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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [२०८] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः। [चकारादि तिक्ता गुडूचिकासत्वं पर्पटीशीरमाधवी'। यह " चन्द्रकला " रस समस्त पित्तज और श्रीखण्ड सारिवा चैषां समानं सूक्ष्मचूर्णितम् ॥ वात पित्तजरोगों का नाश करता है। तथा आन्तद्राक्षादिककषायेण सप्तधा परिभावयेत्। रिक और बाह्य दाह शान्त करता है । ग्रीष्म ऋतु ततो धान्याश्रयं कृत्वा वटयः कार्याश्चणोपमाः।। (ज्येष्ठ, अषाढ़ ) और शरद् ऋतु ( आश्विन, अयं चन्द्रकलानाम्ना रसेन्द्रः परिकीर्तितः। । कार्तिक ) में विशेष उपयोगी है। सर्वपित्तगदध्वंसी वातपित्तगदापहः॥ यह रस घोर सन्ताप, ज्वर, भ्रम, मूर्छा, अन्तर्बाह्यमहादाहविध्वंसनमहाक्षमः । स्त्रियोंको अधिक रक्तस्राव होना, उर्ध्व रक्तपित्त, ग्रीष्मकाले शरत्काले विशेषेण प्रशस्यते॥ अधो रक्तपित्त विशेषतः रक्तकी वमन और समस्त कुरुते नानिमान्नं च महातापज्वरं हरेत् ।। प्रकारके मूत्र कृच्छोंका नाश करता है। भ्रमं मूछी हरत्याशु स्त्रीणां रक्तं महातिम्॥ इसके सेवनसे अग्निमांद्य नहीं होता। ऊर्ध्वाधोरक्तपित्तं च रक्तवाति विशेषतः ।। (मात्रा १ से ४ गोली तक पित्त पापड़ेके मूत्रकृच्छ्राणि सर्वाणि नाशयेन्नात्र संशयः ॥ | रस या शरबत नीलोफरके साथ खाएं ।) (१८८६) चन्द्रकलावटी ( रसः ) ___ शुद्ध पारा, 'ताम्रभस्म और अभ्रक भस्म | (वृ. नि. र.; यो. र.। प्रमे.; यो. चिःम. । गुटिका.; १-१ तोला, शुद्ध गन्धक ६ तो. लेकर सबकी . र. का. धे०) कजली बनाकर उसे १-१ दिन मोथा, दाडिम, एला सकपरशिला सधात्री दूर्वा, केतकी की कली, सहदेवी, घृतकुमारी, पित्त जातीफलं गोक्षुरशाल्मली च । पापड़ा रामशीतला (महाराष्ट्र देशमें 'आराम शीली' सूतेन्द्रवङ्गायसभस्म सर्वनामसे प्रसिद्ध सुगन्धित शाक) और शतावर के __मेतत्समानं परिभावयेच ।। रस पृथक् पृथक् १-१ दिन घोट कर उसमें गुडूचिकाशाल्मलिकाकषायैकुटकी, गिलोयका सत, पित्त पापड़ा, खस, माधवी निष्काधमाना मधुना ततश्च । लता, सफेद चन्दन और सारिवाका समान भाग बद्धा वटी चन्द्रकलेति संज्ञा मिश्रित चूर्ण सबके बराबर मिलाकर द्राक्षादि गण सर्वप्रमेहेषु नियोजयेत्ताम् ॥ की औषधोंके क्वाथकी सात भावनाएं दीजिए। इलायची, कपूर, मनसिल (पक्षान्तरमें मिश्री) और उसका गोला बनाकर ( पत्तोंमें लपेटकर ) आमला, जायफल, गोखरु, संभलकी छाल, रस अनाजके ढेरमें दबा दीजिए। सिन्दूर, बङ्गभस्म और लोहभस्म, बराबर बराबर फिर (सात दिन पश्चात्) निकालकर पीस लेकर महीन चूर्ण करके गिलोय और सेंभलकी कर चनेके बराबर गोलियां बना लीजिए। छालके काथमें घोटकर शहदके साथ २-२ माषे २ मागधीत रसरत्न समुच्चये। ३ श्रृङ्गाटकमिति पाठान्तरम् ॥ ४ द्राक्षाफलेतिपाठान्तरम् । ५ द्राक्षादिगण- द्राक्षा, दाडिम, केला, ताडकाफल, बेलगिरी, जामन, आम | ६ सिता, ७ केसर । For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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