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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir AnnnnvAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAA.NarvA... [२०२] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः। चकारादि मर्दनीयमभिधारणयुक्ते उसमें अन्य औषधोंका चूर्ण मिलाकर एक एक धूमहीनदहनोपरि संस्थे। भावना जम्बीरी नीबूके रस और अगस्तिके रसकी यावदेष जलशोषणदक्षो देकर १-१ वल्ल ( २ या ३ रत्ती की गोलियां . जीरकाकयुतेन स वल्लः ॥ . बना लीजिए। संग्रहज्वरमतिमृतिगुल्मा यह — चण्डाग्नि रस' अग्निको दीम नर्शसां च विनिहन्ति समूहम्। करता है । वासुदेवकथितो रसराजश् __ (अनुपान अद्रकका रस या उष्ण जल । ) चण्डसंग्रहगदैककपाटः॥ (१८७८) चण्डेश्वरो रसः ऊर्व पातन यन्त्र द्वारा निकला हुवा हिंगु- (भै. र.; र. रा. सुं.; वै. क. दु. । ज्वरा. ) लका पारद, शुद् गन्धक, सुहागे की खील, रसं गन्धं विषं तानं मर्दयेदेकयामकम् । अभ्रक भस्म और तालमखाना समान भाग आद्रकस्वरसे नैव मर्दयेत्सप्तवारकम् ॥ लेकर सबको लोहेके खरल में डालकर उसे धूम-निर्गुण्डया:स्वरसे पश्चान्मर्दयेत सप्तवारकम् । रहित अग्निपर रखकर खरल कीजिए । जब खरल गुज्जैकारसेनैव दत्तो हन्ति ज्वरं क्षणात ॥ इतना तप्त हो जाय कि उसमें पानी डालने से वातजं पित्तजं श्लेष्मद्विदोषजमपि क्षणात् । वह सूख जाय तो स्वांग शीतल होने पर औषध सुशीतलजले स्नानं तृषार्थे क्षीरभोजनम् ॥ को निकाल लीजिए । इसे १ वाल (२-३ रत्ती) आम्रञ्च पनसञ्चैव चन्दनागुरुलेपनम् । की मात्रानुसार जीरेके चूर्ण और अद्रकके रसके । एतत्समो रसो नास्ति वैद्यानां हृदयङ्गमः॥ साथ सेवन करनेसे संग्रहणी, ज्वर, अतिसार, गुल्म एष चण्डेश्वरो नाम सर्वज्वरकुलान्तकृत् ॥ और बवासीरका नाश होता है। शुद्ध पारा, शुद्ध गन्धक, शुद्ध मीठा तेलिया (१८७७) चण्डाग्निरसः (यो. त.। त. २४) और ताम्र भस्म; समान भाग लेकर १ पहर तक शुण्ठीपारदगन्धकामृतपटुश्रीपुष्पसटङ्कणम्। अच्छी तरह खरल कराइये । पश्चात् उसे अद्रक द्विह्निःशंखकपर्दकौ वसुगुणं कृष्णोषणं सद्रसात्॥ और संभालके स्वरसकी पृथक् पृथक् सात सात जम्बीरस्य परिस्रुतं दृढतरं सम्मघ मुन्या प्लवैः। भावना देकर सुरक्षित रखिए । सिद्धे बल्लमितोऽग्निदीप्तिकृदयं चण्डाग्निनामा रसः इसे १ रत्तीकी मात्रानुसार अद्रकके रसके सोंठ, शुद्ध पारद, शुद्ध गन्धक, शुद्ध मीठा · साथ देने से तत्क्षण उबर नष्ट हो जाता है। यह तेलिया, सेंधा नमक, लौंग, और सुहागा १-१ रस वातज, पित्तज, कफज, द्विदोषज, आदि भाग, शंख और कौड़ी भस्म २-२ भाग, तथा समस्त ज्वरों का नाश करता है। पीपल और स्याह मिर्च ८-८ भाग लेकर प्रथम इसके सेवनसे यदि ताप हो तो शीतल पारे गन्धककी कजली बना लीजिये, तत्पश्चात जलसे स्नान करना चाहिए। प्यासमें दूध पीना For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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