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रेसपकरणम् ]
द्वितीयो भागः।
[२९९
निराचरीकति समस्तरोगान्
दशगुण गन्धकजारितसिन्दूर रसकी तो बात ही योगानुसारेण शतत्रि के पम् । । क्या है ? शत-गुणगन्धकजारित सिन्दूर रस सश्चस्करीति प्रबला बलानां ।
भी परिश्रमसे साध्य हो सकता है इस बातको बालाबलानामपि कायमेषा। गन्धकजारणप्रकरणमें लिख चुका हूं। ज्वरके लिए तोप
(रसायनसारसे उद्धृत ) अर्थ-पद्गुण गन्धक जारित विष (२१५३) ज्वरशलहरो रसः चन्द्रोदयः ", अथवा दशगुण गन्धक जारित (र. रा. सुं.; भै. र. । रसें. चि. । अ. ९) सुवर्णसिन्दूरका बनाया हुआ “विप स्वर्ण सिन्दूर, रसगन्धकको कृत्वा कज्जलीं भाण्डमध्यगाम् । अथवा " दशगुण गन्धक जारित मल्ल सिन्दूर, तत्राधोवदनां त.म्रपात्री सन्रुध्ध शोषयेत् ॥ इन चारों से कोईसा क्यों न हो सबका नाम पद ङ्गुष्ठप्रमाणेन चुल्यां ज्वालेन तां देहत् । " ज्वर शतनी " तोप है; अर्थात् परके उद्याने यामद्वां ततस्तत्स्थं रसपात्रं समाहरेत् ॥ के लिए ये चारों प्रयोग तोपके समान हैं। इनकी चूर्णयेद्रक्तियुगलं तृतयं वा विचक्षणः । खुराक एक रत्तीसे दो रत्ती तक तरुण पुरुषके ताम्बूलीदल योगेन दद्यात्सर्वज्वरेष्वमुम् ॥ लिये है। सन्निपात आदि त काल मारक व्याधियों में जीरसैन्धवसंलिसवताय वरिणे हितम् । इनका प्रयक्ष फल देखा गया है । हैजा, अति- स्वेद द्गमो भवत्येव देवि सर्वेषु पाप्मसु ॥ .. सार, आदि व्याधियां तो एक दो ही खुराकमें चतुर्थिकादोन विमानसमागामिनं ज्वरम् । जाने कहाँ चली जाती हैं । यदि इस तोपके साधारणं सनिपा। जयत्येव न संशयः॥ छोड़ने पर भी रोगीके प्राण न बचें तो उस रोगाकी समान भाग पार और गन्धककी कजली मृत्यु अन्य योगसे टल भी नहीं सकती । कास करके उसे तीन चार कपरौटी की हुई हांडीमें श्वास साधारण ज्वर आदि रोगों में भी अपने रखकर उसके ऊपर उतने ही वजनकी शुद्ध तांबे अनुपानके साथ पाव रत्ती देनेसे तत्काल काम की कटोरी ढक दीजिए और जोडको गुड़ चूनेसे करती है । और जो अत्यन्त दुबै ठ बाल वृद्ध अच्छी तरह बन्द करके सुखाकर हाण्डीको चूल्हे अबला आदि जन इनमेंसे किसी एकको एक एक पर चढ़ा दी जए। और उसके नीचे २ पहर तक चावल प्रतिदिन सेवन किया करें तो उनके शरीर पैरके अंगूठेके बराबर मोटी लकड़ी जलाइये । को भी दिनोदिन संस्कारयुक्त ( नया ) कर देती तत्पश्चात् हाण्डीके स्वांग शीतल हो जाने पर है । वैद्य लोगों को यह फिक्र नहीं करना चाहिए, उसमेंसे कटोरी सहित समस्त औषधको निकाल कि यह शतघ्नी कैसे बनेगी? यद्यपि चन्द्रोदय कर पीस लीजिए। बनानेमें तो अपश्य भारी परिश्रम है क्यों कि जीरे और सेंधा नमकके 'चूर्णको पानीमें बुभुक्षित पारदमें बहुत दिन लग जाते हैं तथापि । पीसकर रोगीके मुंहके भीतर लेप करके इस रसमेंसे
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