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[१८६]
भारत-भैषज्य-रत्नाकरः।
[चकारादि
इसका नाम शुक्त और चुक्र है । यह वातज, (१८१८) चक्रमर्दादिलेपः ( वं. से. । कु.) कफज और आम जनित अनेक रोगोंका नाश चक्रमर्दकबीजानि जीरकञ्च समांशकम् । करता है । इसके सेवनसे बवासीर, वायु, शूल, स्तोकं सुदर्शनामूलं दद्रुकुष्ठविनाशनम् ॥ गुल्म और उदर रोग नष्ट होते तथा अग्नि प्रदीप पंघाडके बीज और जीरा समान भाग तथा होती है।
| थोड़ीसी सुदर्शन (सुख दर्शन ) को जड़ एकत्र ( मात्रा-१ तोलेसे २ तोले तक ) । पीसकर लेप करनेसे दाद नष्ट होता है । (१८१६) चुक्रसन्धानम् (स्वल्प)
(१८१९) चक्रमर्दादिलेपः ( वं. से. । कु. ) ( बं. से. । अजीर्ण; भै. र. । ग्रह.)
चक्रमर्दकवीजश्च मूलकाम्बुप्रपेषितम् ।
दद्रुघ्नं लेपनं कुर्याच्छिामूलत्वचोऽथवा ॥ गुडक्षौदारणालानि समस्तूनि यथोत्तरम्।।
पंवाड़के बीज अथवा सहंजनेकी जड़की शंसन्ति द्विगुणा-भागान्सम्यक चुक्रस्प सिद्धये ॥ छालको मलीके रसमें पीसकर लेप करनेसे दाद यन्मस्त्वादि शुचौ भाण्डे सगुडक्षौद्रकाञिकम् । धान्यराशौ त्रिरात्रस्थं शुक्तं चुकं तदुच्यते ॥
(१८२०) चक्रमर्दादिलेपः (ग.नि.व.मा.।कुष्ट.) गुड़ १ भाग, शहद २ भाग, काजी ४ चक्रावीजं स्नुकक्षीरभावितं मूत्रसंयुतम् । भाग, मस्तु ८ भाग लेकर शुद्ध मृत्पात्रमें भरकर रवितप्तं सकिवं च लेपनं किटिभापहम् ॥ मुखपर कपरमिट्टी करके अनाजके ढेरमें दवा पंपाड़के बीजों को थोहर ( सेंड )के दूधकी दीजिए । और तीन दिन पश्चात् निकालकर छान | भावना देकर गोमूत्र में पीसकर धूपमें गर्म करके लीजिए । इसका नाम शुक्त और चुक्र है।
और समान भाग किण्व ( शराबकी गाद )में ॥ इति चकाराबासवारिष्टप्रकरणम् ।। मिलाकर लेप करनेसे किटिभ रोग ( कुष्ट भेद)
नष्ट होता है। अथ चकारादिलेपप्रकरणम् । (१८२१) चण्ड धादिलेपः ( रा. मा. । शि.)
चण्डीमुरानतविषाणदलैर्हरिद्रा (१८१७) चक्रमादिलेपः
मुस्तान्वितैःशिरसि यः कुरुते प्रलेपम् । (र. सा. सं. । कु.; रसे. चि. म. । अ. ९)
तस्योत्तमाङ्गमपहाय भजन्ति दूरं चक्रमर्दस्य बीजश्च दुग्धे पिष्ट्वा विमर्दयेत्। - केशद्रुहः सपदि दारुणकादिरोगाः ॥ गन्धर्वतैलसंयुक्तं मर्दनात्सर्वकुष्ठजित् ॥
शिवलिङ्गी, मुरामांसी ( मुरमुकी ) तगर, पंवाड़के बीजों को दूधमें पीसकर अरण्डके कूठ, तेजपात, हल्दी और नागरमोथेको पीसकर तेलमें मिलाकर लेप करनेसे सब प्रकारके कुष्ट नष्ट शिरमें लेप करनेसे केशोंको नष्ट करनेवाले दारहोते हैं।
णादि रोग शीघ्र नष्ट हो जाते हैं ।
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