SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 220
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir दीजिए [ २०६] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [चकारादि विचूर्य पर्पटीं सम्यग्वैक्रान्तस्त्रिंशदंशतः। । (३) उपरोक्त तीनों बीजोंको १-१ कर्ष निक्षिप्य हिजतोयेन शतधा परिभावितम् ॥ । (१।-१। तोला) लेकर एकत्र खरल कर लीजिए। निरुध्य मल्लमूषायां स्वेदयेदतियत्नतः। (४) गन्धक, कसीस, अभ्रक, फिटकी और पुनः संचूर्ण्य यत्नेन करण्डे विनिवेशयेत् ॥ । सौवर्चल (संचल) नमक बराबर बराबर लेकर एकत्र हन्यात्सर्वमरुद्दान्क्षयगदं पाण्डं च नष्ठाग्निताम्। करके उसे कुटकी के क्वाथकी १०० भावनाएं निर्वीर्यत्वमरोचकं त्वजरणं शूलञ्च गुल्मादिकम् वा अष्टौचैव महागदानतितरां व्याधि सशोषं क्षणा-. (५) अब एक लोहेके खरलको निधूम अग्नि - पर रखकर उसमें ५ पल (२५ तोले) पारा और द्भुक्तो मुद्गमितश्चतुःसुधारसःस्वस्थोचितोभूभुजाम् १ निष्क (३।।। माशे) उपरोक्त (नं. ३ में कथित) मलकं वर्जयेदस्मिन् रसे नान्यत्तु किश्चनः। बीजों के मिश्रण को डालकर तीन दिन तक त्रिबारमेकवारेण बुभुक्षां जनयेध्रुवम् ॥ घोटिए और फिर इसमें समान भाग उपरोक्त (१) शुद्ध स्वर्णमें समान भाग स्वर्णमाक्षिक नं. ४ में कथित मिश्रण मिलाकर अच्छी तरह मिलाकर, मूषा में बन्द करके तीब्राग्निमें धमाइये, । घोटिए। जब पारद और वह गन्धकादिका मिश्रण जब स्वर्ण माक्षिक शेष न रहे तो मूषाके ठण्डा भली भांति मिल जाय तो इस सबको कच्छप हो जाने पर स्वर्णको निकाल कर उसमें उतनी यन्त्रमें भरकर धातु बीजका जारण कीजिए, और ही स्वर्ण माक्षिक फिर मिलाकर, मूषामें बन्द फिर पारदको निकालकर उसमें वही ( नं. ३ में करके स्वर्ण माक्षिक अशेष होने तक तीब्राग्नि में कथित धातुबीजोंका मिश्रण १ निष्क मिलाकर धमाइये. इसी प्रकार स्वर्णमें १०० बार स्वर्ण ३ दिन तक लोहे के खरल में अग्नि के ऊपर माक्षिक जीर्ण करने से " स्वर्ण बीज" तैयार हो | घोटिए तत्पश्चात् उसमें समान भाग नं. ४ का जाता है, उसे, निकाल कर सुरक्षित रखिए। मिश्रण मिलाकर भली भांति घोटकर कच्छप यन्त्र । (२) इसी प्रकार चांदीमें समान भाग स्वर्ण में जारण कीजिए। माक्षिक १०० बार जीर्ण करके "रौप्य बीज" इस प्रकार १२ बार यही क्रिया करनेसे और वैसे ही ताम्र में स्वर्णमाक्षिक १०० वार समस्त धातु बीज पारदमें जीर्ण होकर " जारित जीर्ण करके ताम्रबीज तैयार कर लीजिए। . ! पारद" तैयार हो जायगा । १ एक बड़े बरतनमें पानी भर कर उसमें मिट्टीका अच्छा बड़ा कुण्डा रखिए । पानी इस कुण्डे के किनारों तक रहना चाहेए । अब धातु बीज मिश्रित पारदको एक मूषामें बन्द करके मूषाको सुखा कर उसे उपरोक्त कुण्डेमें रखिए और उस पर एक लोहेकी कटोरी ढककर जोड़को अच्छी तरह बन्द कर दीजिए। इसके बाद मूषाके चारों ओर खैरके कोयले भर कर सिलगा दीजिए । ( इसीका नाम कच्छप यन्त्र है।) For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy