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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [२५६] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः। जकारादि - - (२०२३) जीवकाद्यो मोदकः(च.चि. कासा.) शुद्ध जमालगोटा १ टङ्क (५ माशे), कुटकी जीवकाद्यैर्मधुरकैःफलैश्चाभिषुकादिभिः। २ टक और गेरु एक टङ्क । सबके महीन चूर्णको कल्कैस्त्रिकार्षिके सिद्धे पूते शेषे च सर्पिषि ॥ घृतकुमारी ( ग्वारपाठा ) के रसमें घोटकर मटरके शर्करापिप्पलीचूर्णस्त्वकक्षीर्या मरिचस्य च। समान गोलियां बना लीजिए । शृङ्गाटकस्य चावाप्यक्षौद्रगर्भान् पलोन्मितान् ॥ इन्हें शीतल जलके साथ सेवन करनेसे जीर्ण गुडान् गोधमचूर्णन कृत्वा खादेद्धिताशनः।। ज्वर नष्ट होता है । शुक्रामृग्दोषशोषेषु कासे क्षीणक्षतेषु च ॥ ( ज्वरघ्नीवटी) ___ जीवक, ऋषभक, मेदा, महा मेदा, काकोली, रसप्रकरणमें देखिए । क्षीरकाकोली, मुद्गपर्णी, माषपर्णी, जीवन्ती, मुलैठी (२०२५) ज्योतिष्मतीगुटिका और पिस्ता बदाम, इत्यादि फलोंकी गिरी ३-३ (वैद्यामृत । वि. १८ ) कर्ष ( प्रत्येक ३।। तोले ) लेकर पीसकर उसके तेजोहा प्रस्थमेकं पयसि साथ ४ गुना घृत पकाएं। पाकके समय घृतसे | गजगुणे पाकयुक्त्या विपाच्यम् । ४ गुना पानी भी अवश्य डालना चाहिए । जब व्योषं पथ्यां शताहां कृमिरिपुसमस्त पानी जल जाय तो घृतको छानलें । तत्प- मनलं ग्रन्थिकं चाजमोदम् ॥ श्चात् उसमें मिश्री, पीपल, बंसलोचन, स्याहमिर्च उग्रा कुष्ठाश्चगन्धौ सुरतरु और सिंघाडेका चूर्ण (सब समान भाग मिश्रित) ममृतं पालिकानि प्रदद्यात् । घृतका चतुर्थांश मिलाएं और फिर इस समस्त सर्वान्वातान्वटीयं घृतमधुमिश्रण के बराबर घृतमें भुना हुवा गेहूं का आटा सहिता नास्तिभावान्करोति ॥ और गुड़ मिलाकर थोड़ा शहद डालकर १-१ पल १ सेर मालकंगनीको ८ सेर पानीमें पकाइये (५-५तोले ) के लड्ड बना लीजिए। जब १ सेर पानी शेष रहे तो उसे छानकर उसमें ___ इन्हें पथ्य पालनपूर्वक शुक्र दोष, रजोविकार, १-१ पल (५-५ तोले) त्रिकुटा (सोंठ, मिर्च, शोष, खांसी और क्षत क्षीणादिमें सेवन करना पीपल ), हर्र, सोया, बायबिडंग, चीता, पीपलामूल, चाहिए। अजमोद, बच, कूठ, असगन्ध, देवदारु और शुद्ध (२०२४) जैपालवटी बछनागका चूर्ण मिलाकर गोलियां बना लीजिए। ( वै. र.; र. रा. सु. भा. प्र. । ज्वर.) इन्हें धी और शहदके साथ सेवन करनेसे शुद्धजैपालटङ्कन्तु कटवी टकद्वयोन्मिताम् । समस्त वातरोग नष्ट होते हैं । गैरिकं टङ्कमेकन्तु कन्यानीरेण मर्दयेत् ॥ ( नोट-यदि १ सेर पानी अधिक मालम कलायसदृशी कार्या वटिका तां च भक्षयेत् । हो तो उसे पकाकर गाढ़ा करके चूर्ण मिलाना शीतलेन जलेनैषा वटी जीर्णज्वरापहा ॥. ' चाहिए । मात्रा १ माशा । ) For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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