________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
[ २८२]
भारत-भैषज्य-रत्नाकरः ।
जकारादि
-
-
(४ माशे मात्रा अधिक है अतएव । एक बार विरेचन देनेके पश्चात् बल आ साधारणतः २-३ रत्तीकी मात्रानुसार देना जाने पर पुनः यही औषध देकर विरेचन कराना चाहिए । अनुपान-शीतल जल )
चाहिए। (२११४) जलोदरारिरसः (२)
___इस पर तक सेवन करनेसे जलोदर रोग (भै.र.; धन्व.;र. र. । उदर.; वृ.यो.त.।त.१०५) | नष्ट होता है। रसेन गन्धं द्विगुणं शिला च (२११५) जातीफलरसः
निशा च वीजं जयपालकस्य । (र. सा. सं. । न.र. चं. । अति.; र. रा. सुं.। प्र.) फलत्रयं पूषणकञ्च चित्रं
पारदाभ्रकसिन्दूरं गन्धं जातीफलं समम् । सर्व विचूापि विभावयेच ॥
कुटजस्य फलश्चैव धृतवीजानि टङ्कणम् ॥ दन्तीस्नुहीभृङ्गरसे पृथक् च
व्योषं मुस्ताभया चैव चूतवीजं तथैव च । सम्भाव्य संशोष्य च सप्तवारान् ।
विल्वकं सर्जवीजश्च दाडिमीफलवल्कलम् ।। वयो बलं वीक्ष्य तथा ददीत
एतानि समभागानि निक्षिपेत् खल्लमध्यतः । जाते विरेके च ददीत पथ्यम् ॥
| विजयास्वरसेनैव मर्दयेच्छूक्ष्णचूर्णितम् ॥ अल्पं सतर्क शिशिरानुशायि
गुञ्जाफलप्रमाणान्तु वटिकां कारयेद्भिषक् । जाते बले तत्पुनरेव दद्यात् । एका कुटजमूलत्वकषायेण प्रयोजयेत् ॥ तक्रेण रोगःसमुपैति शान्ति आमातिसारं हरते कुरुते वह्निदीपनम् ।
सिद्धो रसो नाम जलोदरारिः॥ मधुना विल्वशुण्ठेन रक्तग्रहणिकां जयेत् ।।
शुद्ध पारा १ भाग, शुद्ध गन्धक, मनसिल, शुण्ठीधान्यकयोगेन चातिसारं निहन्त्यसौ । हल्दी, जमालगोटेके शुद्धबीज, हर्र, बहेड़ा, आमला, जातीफलरसो इथेष ग्रहणीगदनाशनः॥ त्रिकुटा ( सोंठ, मिर्च, पीपल ), और चीतेका चूर्ण शुद्ध पारद, अभ्रक भस्म, रस सिन्दूर, शुद्ध २-२ भाग लेकर प्रथम पारे गन्धककी कजली गन्धक, जायफल, इन्द्रजौ, धतूरेके बीज (शुद्ध), बना लीजिए तत्पश्चात् अन्य औषधोंका चूर्ण । सुहागेकी खील, त्रिकुटा (सोंठ, मिर्च, पीपल), हर्र, मिलाकर दन्तीमूल, थोहर (सेहुंड) और भंगरेके | नागरमोथा, आमकी गुठलीका गर्भ, बेलगिरी, रसकी सात सात भावनाएं देकर सुखा लीजिए। रालके बीज और अनारके फलका छिलका । सब
इसे आयु और बलोचित मात्रानुसार देनेसे चीजें समान भाग लेकर चूर्ण योग्य ओषधियोंका जलोदर रोग नष्ट होता है।
कपड़ छन चूर्ण कर लीजिए। फिर पारे गन्धक इससे विरेचन होनेके बाद अल्प तक्रयुक्त की कज्जली बनाकर उसमें अन्य समस्त ओषधियां भात इत्यादि पथ्य देना चाहिए। और शीतल मिलाकर भांगके स्वरसमें घोटकर १-१ रत्तीकी स्थान में रहना चाहिए।
गोलियां बना लीजिए।
For Private And Personal