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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir रेसप्रकरणम् ] द्वितीयो भागः। [२७७] - की आंखमें इसका अञ्जन लगानेसे सन्निपातज्वर समभाग मिश्रित चूर्ण उपरोक्त समस्त औषधोंके नष्ट होता है। | बराबर मिलाकर महुवेके फूलोंके रसमें घोटकर (२१०५) जयमङ्गलो रसः (३) (रसे.मं.। ज्वर.) २-२ रत्तीकी गोलियां बना लीजिए। तालं ताप्यजगन्धकश्च विमलं इसे खिलाने अथवा इसकी नस्य देने या . कान्ताऽऽरतीक्ष्णाभ्रकम् । अञ्जन करनेसे वैद्योंसे त्यक्त, अचेतन सन्निपात मण्डूरं कुलिशं सुराऽऽयसघनं | रोगी और विषव्याप्त व्यक्तिको शीघ्र ही चेत हो चैभिःसमं मूतकम् ॥ जाता है। तथा यह विषम ज्वरोंको भी शीघ्र नष्ट वन्ध्याकन्दससिन्धुवारमधुकं कर देता है। शृङ्गीविषं टङ्कणम् ।। । (२१०६) जयरसः (वै. र. । ज्वर.). बोलं चित्रकलागली समरिचं रसं गन्धं च दरदं जैपालं क्रमवद्धितम् । विश्वोपकुल्याविषा ॥ दन्तीरसेन सम्पिष्य वटी गुञ्जामिता कृता॥ एभिःसर्वसमांशकैस्सुविधिना . प्रभाते सितया सार्धमशिता शीतवारिणा। बध्वा द्विगुञ्जावटी। एकेन दिवसेनैव शीतज्वरमपोहति ॥: माधूकेन रसेन दोषनिचये (भाव प्रकाश तथा वृहद्योगतरंगिणी इत्या. नस्ये प्रपाने हिता॥ दिमें इसको ज्वरनी गुटिका नामसे लिखा है।) कृत्वा नेत्रयुगेऽञ्जनं च विधिना शुद्ध पारा १ भाग, शुद्ध गन्धक २ भाग, तत्सन्निपातं जये। शुद्ध हिङ्गुल ३ भाग, और शुद्ध जमाल गोटा चार द्वैद्यैस्त्यक्तमचेतनं च विषमं भाग । प्रथम पारे और गन्धक की कजली करके तापं हि सर्वोत्थितम् ।। अन्य सब चीजें मिलाकर दन्तीमूलके रसमें घोटशुद्ध हरताल, सोना मक्खी भस्म, अजमोद विमल (रौप्यमाक्षिक) भस्म, कान्त लोह भस्म, पीतल कर १-१ रत्तीको गोलियां बना लीजिए। भस्म, तीक्ष्ण लोह भस्म, अभ्रक भस्म, मण्डूर भस्म, प्रातःकाल १ गोली मिश्रीमें मिलाकर ठण्डे हीरा भस्म, स्वर्ण भस्म और वङ्ग भस्म १-१ | पानीके साथ सेवन करनेसे शीतज्वर एकही दिन भाग तथा पारा १२ भाग लेकर प्रथम पारे और में नष्ट हो जाता है । गन्धककी कजली बना लीजिए, तत्पश्चात् उसमें । (२१०७) जयवटिका (रसायन सार । ज्वर. ) उपरोक्त सब औषधे तथा बांझ ककोड़ेकी जड़, सूते शिलातालशिवारजांसी; संभालके पत्ते, मुलैठी, शुद्ध बछनाग, सुहागेकी समानि सर्वामिते प्रमर्य । खील, बीजाबोल (मुरमुकी), चीतामूल, कलिहारीकी ताम्रस्य भस्मापि समस्ततुल्य जड़, कृष्णमरिच, सोंट, पीपल और अतीसका। मन्दारदुग्धेन रसेन वापि ॥१॥ For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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