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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ३००.] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः। जकारादि २-३ रत्ती पानमें रखकर देनेसे तुरन्त पसीना चातुर्थिक या अन्य किसी ज्वरमें भी इसमें से आता है और चातुर्थिकादि विषम ज्वर रुक जाते १ माशा औषध देनेसे वर तुरन्त उतर जाता है। हैं तथा सन्निपात नष्ट होता है । वर उतर जानेके बाद मुंगका यूष और (२१५४) ज्वरसिंहरसः भातका पथ्य देना चाहिए। (र. रा. मुं.; वै. क. द्रु. । ज्व.) (नोट-----मात्रा अधिक लिखी है, विचारपारदं गन्धकं तालं भल्लातकमथैव च । पूर्वक देना चाहिए।) वजीक्षीरसमायुक्तमेकत्र च विमर्दयेत् ॥ | (२१५५) ज्वरहरो रसः (र.का.धे.अ.१) मृत्तिकाभाजने स्थाप्यं मुद्रितव्यं विचक्षणैः। रसं गन्धं विषं तानं नैपालं गुग्गुलुं तथा । अग्नि प्रज्वालयेत्तत्र प्रहरद्वयसंख्यया ॥ गुटी रक्तिमिता क्षौद्रयुक्ता सर्वज्वरापहा ॥ शीतलं खल्लयेत्तत्र भावना च प्रदीयते । पारा, गन्धक, बछनाग, नैपालीताम्रकी भस्म भङ्गराजरसैरत्र गण्डदभिवै रसैः॥ और गूगल समान भाग लेकर प्रथम पारे गन्धककी चित्रकस्य रसेनापि भावना दीयते पुनः। कजली बना लीजिए तत्पश्चात् अन्य औषधे पश्चात्तं चूर्णयेत् यत्नात्कूपिकायां च धारयेत्॥ मिलाकर शहदके साथ घोटकर १-१ रत्तीकी ज्वरमुत्पद्यते यस्य चतुर्थे चापरे पुनः। गोलियां बना लीजिए। मापैकश्च रसो देयं तत्क्षणान्नाशयेज्ज्वरम् ।। इनके सेवनसे सर्व प्रकारके ज्वर नष्ट होते हैं । ज्वरे शान्ते परं पथ्यं देयं मुद्गौदनं पयः ॥ पारा, गन्धक, भिलावा और हरताल समान (१९५६) ज्वरहारी रसः (र.का.धे.।ज्वर.) भाग लेकर प्रथम पारे और गन्धककी कजली | एकवर्णदृषोन्मूत्रघटे तुत्थालकं पलम् । बना लीजिए और फिर उसमें अन्य दोनों ओषधियां | कथनाच्छुष्कं तचूर्ण ज्वरहारी रसो भवेत्॥ मिलाकर थोहरके दूधमें अच्छी तरह घोटिए और नवज्वरे तथा जीणे गुञ्जामानेन दीयते। फिर उसका गोला बनाकर उसे मिट्टीके पात्रमें उक्तानुपानसंयुक्तः सर्वज्वरहरः परः॥६०७।। रखकर उसके मुंहको शरावसे बन्द करके ऊपर ३-४ इकरंगके बैलके १६ सेर मूत्रमें ५-५ तोले कपरमिट्टी कर दीजिए । जब यह सम्पुट सूख तूतिया और हरतालको इतना पकाइये कि समस्त जाय तो उसे चूल्हे पर रखकर नीचे २ पहर तक : मूत्र शुष्क हो जाय, तब उस औषधको पीसकर अग्नि जलाइये । जब सम्पुट स्वांग शीतल हो जाय रख लीजिए, बस " वरहारी' रस तैयार है। तो उसमेंसे औषध निकाल कर उसे भंगरा, और इसे १ रत्तीको मात्रानुसार मिश्रीके साथ बड़ी दुबके रस तथा चीतेके क्वाथकी भावना देकर मिलाकर देनेसे नवीन ज्वर तथा जीर्ण ज्वर आदि सुखाकर शीशीमें भरकर रखिए । सब प्रकारके घर नष्ट होते हैं। १ भृङ्गराजरसैरण्डेति पाठान्तरम । For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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