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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir कषायप्रकरणम् ] द्वितीयो भागः। [१७] (१२११) गोकण्टकादि क्वाथ: मूल सहित गोखरूके काथमें मिश्री और (वृ. नि. र.; यो. र. । अति.) | शहद मिलाकर पीनेसे मूत्रकृळू और उष्णवात गोकण्टकगुहाव्याघ्रीकषायं सुशतं पिबेत् । । (सूजाक) नष्ट होते हैं। आमश्लेष्मातिसारघ्नं दीपनं पाचनं परम् ॥ (१२१५) गोक्षुरक्वाथः (यो. र.। मू. कृ.) गोखरू, पृष्टपर्णी और कटहलीका काथ पीनेसे | काथो गोक्षुरबीजानां यवक्षारयुतः सदा । आमातिसार (कच्चे दस्त) और श्लेष्मातिसार नष्ट मूत्रकृच्छं शकृज्जातं पीतः शीघ्रं निवारयेत् ।। होता है । यह काथ अत्यन्त दीपन पाचन है । | गोखरूके काथमें यवक्षार मिलाकर पीनेसे (१२१२) गोकण्टकादिभिःसिद्धपयःमल रोकनेसे उत्पन्न मूत्रकृळू शीव नष्ट हो जाता है। (वा. भ. । चि. स्था.। र. पि. चि.) (प्र० वि० यवक्षार १ मा० मिलाना चाहिए।) गोकण्टकाभीरुशतं पणिनीभिस्तथा पयः। (१२१६) गोक्षर काथः (व. यो. त.) हन्त्याशु रक्तं सरुजं विशेषान्मूत्रमार्गगान् ॥ पीतो गोकण्टककाथः सशिलाजतुकौशिकः। गोखरू और शतावरी तथा शालपर्णी, पृष्ठ मूत्रकृच्छ्रान्मूत्रशुक्रान्मूत्रोत्संगाद्विमुच्यते ॥ पर्णी, मुद्गपणी और माषपर्णीसे सिद्ध दुग्ध वेदना ___ गोखरूके काथमें शिलाजीत और गूगल युक्त रक्तपित्त और विशेषतः मूत्र मार्गसे जाने वाले मिलाकर पीनेसे मूत्रकृष्ठ. मूत्रशुक्र और मूत्राधात रक्तपित्तको अत्यन्त शीघ्र नष्ट कर देता है ।। (प्र० वि० २० तोले दूधमें २॥ तोले (पेशाब बन्द होना )का नाश होता है । औषध और ८० तोले पानी मिलाकर दुग्ध शेष (प्र० वि० गूगल २ माशे और शिलाजीत रहने तक मन्दाग्निसे पकाना चाहिए ।) | ४ रत्ती मिलानी चाहिए ।) (१२१३) गोकर्णादि योगः (वै. म. प. ६.) (१२१७) गोक्षुरादि काथः गोकर्णत्वङमुस्तानमस्करीधातकीकुटजसिद्धम्। __(ग. नि. । प्र० अ०) .. ज्वरातिसारंजयति जलं चतुः पञ्चषड्भिर्दिवसैः।। गोक्षुरो वंशसारश्च कासमर्दनलाडिजः । ___ आसगन्ध दालचीनी, नागरमोथा, लजालु | काथः पित्तप्रमेहं च निहन्ति सितया सह ।। (अथवा सफेद दूर्वा) धायके फूल और कुड़ेकी । गोखरू, बंसलोचन, कसौंदी और नलके छालका काथ पीनेसे ५, ६ दिनमें ज्यरातिसार नष्ट | काथमें मिश्री डालकर पीनेसे पित्तज प्रमेहका नाश हो जाता है। होता है । (१२१४) गोक्षुरकाथः (यो. र.। मू. कृ.) (प्र० वि० मिश्री काथसे चौथाई डालनी समूलगोक्षुरकाथः सितामाक्षिकसंयुतः। | चाहिए और बंसलोचन काथमें पीसकर प्रक्षेप नाशयेन्मूत्रकृच्छाणि तथा चोष्णसमीरणम् ॥ । रूपसे डालना उचित प्रतीत होता है । भा०.३ For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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