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रसपकरणम् ] .
द्वितीयो भागः।
[ २०९]
की गोलियां बना लीजिए । इन्हें सर्व प्रकार के अथवा बाबची के कल्क युक्त करञ्जबीज के तैल के प्रमेह रोगों में सेवन कराना चाहिए। साथ सेवन करना चाहिए।
(व्यवहारिक मात्रा ४-६ रत्ती) (१८८७) चन्द्रकान्तरसः (१)
(१८८८) चन्द्रकान्तरसः (२) (र. सा. सं.; र. का.धे. । कुष्ठ; रसें. चि. म.। अ. ९)/
(र. सा. सं., र. रा. सुं. र. चं. । शिरो.) पलत्रयं मृतं तानं सूतमेकं द्वि गन्धकम् । मृतसताभ्र तीक्ष्णं तानं गन्धं समं समम् । त्रिकटुत्रिफलाचूर्ण प्रत्येकञ्च पलं पलम् ॥ स्नुहीशीरैदिनं मर्य भक्षयेन्माषमात्रकम् ॥ निर्गुण्ड्याश्चादकद्रावैर्वहिद्रावैविमर्दयेत् । मधुना मर्दित सेव्यं लोहपात्रे दिने दिने । दिनैकं तद्विशोप्याथ तुषाग्नौ स्वेदयेदिनम् ॥ सप्ताहात्सूर्यव दीग्छिरोरोगान्विनाशयेत् ।। समुदत्य विचूाथ वागुजीतैलमर्दितम् ।। पारद भस्म (अभावमें रस सिन्दूर ), अभ्रक त्रिदिनं भावयेत्तेन निष्फै भक्षयेत्सदा॥ भस्म, तीक्ष्ण लोह भस्म, ताम्र भस्म और शुद्ध चन्द्रकान्तरसो नान्ना कुष्ठं हन्ति न संशयः ।
गन्धक समान भाग लेकर सबको १ दिन स्नुही तैलं करञ्जबीजोत्थं वहिसैन्धवगन्धः ॥
(सेहुंड-सेंड) के दूधमें घोटिए । अनुपानं प्रकर्तव्यं कल्कं वा वागुजीभवम् ॥
इसे १ माशेकी मात्रानुसार लोहपात्रमें शहद
में मिलाकर सेवन करनेसे १ सप्ताहमें सूर्यावर्तादि ताम्रभस्म, ३ पल ( १५ तो०), पारा १ शिरोरोग नष्ट हो जाते हैं। पल, गन्धक २ पल त्रिकुटा (सोंठ, मिर्च पीपल,) (व्यवहारिक मात्रा-२ रत्ती) हर्र, बहेडा और आमला १-१ पल लेकर प्रथम (१८८९) चन्द्रप्रभारसः पारे गन्धक की कजली बना लीजिए फिर अन्य
- (भै. र. । क्षु.; आ. वे. वि. । अ. ८१) पदार्थीका महीन चूर्ण मिलाकर १-१ दिन संभाल,
चन्द्रप्रभां तुगाक्षीरी सैन्धवञ्च शिलाजतु । अद्रक और चीते के काथमें घोट कर सुखाइये
कौशिकञ्चाक्षमानन्तु हेमारं रौप्यमभ्रकम् ॥ फिर उसे मूषामें बन्द करके १ दिन तुषाग्नि में
माक्षिकं शाणमात्रश्च मधुना परिमर्दयेत् । स्वेदित कीजिए तत्पश्चात् मूषामें से औषध को
ततो द्विवल्लमानेन वटिकाःपरिकल्पयेत्।। निकाल कर ३ दिन तक बाबची के तेल में घोट
अनुपानविशेषेण योजितोऽयं महारसः।। कर रखिए।
सर्वान् क्षुद्रगदान हन्ति प्रमेहानपि दुस्तरान् ।। इस " चन्द्रकान्त " रस को १ निष्क (५ । वातव्याधीनशेषांश्च पित्तजान् कफसम्भवान्। माशे की) मात्रानुसार सेवन करनेसे कुष्ठ अवश्य चिरप्रणष्टमनिश्च दीपयेज्जनयेद् बलम् ॥ नष्ट होता है।
कचूर ( अथवा बावची ), बंसलोचन, सेंधाइस रसको चीता, सेंधा और गन्धक के चूर्ण नमक, शिलाजीत, और शुद्ध गूगल, एक एक कर्ष भा० २७
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