॥ (२१८६) जलनस्यम् (वं. से. । रसाय.) । स भवति मतिपूर्णश्चक्षुषा तायतुल्यो। बलिपलितविहीनस्सर्वरोगैविमुक्तः॥ व्यङ्गबलीपलितघ्नं पीनसवैस्वर्यकासशोथघ्नम्। रात्रि बीतने पर (ब्राह्म मुहूर्तमें) नित्य प्रति रजनीक्षयेम्बुनस्य रसायनं दृष्टिजननश्च ॥ नासिका द्वारा जलपान करनेसे बुद्धि और दृष्टिकी रात्रि बीतने पर (ब्राह्म महूर्तमें) पानीकी नस्य वृद्धि तथा बलिपलित और अन्य समस्त रोगोंका लेनेसे व्यङ्ग (चेहरेकी झाई), बलि (झुरीं) पलित, । नाश होता है। पीनस, वैस्वर्य (आवाजका खराब होना), खांसी १२१ | (२१८९) जलमजनमृतप्रतीकारः और श्वासका नाश होता तथा दृष्टि बढ़ती है। (वै. म. । प. । १७) यह रसायन प्रयोग है। वारिमज्जनमृतस्य विग्रह (२१८७) जलप्रयोगः (वं. से. । रसा.) तिन्तडीदलरसेन सेचितम् । कासश्वासातिसारज्वरपिटक आतपे धृतमथास्य चेन्द्रियेकटीकुष्ठमेदोविकारान। वाशु जीवितमवाप्नुयाधुवम् ॥ मूत्रघातोदराशेः श्वयथु पानीमें डूबकर मरे हुवे (अचेत हुवे) मनुगलशिरःस्रावशूलाक्षिरोगान् ।। ष्यके शरीरको तिन्तडीकके पत्तोंके रससे सेचन ये चान्ये वातपित्तश्रमजकफ--- करके धूपमें लिटा देनेसे शीघ्र ही चेत हो जाता है। • कृता व्याधयःसन्ति जन्तोः। (२१९०) जातीपत्रयोगः (ग. नि.। मुख.) तांस्तानभ्यासयोगादपन सञ्चवितैर्वतधृतैःप्रशान्ति यतिपयः पीतमन्ते निशायाः॥ बक्तामयो गच्छति जातिपत्रैः। For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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