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चूर्णप्रकरणम् ]
द्वितीयो भागः।
[२४९]
तक्रतैलतरुणोष्णवारिभिः
और तिलकी खल समान भाग तथा जौ सबसे दो प्राप्तपुष्पसुभगा भविष्यति । गुने लेकर चूर्ण बना लीजिए । इसे दही और पुराने (लेकिन साफ) रेशमी कपड़ेकी भस्म शहदमें मिलाकर शरीरपर मालिश करनेसे बल, को तक्र, तैल या अच्छे गर्म पानीके साथ फांकने पुष्टि और सौन्दर्यकी वृद्धि होती है। से स्त्रियोंकी रजोस्राव (मासिक धर्म) सम्बन्धी पीड़ा (२००७) जीवन्त्याय चूर्णम् नष्ट होती है और रजोस्राव खुलकर होता है। (वं. से. । कासा.; ग. नि. । चूर्ण.) (२००५) जीवकादिचूर्णम् (यो.र.। उर:क्षत) जीवन्ती मधुकं पाठां त्वक्षीरी त्रिफलां शटीम् ।
शर्करामधुसंयुक्तं जीवकर्षभको मधु । मुस्तैला पिप्पली द्राक्षां द्वौ हत्यौ विभीतकम् ॥ लिद्यात्क्षीरानुपानानि रक्तक्षीणतरःकृशः॥ शारिवां पौष्करं मूलं कर्कटाख्यां रसाञ्जनम् ।।
जीवक, ऋषभक, और मुलैठी के चूर्णको मिश्री पुनर्नवां लोहरजस्त्रायमाणां यवानिकाम् । और शहदमें मिलाकर दूधके साथ सेवन करनेसे भार्गीतामलकीवृद्धिर्विडॉ धन्वयासकम् । रक्तकी क्षीणता के कारण उत्पन्न होनेवाली कृशता क्षारचित्रकचव्याम्लवेतसव्योषदारु च ॥ ( दुबला पन ) नष्ट होती है।
| चूर्ण कृत्वा समांशानि लेहयेन्मधुसर्पिषा । (जीवनीयगणः (यो. त.।त.१८; यो. र. वा.भ.) चूर्ण पाणितलं कृत्वा पश्वकासान्व्यपोहति ॥ जीवनीयकषायदशक अवलोकन कीजिए॥
जीवन्ती, मुलैठी, पाठा, बंसलोचन, हर, बहेड़ा,
आमला कचूर, मोथा, इलायची, पीपल, मुनक्का, (२००६) जीवन्त्याद्यं चूर्णम्
छोटी कटैली बड़ी कटैली, बहेड़ा, सारिवा, पोखर (वं. से.; ग. नि. । राजय.)
मूल, काकड़ासिंगी, रसौत, पुनर्नवा (बिस खपरा), जीवन्ती शतवीर्या च विकसां सपुनर्नवाम् । लोह चूर्ण (अथवा भस्म), त्रायमाणा, अजवायन, अश्वगन्धामपामार्ग तर्कारी मधुकं बलाम् ॥ भारंगी, भुंई आमला, वृद्धि, बायबिडंग, धमासा, विदारी सर्षपान कुष्ठं तण्डुलीयातसीफलम् । | जवाखार, चीता, चव, अम्लबेत, त्रिकुटा ( सोंठ, माषांस्तिलान् सकिण्वं च सर्वमेकत्रचूर्णयेत्॥ मिर्च, पीपल ) और देवद्वारका चूर्ण समान भाग यवचूर्ण च द्विगुणं दना युक्तं समाक्षिकम् ।। मिलाकर एकत्र खरल कर लीजिए । एतदुत्सादनं कार्य पुष्टिवर्णवलपदम् ॥ इसे १ कर्ष (१। तोले )की मात्रानुसार
___ जीवन्ती, शतावर, मजीठ, पुनर्नवा ( सांठी, शहद (२ तो.) और घी (६ माशे )में मिलाकर बिस खपरा ) असगन्ध, अपामार्ग ( चिरचिटा), चाटनेसे पांच प्रकारकी खांसी नष्ट होती है। जयन्ती ( जया ), मुलैठी, खरैटी, बिदारीकन्द, ज्वरनागमयूरचूर्णम् सरसों, कूठ, चौलाई, अलसीके बीज, उर्द, तिल, | रसप्रकरणमें देखिए ।
१ अश्वगन्धाऽभयाभागांति पाठान्तरम् २ किट्टञ्चति पाठान्तरम् । भा० ३२
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