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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org तैलप्रकरणम् ] पक्त्वा चाथ कषायेण तैलप्रस्थं विपाचयेत् ।। एतदभ्यञ्जनाद्धन्यात्सन्निपातात्मकं ज्वरम् । तैलं जात्यादिकं नाम वातपित्तकफापहम् ॥ द्वितीयो भागः । इस तैलकी मालिशसे सन्निपात स्वरका नाश होता है । (जिन ओषधियोंके नाम दो बार आए हैं वह दोगुनी लेनी चाहिएं | ) (२०५२) जात्यादितैलम ( यो. र., वं. से. भा. प्र. व. नि. र. । मुख. ) कपायैर्जातिमदनकण्टकस्वादुकण्टकः । मञ्जिष्ठालोधखदिरयष्टया हैश्चापि यत्कृतम् ॥ तैलं यत्साधितं तच हन्यादन्तगतां गतिम् ॥ चमेली के पत्ते, मैन फल, कटली, छोटे गोखरु, मजीठ, लोध, खैर, और मुलेठीके काथके साथ भा० ३४ Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ २६५ ] पकाया हुवा तैल लगाने से दांतोंका नाड़ीत्रण ( नासूर ) नष्ट होता है । ( प्रत्येक वस्तु १० तोले । पानी ८ सेर । शेष २ सेर, तैल ॥ ) (२०५३) जात्यादितैलम् चमेली के नवीन पत्ते, हल्दी, दारु हल्दी, शतावर, जीवक, ऋषभक, रास्ना, चीरका बुरादा, देवदारुका बुरादा, मोथा, तालीसपत्र, मजीठ, पाठा, वरुणछाल, चीतामूल, सफेद गुलाब, दालचीनी, तेजपात, इलायची, नागकेसर, कपूर, कंकोल, अगर, केशर, लौंग, मुलैठी, श्वेत सारिवा, कृष्ण सारिवा, अनन्तमूल, आमला, मूर्वा, मुलैठी, कनेरकी छाल, लौंग, सिरसकी जड़ की छाल, योजाक (अरल) की छाल, चव, लाख, क्षीर काकोली प्रत्येक १-१ कर्ष (११ - ११ तोला) लेकर पानीके साथ पीसलें, तथा इन्हीं चीजोंको कूटकर १६ सेर पानीमें पकाएं और ४ शेर पानी शेष रहनेपर छान लें । तत्पश्चात् उपरोक्त पिसी हुई ओषधियां, यह काथ और १ सेर तेल एकत्र मिलाकर पकायें। जब सब पानी (काथ) जल जाय तो उतारकर छान (यो. र. र. का. वे.; वं. से. । व्र.; शा. सं. । ख. २ अ. ९; आ. प्र. म. ख.; बृ. यो. त । त. ११२ ) जातीनिम्बपटोलानां नक्तमालस्य पल्लवाः । सिक्थकं मधुकं कुष्ठं द्वे निशे कटुरोहिणी ॥ मञ्जिष्ठा पद्मकं लोध्रमभया नीलमुत्पलम् । तुत्थकं सारिवा बीजं नक्तमालस्य च क्षिपेत् ॥ एतानि समभागानि पिवा तैलं विपाचयेत् । विषव्रणसमुत्पत्तौ स्फोटेषु च कच्छुषु ॥ कण्डूविसर्परोगेषु कीटदष्टेषु सर्वथा । सयः शस्त्रप्रहारेषु दग्धविद्धक्षतेषु च ।। नखदन्तक्षते देहे दुष्टमांसावघर्षणे । प्रक्षणार्थमिदं तैलं हितं शोधनरोपणम् ॥ | I चमेली के पत्ते, नीम के पत्ते, पटोलपत्र, करन के पत्त, मोम, मुलैठी, कूठ, हल्दी, दारु हल्दी, कुटकी, मजीठ, पद्माख, लोध, हर्र, नीलोत्पल (नीलोफर), नीलाथोथा, सारिवा और करञ्जके बीज समान भाग लेकर पानी में पीसलें, फिर उस पिट्टी (क) को सबसे चार गुने तैलमें मिलाकर उसमें तैलसे चार गुना पानी मिलाकर पकाएं। जब सब पानी जल जाय तो तैलको छानलें । इस तैलके लगानेसे विष, घाव, विस्फोटक, कच्छु खुजली, विसर्प, विषैले कीड़ेका दंश, शस्त्रादिसे हुवा तुरन्तका घाव, अग्निसे जलने से या कील आदि घुस जानेसे उत्पन्न धाव, तथा नख और दन्तका For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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