SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 322
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [३१] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [जकारादि है और जब होशमें आता है तो बेचैनीके मारे | अपना पूज्य मानने लगते हैं। चौथे मासमें उसका चिल्लाता और रोता है। जब तक तैल सात्म्य शरीर अदृश्य हो जाता है अर्थात् उसे अन्य मनुनहीं होजाता तबतक नित्य यही दशा होती है। | प्य नहीं देख सकते । पांचवें मासमें आकाशइस प्रकार इस तेलको १ मास पर्यन्त सेवन करने गमनकी शक्ति प्राप्त हो जाती है, छठे मासमें सिद्धपुरुषोंसे भेंट होती है। सात मास तक सेवन से मनुष्य श्रुतधर हो जाता है अर्थात् वह जो करनेसे विष्णुके एकदिनके समान आयु प्राप्त होती कुछ सुनता है वह उसे कण्ठस्थ हो जाता है। है और यदि आठ मास तक इसका सेवन किया दो मास सेवन करनेसे सूर्य समान कान्ति हो जाती | जाय तो मनुष्य जीवनमुक्त हो जाता है। है। तीन मास सेवन करनेसे उसे देवता भी । इति जकारादिकल्पप्रकरणम् अथ जकारादिमिश्रप्रकरणम् (२१८३) जम्बीरद्रावः (यो. चि. । मिश्रा.) | चिकने मटकेमें भरकर उसका मुंह बन्द करके शतं च जम्बीररसं रामठं च पलद्वयम्। घोड़ेकी लीदमें दबा दीजिए; और २१ दिन सैन्धवं च विडङ्गश्च पृथक् दत्त्वा पलं पलम् ॥ पश्चात् निकालकर छानकर बोतलों में भरकर कार्क त्र्यूषणं पलमेकैकं सौवर्चल चतुष्टयम् । लगाकर रख दीजिए। यवानीका पलं चैकं सर्षपानां चतुष्टयम्॥ इसके सेवनसे यकृतोग, प्लीहा (तिल्ली) स्निग्धभाण्डे विनिक्षिप्य अश्वशालां निधापयेत् गुल्म, आम, विद्रधि, अष्टीला, और विशेषतः वात एकविंशदिनं यावत्ततः सर्व समुद्धरेत् ॥ गुल्म तथा शूल, अतिसार, पसलीका दर्द, हृच्छूल, सुचन्द्रे सुदिने लोके पूजयित्वा भिषग्गुरून् । नाभिशूल, कब्ज, अफारा और अन्य उदरविकार यकृत्प्लीहामगुल्मे च विद्रध्यष्ठीलिकादयः॥ तथा वातज और कफज रोग नष्ट होते हैं। वातगुल्ममतीसारं शूलं पाचहृदामयम् । (मात्रा-६ माशे । पानीमें मिलाकर पीना चाहिए।) नाभिशूलं विबन्धे च आध्मानश्च गदोदरम् ॥ नश्यन्ति तस्य शीघ्रण वातश्लेष्मामयाश्च ये । (२१८४) जलतैलप्रयोगः (वै. म. । प. ६) जीर्यन्ते तस्य कोष्ठे तु जम्बीरीद्रवसेवनात् ॥ पूर्वयुरानीतसुरक्षितं जलं प्रभातकाले प्रपिबेत्सतैलम् । जम्बीरी नीबूका रस १०० पल (६। सेर), . चिरन्तनं द्राक् शमयेत् सुघोरं हींग २ पल, सेंधानमक, बायबिडंग, सोंठ, मिर्च । प्रवाहणं रक्तकफान्वितश्च ॥ और पीपल १-१ पल (५-५ तोले), सौवर्चल पहिले दिनके रक्खे हुवे बासी पानी को (कालानमक) चार पल,अजवायन १ पल,और सरसों प्रातःकाल तैलमें मिलाकर पीनेसे पुराना रक्तातिसार ४ पल लेकर कूटने योग्य चीजोंको कुटवा कर सबको | और कफातिसार अत्यन्त शीघ्र नष्ट हो जाता है। For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy