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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ २७८ ] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [जकारादि व्याघ्रीगुडूचीत्रिफलाग्निचव्य | लगजाने से दवा खराब हो जावेगी । जब कपड़ काथेन संमर्थ विधाय गोलम् । मट्टी सूख जाय तव कुक्कुटपुट में फूंक दें । स्वाङ्ग संशोष्य दयाद् दशमृत्पटानां; शीतल होनेपर उस दवाईको तौल कर देखें । योगान् पचेत् कुक्कुटनामधेये ।। २ ।। यदि सात तोले दवाई होय तो ११ माशे बछविषं कणां भर्जितटकणश्च नाम विष, ११ माशे पीपल, ११ माशे भुना वेल्लं समस्तार्धमथापि शुद्धम् । हुआ चौकिया सुहागा, ११ मासे कालीमिर्च, इन जैपालचूर्णश्च तदर्धमेव सबका कपड़छन चूर्ण करके और ३॥ तोले शुद्ध निम्बूकनीरेण च मर्दयेत ॥ ३ ॥ । जमालगोटेका चूर्ण, उस सात तोले दवामें मिलाकर आर्द्राम्बुना चापि वटीविधाय निम्बूके रसके साथ धोटकर एक भावना दें। मुद्गप्रमाणा ज्वरि शर्महेतोः। फिर आदाके रसके साथ घोटकर मूंगकी बराबर वासेषु कासेषु च वहिमान्यः गोलियां बना लें । १ गोली सायङ्काल, १ गोली चार्शसु पाण्डौ च भगन्दरेषु ॥ ४॥ । प्रातःकाल, बताशेमें रखकर या मधु के साथ बहूपकुर्युवटिका मलानां देने से सर्व प्रकारके ज्वर दूर हो जाते हैं, कफचर संशोधने तु प्रवरा मताःस्युः। | और वातज्वर में विशेष उपकारक है। और योग्यानुपानेन समस्तरोगान् श्वास, कास, मन्दाग्नि, बवासीर पाण्डुरोग और जयन्ति शीघ्रश्च नयन्ति शर्म ॥५॥ भगन्दर इन रोगों में इनका उपकार प्रत्यक्ष देखा ___ जयवटी-ज्वरादिको पर गया है. और कोष्ठकी मलशुद्धि करने के लिये भी अर्थ-१ तोला शुद्ध मैनशिल, १ तोला ये गोलियां एक ही चीज़ हैं । इनके खाने से दो शुद्ध हरिताल, १ तोला शुद्ध गन्धक, २॥ तोला तीन दस्त खुलासा हो जाते हैं ज्वर तत्काल उतर पारा, सबको मर्दन करके कजली करलें। फिर । जाता है और योग्य अनुपान से सभी रोगों में उसमें ४॥ तो, ताम्र भस्म (कपड़छनकी हुई) | फायदा करने वाली चीज़ है। डालकर मन्दार (आक) के दूधके साथ (यदि दूध | (रसायन सार से उद्धृत) नहीं मिले तो मन्दारके पत्तोंके स्वरसके साथ) और (२१०८) जयसुन्दरो रसः कटैरी (भट कटैया) गुरुच, त्रिफला, चित्रक, चव्य, इनके क्वाथके साथ दो दिन मर्दन करके गोला । (र. चं. । स्त्री.; र. र. स. । अ. २२ खं । २) बनाले फिर सुखाकर दशकपड़मट्टी उस गोलाके सुवर्ण रजतं ताम्र ताप्यसत्वं च वैकृतम् । ऊपर करदे, परन्तु यह स्मरण रहेकि जब गोलेके | एकैकं निष्कमानेन संशुद्ध परिमारितम् ॥ ऊपर कपडमिट्टी करने लगे तब गोलाको पहिले एतच्चतुर्गुणं मूतं मूताद्विगुणगन्धकम् । मन्दारके पत्तोंसे ढकदें नहीं तो गोला के मट्टी मर्दयेल्लक्ष्मणातोयैर्वन्धुजीवरसैरपि ॥ For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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