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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir रसपकरणम् ] द्वितीयो भागः। [२०३] - - - - चाहिए और आम तथा कटहलके फल खाने और क्षय, और विशेषतः हाथ, शिर तथा शरीरका चन्दन तथा अगरका शरीरपर लेप करना चाहिए। कांपना आदि रोग नष्ट होते हैं। (१८७९) चतुर्भुजरसः जो वातज, पित्तज, या कफज रोग अन्य (र. सा. सं.; र. चं.; धन्वं.; र. रा. मुं. । उन्मा.) | सब औषधों, पञ्च कर्म, या मन्त्रादिसे भी शान्त | नहीं होते वह सब इससे अवश्य नष्ट हो जाते हैं। मृतसूतस्य भागो द्वौ भागैकंहेम भस्मकम् ।। इस “चतुर्भुज" रसका आविष्कार श्रीमहेश शिला कस्तूरिका तालं प्रत्येकं हेमतुल्यकम् ।। ने किया है। सर्व खल्लतले क्षिप्वा कन्यया मईयेद्दिनम् । | (१८८०) चतुर्मुखो रसः (१) एरण्डपत्रैरावेष्ट्य धान्यगर्भे दिनत्रयम् ॥ (र. सा. सं.; र. रा. सुं.; र. चं. । मुख.). संस्थाप्य च तदुद्धत्य सर्वरोगेषु योजयेत् ।। मृतं सूतं मृतं स्वर्ण द्वाभ्यां तुल्यां मनःशिलाम्। एतद्रसायनवरं त्रिफलामधुमर्दितम् ॥ विमर्दयेच्च तैलेन चातसीसम्भवेन च ॥ तद्यथाग्निबलं खादेवलीपलितनाशनम् । तद्गोलं वस्त्रतो वद्धवा लेपयेच्च समन्ततः। अपस्मारे ज्वरे कासे शोषे मन्दानले क्षये ॥ अतसीफलकल्केन दोलायन्त्रे व्यहं पचेत् ॥ हस्तकम्पे शिरःकम्पे गात्रकम्पे विशेषतः। उद्धत्य धारयेद्वक्ते जिह्वादन्तास्थरोगनुत् ॥ वातपित्तसमुत्थांश्च कफजान्नाशयेवुवम् ॥ पारद भस्म (अभावसे रस सिन्दूर) और स्वर्ण सर्वोपधिप्रयोगैर्ये व्याधयो न प्रसाधिताः। | भस्म १-१ भाग तथा शुद्ध मनसिल २ भाग लेकर कर्मभिः पञ्चभिश्चैव मन्त्रौषधिप्रयोगतः॥ सबको अलसीके तेलमें धोटकर गोला बना लीजिए सर्वीस्तान्नाशयत्याशु वृक्षमिन्द्राशनिर्यथा। | और उसे कपड़ेमें लपेट कर उसके ऊपर अलसीका " चतुर्भुजरसो" नाम महेशेन प्रकाशितः॥ कल्क लपेट कर उसे ३ दिन तक दोला यन्त्र पारद भस्म (अभावमें रस सिन्दूर) २ भाग, विधिसे अलसीके तैलमें पकाइये। पश्चात् स्वांग तथा स्वर्ण भस्म, मनसिल, कस्तूरी और हरताल शीतल होने पर औषधको निकालकर पीसकर भस्म, १-१ भाग लेकर सबको घृतकुमारीके | गोलियां बना लीजिए। रसमें १ दिन घोटकर गोला बनाकर उसे अरण्डके इन गोलियोंको मुंहमें रखनेसे जिह्वा, दांत पत्तोंमें लपेट कर अनाजके ढेरमें दबा दीजिए और और मुखरोगों का नाश होता है। तीन दिन पश्चात् निकालकर चूर्ण कर लीजिए। (१८८१) चतुर्मुखो रसः (२) इसे अग्निबलोचित मात्रानुसार त्रिफलेके चूर्ण (चिन्तामणि चतुर्मुखः) और शहदके साथ सेवन करनेसे, वलि (चेहरे । (र. चिं. म. । स्त. ११; भै. र.; र. चं.; र. सा. आदि की झुर्रियां), पलित (बाल सफेद होना), सं.; धन्वं.; र. रा. सु. । वातव्या.; रसें. चि. म. । अपस्मार (मिर्गी), ज्वर, खांसी, शोष, अग्निमांद्य, अ. ८; र. का. धे ; आ. वे. प्र. अ. १) For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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