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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org द्वितीयो भागः । कषायप्रकरणम् ] (१९९७) गुडूच्यादि काया (वै. जी. | वि. १) माधुर्यजितामृतेऽमृतता लक्ष्मीशिवाने शिवा विश्वं विश्ववरे घन घनकुचे सिंहीच सिंहोदरि ? एभिः पञ्चमिरौषधैर्मधुकण मिश्रः कषायः कृतः पीतद्विषमज्वरः किमु तदा तन्वङ्गि न क्षीयते ॥ : हे सुमधुर भाषिणी, लक्ष्मी, शिवा विनिन्दित कान्तिमते, हे विश्वप्रभामिनी, पीनपयोधरे, सिंहोदरि तन्वङ्ग: क्या अमृता (गिलोय) शिवा (हैड ) विश्वा (स) घन (मोथा) और सिंही ( कटहली ) का पिप्पली चूर्णयुक्त काथ पीनेसे विषम ज्वर नट नहीं हो सकता ? (१९९८) गुडूच्यादि काथः (यो. र. । स्त्रीरो.) गुडूचीत्रिफलादन्तीकथितो दकधारया । योनि प्रक्षालयेत्तेन ततः कण्डूमशाम्यति ॥ गिलोय, त्रिफला, और दन्तीमूलके काथकी धारा (तरैड़ा) देने से स्त्रियोंके गुह्याङ्गी कण्ड (खुजली) शान्त होती है । (११५५) गुडूच्यादि काथः (वैद्याप्रत । अलं. ३) गुडूच्यतिविषामुतनागरैः कथितं जलम् । मन्दानामसंयुक्ते हितं हि संग्रहणीगदे || मन्दाग्नि और आमयुक्त संग्रहणी रोग में गिलोय, अतीस, नागरमोथा और सांठका काथ लाभदायक है । (१२००) गुडूच्यादि काथः (मा. प्र. । स्व० ) गडूची भूमिनिम्बश्च बालं वीरणमूलकम् । लघुमुस्तं त्रिवृद्धात्री द्राक्षा वासा च पर्वटः ।। Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ १५ ] writer हरत्येव ज्वरं पित्तकृतं द्रुतम | सोपद्रवमपि प्रातर्निपीतो मधुना सह || गिलोय, चिरायता, नेत्रवाला, खस, सफेद दूब, नागरमोथा, निसोध, आमला, मुनक्का, बासा (अइसा ) और पित्तपापड़े के काथ में मधु मिलाकर प्रातःकाल सेवन करने से उपद्रवयुक्त पित्तजज्वर अवत्र्य नष्ट होता है । (प्र. वि. शहद काथका आँरवा भाग लेना चाहिए 1) (१२०१) गुडूच्यादि काथः (ग. नि. । ज्व.) गुडूची नागरं मुस्तं पटोलारिष्टवत्सकम् । त्रिफला च कषायः स्वात्पाचनोज्वर नाशनः ॥ गिलोय, सोंड, नागरमोथा, पटोलपत्र, नीमकी छाल, कुड़ेकी छाल और त्रिफलेका काय ज्वरको पकाता और शान्त करता है 1 (१२०२) गुडूच्यादि काथः (ग. नि. व.) गुडूची त्रायमाणा च द्राक्षा काश्मर्यसारिवे । कषायो गुडसंयुक्तः सयो वातज्वरं जयेत् ॥ गिलोय, त्रायमाणा (बनफशा) मुनक्का, खम्भारी की छाल और सारिवाके काथमें गुड़ मिलाकर पीनेसे वातञ्चर शीघ्र नष्ट होता है । (प्र. वि. गुड़ एक तोला मिलाना चाहिए ।) (१२०३) गुडूच्यादि काथः (ग. नि. । ज्व०) गुडूचीनागरकाथः सो वातज्वरं हरेत् । गिलोय और सूटका काथ सेवन करने से वातवर शीघ्र नष्ट होता है । (१२०४) गुडूच्यादि काथः (ग. नि. । व.) For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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