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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir आसवारिष्टप्रकरणम् ] द्वितीयो भागः। [१८५] AAVAAAAAAAAA A AAAAAAAAANNARAN (१८१४) चित्रकाद्योऽरिष्टः (ग. नि. । ग्रह.) | रोचक, अग्निदीपक और स्रोतशोधक है। (मात्रा चित्रकत्रिफलापाठाचव्यानां ग्रन्थिकस्य च।। १ से २॥ तोले तक) विडङ्गदेवकाष्ठस्य भागान्कुर्याच्चतुष्पलान् ।। | (१८१५) चुक्रसन्धानम् (वृहद् ) कुष्ठभल्लातकेल्वालुवचानां मरिचस्य च । (ग. नि. । आस.; भै. र. । ग्रह.; वं. से. । अजी.) पिप्पलीकटुकेन्द्राहामुस्तानां स्युस्त्रयस्त्रयः॥ । पक्त्वाऽवशेषिताष्टांशे रसे तस्मिन्हते पुनः । प्रस्थं तण्डुलतोयतस्तुषजलात्प्रस्थत्रयं चाम्लतः। पूते दद्यान्मधुप्रस्थं गुडस्थातुलामपि । | प्रस्थाध दधितोऽथ मूलकपलान्यष्टौ गुडान्मानिका पञ्चकोलं समरिच त्रिफलां च पलाधकम् । मान्यौ शोधितशङ्गवेरशकलादे सिन्धुजातात्पले। संचूर्ण्य दद्यात्पत्रैलात्वङनागानां तथा पलम् ॥ द्वे कृष्णोषणयोनिशापलयुगं निःक्षिप्प भाण्डे दृढे।। मासार्ध घृतकुम्भेऽयं जातोरिष्टःप्रयोजितः। स्निग्वे धान्ययवादिराशिनिहितं चित्रकाय इति ख्यातो ग्रहणीदोषहा परम् ॥ त्रीवासरावासयेत्। पाण्डुरोगोदरप्लीहगुल्मशोफाशंसां मतः । ग्रीष्मे तोयधरात्यये च चतुरो वर्षासु पुष्पागमे। रोचनो दीपनश्चाग्नेः स्रोतसां च विशोधनः॥ पट् शीते ऽष्टदिनान्यतः परमिदं विस्राव्य चीता, हर्र, बहेड़ा, आमला, पाठा (जल संचूर्णितैः। जमनी), चव्य, पीपलामूल, बायबिडङ्ग और देवदारु चातुर्जातपलैस्सुसंहितमिदं शुक्तं च चुकं ततः॥ ४-४ पल; कूठ, भिलावा, एलवा, वच, मिर्च, हन्याद्वातककामदोषजनितान्नानाविधानामयान्। पीपल, कुटकी, इन्द्रायन और मोथा ३-३ पल दुर्नामानिलशूलगुल्मजठरान्हत्वा ऽनलं दीपयेत्।। (१५-१५ तोले) लेकर कूटकर (८ गुने पानीमें) चावलोंका पानी १ प्रस्थ (१ सेर ) काजी पकाकर आठवां भाग शेष रहनेपर छान लीजिए। ३ प्रस्थ, खट्टी दही आधा प्रस्थ, मूली आठ पल तत्पश्चात् उसमें १ प्रस्थ (८० तोले) शहद, (आधा सेर ), गुड आधासेर, अद्रक १ सेर, ५० पल गुड़ और आधा आधा पल पीपल, पीपला | सेंधा नमक २ पल (१० तो० ) पीपल मिर्च मूल, चव, चीता, सोंठ, मिर्च, हर्र, बहेड़ा और और हल्दी २-२ पल । सबको चूर्ण करके आमलेका चूर्ण तथा १-१ पल (५-५ तोले) मिट्टीके चिकने पात्रमें भरकर मुख बन्द करके दालचीनी, तेजपात, इलायची और नागकेसरका अनाजके ढेरमें दवा दीजिए; और ग्रीष्मऋतुमें ३ चूर्ण मिलाकर घृतसे चिकने मटके में भर कर उसके । दिन पश्चात् , प्रावृट् ऋतुमें चार दिन पश्चात् मुखपर शराव ढककर कपर मिट्टी कर दीजिए और वर्षा और बसन्त ऋतुमें ६ दिन पश्चात् तथा १५ दिन पश्चात् निकालकर छान लीजिए। शीतकालमें ८ दिन पश्चात् निकाल कर छान कर ___ यह चित्रकाचरिष्ट ग्रहणी, पाण्डु, उदररोग, । उसमें, १-१ पल दालचीनी, तेजपात, इलायची तिल्ली गुल्म, सूजन और बवासीर नाशक तथा | और नागकेसरका चूर्ण मिला दीजिए । भा. २४ For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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