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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir चूर्णप्रकरणम् ] द्वितीयो भागः। [२४७] सूजन, दर्द, खुजलो, दांतोंके कीड़े और घाव । आटा लपेट दीजिए । इसे अंगारों ( भूबल )में नष्ट होते हैं । दबा दीजिए; जब आटेका रंग सुर्ख हो जाय तो (१९९६) जातीफलादिचूर्णम् अनारको ठण्डा करके उसके भीतरसे औषध निकाल( वृ. नि. र.; वै. र. । संत्र.; वृ. यो. त.।त.६७) कर पीस लीजिए । जातीफलाग्निहिमवेल्लतिलेन्दुजीर यह अतिसारको रोकता, आमको पचात वांशीत्रिकत्रयमनक्षमितं नतं च । | और अग्निको दीप्त करता है। तालीसदेवकुसुमे अपि चूर्णमेषां (१९९८) जातीफलादियोगः (वृ.नि.र.अति.) द्विशर्करं च समभङ्गमिदं ग्रहण्याम् ।। जातीफलं नागरसकेनौ जायफल, चीता,सुगन्धबाला, बायबिडंग,तिल, खजूरफलभिन्नमिदं च नित्यम् । कपूर, जीरा, बंसलोचन, त्रिफला, त्रिकटु ( सोंठ, योज्यं द्विनिष्कं च करीषजातामिर्च, पीपल), त्रिमद (मोथा, बायबिडंग, चीता) दरण्यजाद्भस्म समं च सर्वैः ।। तगर, तालीसपत्र और लौंगका चूर्ण १-१ कर्ष, निष्कार्धमात्रं भिषजा प्रयोज्यं भांग इस सब चूर्णके बराबर और सबसे दो गुनी मिश्री एकत्र मिलाकर महीन चूर्ण बना लीजिए । द्वि वारभेतच्छुभतन्दुलोदकैः । जीर्णातिसारे रुधिरामयुक्ते इसके सेवनसे ग्रहणी रोग नष्ट होता है । ( मात्रा १-१॥ माशा । अनुपान तक) - हितः सशूले बहुवेगयुक्ते ॥ (१९९७) जातीफलादिपुटपाकः ___ जायफल, सोंठ, राल और खजूरके फल . (यो. र.; वृ. नि. र. । अति० ) | (छुहारा) २-२ निष्क तथा अरने (अरण्य) उपलों जातीफलं सपफेनं टङ्क गन्धकजीरके। की राख सबके समान लेकर महीन चूर्ण बना | लीजिए। एतानि समभागानि वालदाडिमबीजकैः ॥ इसे प्रतिदिन २॥ माशेकी मात्रानुसार चावलों पेषयेत्तेन कल्केन पूरयेद्दाडिमीफलम् । | के धोवनके साथ २ बार (प्रातःसायम् ) सेवन अङ्गारे तच्च गोधूमचूर्णेनाऽऽलेपयेदृढम् ॥ करनेसे जीर्णातिसार; रक्तातिसार और अति वेगअतिसारे स्तम्भनं स्यात्परं दीपनपाचनम् ॥ वान शूलयुक्त अतिसारका नाश होता है। ___ जायफल, अफीम, सुहागा, गन्धक ( शुद्ध आमलासार ), और जीरा तथा कच्चे अनार के बीज (१९९९) जातीफलायं चूर्णम् , समान भाग लेकर पानीमें पीसकर पिटीसी बना । (ग. नि. । परि. चूणो.; भै. र.। ग्रह.; व. से.; लीजिए, और एक अनारको भीतरसे खाली करके वै. क. दु; भा. प्र. । क्षय) , उसमें उस पिट्ठीको भरकर और उसका मुह बन्द । जातीफलं विडङ्गश्च चित्रकस्तगरस्तिलाः। करके उसके ऊपर चारों तरफ़ गेहूंका भीगा हुवा । तालीसं चन्दनं शुण्ठी लवङ्ग चोपकुञ्चिका,॥ १ तथेति पाठभेदः । For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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