SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 304
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [२९२] भारत-मैषज्य-रस्नाकरः [जकारादि उशीरं चित्रकं देवकाष्ठश्च सपटोलकम्॥ कटेलीके फल, कटेलीकी जड, कचूर, तेजपात, जीवकर्षभकाजाज्यस्तालीसं वंशलोचना। त्रिकुटा ( सोंठ, मिर्च, पीपल ), गिलोयका सत, कण्टकार्या फलं मूलं शठीपत्रं कटुत्रयम् । धनिया, कुटकी, पित्तपापड़ा, मोथा, सुगन्ध बाला, गुडूचीसत्वधन्याकं कटुका क्षेत्रपर्पटी। वेलगिरी और मुलैठी समान भाग; काला जीरा ४ मुस्तकं बालकं विल्वं यष्टीमधु समं समम् ॥ भाग, तथा तालपुष्प, दण्डोत्पला (सहदेवी) चिराभागाच्चतुर्गुणं देयं कृष्णजीरस्य चूर्णकम् ।। यता और पीपल चार चार भाग* लेकर चूर्ण बना तत्समं तालपुष्पश्च चूर्ण दण्डोत्पलाभवम् ॥ । लीजिए। कैरातं तत्समं देयं तत्समञ्चपलाभवम् ।। __इसका नाम “ ज्वरनागमयूर चूर्ण है"। एतचूर्णसमाख्यातं "ज्वरनागमयूरकम्" । | इसे १ माषा या रोगीकी अवस्थानुसार न्यूनाधिक प्रतिमापमितं खाधं युक्त्या वा त्रुटिवर्द्धनम्। मात्रामें सेवन करानेसे दुस्साध्य सन्ततादि विषम सन्ततादिज्वरं हन्ति साध्यासाध्यं न संशयः॥ ज्वर, क्षयज ज्वर, धातुस्थित ज्वर, काम, शोक क्षयोद्भवञ्च धातुस्थं कामशोकोद्भवं ज्वरम्।। और भूतावेषसे उत्पन्न ज्वर, अभिचारज ज्वर, भूतावेषज्वरश्चैवमभिचारसमुद्भवम् ॥ दाहपूर्व अथवा शीतपूर्व ज्वर, चातुर्थिकादिके दाहशीतज्वरं घोरं चातुथोदिविपयेयम् । विपर्यय, जीर्णज्वर और विषम ज्वगदि हर प्रकारके जीर्णश्च विषमं सर्व प्लीहानमुदरं तथा ।।। | ज्वरोंका नाश होता है। कामलां पाण्डुरोगञ्च शोथं हन्ति न संशयः। यह चूर्ण प्लीहा ( तिल्ली ) उदररोग, कामला, भ्रमं तृष्णां च कासश्च शूलानाही क्षयं तथा ॥ पाण्डु, शोथ, भ्रम, तृष्णा, खांसी, शूल, आनाह, यकृतं गुल्मशूलश्च आमवातं निहन्ति च ।। त्रिपृष्ठकटीजानुपार्थानां शूलनाशनम् ॥ क्षय, यकृत्वृद्धि, गुल्म,आमवात, त्रिक् पृष्ठ (पीठ) कमर, जानु और पसलीके शूलको भी अवश्य नष्ट अनुपानं शीतजलं न देयमुष्णवारिणा ।।। कर देता है। - लोह भस्म, अभ्रक भस्म, सुहागा, ताम्र भस्म, हरताल भस्म, वंग भस्म, शुद्ध पारा, शुद्ध ____ अनुपान—इसे शीतल जलके साथ खिलाना गन्धक, सहजनेके बीज, हर्र, बहेड़ा, आमला, चाहिए और उष्ण जलसे परहेज करना चाहिए । सफेद चन्दन, अतीस, पाठा, बच, हल्दी, दारु । (२१४०) ज्वरपश्चाननो रसा(र.का.धे.।ज्वर.) हल्दी, खस, चित्रक (चीता), देवदारु, पटोलपत्र, शुद्धं रसं गन्धकनागहेमजीवक ऋषभक, जीरा, तालीस पत्र, बंसलोचन, वीजं समं कोलकणाजगद्भिः । * नोट-कुछ वैद्योंका मत है कि काला जीरा उससे पहिलेकी समस्त ओषधियोंसे ४ गुना और तालपुष तथा दण्डोत्पला अपनेसे पूर्वकी समस्त औषधोंके बराबर, चिरायता अपने पहिलेकी समस्त औषधोके बमपर और परिल अभ्य सरल चूके रायर रेनी चाहिए । For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy