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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir तैलप्रकरणम् ] द्वितीयो भागः। [१७७] - ___यह तैल पाण्डु, क्षय, खांसी, ग्रहदोष, मन्द- इसकी नसवार लेनेसे शिरके बालोंका गिरना ज्वर, अपस्मार, कुष्ट और पामा नाशक तथा बन्द होकर बाल धने और चिकने, भौरे के समान बलवर्द्धक, वर्णसंस्कारक, एवं बल, पुष्टि, ओज, काले तथा दृढ़ हो जाते हैं । एवं अकालमें बाल मेधा, आयु प्रज्ञा और सौन्दर्यवर्द्धक है। सफेद हो गए हों तो पुनः काले हो जाते हैं । (१७९३) चन्दनादितैलम् (वं.से । ज्वरा०) विधिः-तिल तैल १ सेर, भंगरेका रस ४ चन्दनोत्पलकाश्मयमधुकागुरुकल्ककः। । सेर, कल्क द्रव्य समान भाग मिश्रित पाव सेर । सिद्धं तैलं विधातव्यं वस्तौ सर्वज्वरापहम् ॥ (१७९५) चन्दनादितैलम् सफेद चन्दन, कमल, खम्भारीके फल, ( सु. सं. । चि. स्था. अ. २ । सद्यत्रण. ) मुलैठी और अगरके कल्क तथा ४ गुने पानीके | चन्दनं कर्कटाख्या च सहेमांस्याह्वथामृते । साथ सिद्ध किए हुवे तैलकी बस्ति लेनेसे समस्त | हरेणवो मृणालश्च त्रिफला पक्षकोत्पलम् ॥ प्रकारके ज्वर नष्ट होते हैं। | त्रयोदशाङ्गं त्रितमेदद्वा पयसान्वितम् । तैलं विपक्कं सेकार्थे हितं तु व्रणरोपणे। (विधि-तिल तैल १ सेर, जल ४ सेर सफेद चन्दन, काकड़ासिंगी, स्वर्णकारी और चन्दनादि प्रत्येक द्रव्य ४ तोले ) ( सत्यानाशी ), गिलोय, रेणुका, कमलनाल, हर्र, (१७९४) चन्दनादितैलम् बहेड़ा, आमला, पद्माक और निसोतके कल्क तथा (च. द.; चं. मा.; भै.र.; धन्वं.; र. र. । क्षुद्ररो.; दूधसे सिद्ध तैल लगानेसे घाव भर जाता है। आ. वे. वि. । अ. ८१; वृ.यो. त.। त. १२७) ( कल्कद्रव्य (चन्दनादि ) समान भाग चन्दनं मधुकं मर्वा त्रिफला नीलमुत्पलम्।। मिश्रित २० तोले, तैल ८० तो. दूध ४ शेर) कान्ता वटावरोहश्च गुडूची विसमेव च॥ (१७९६) चन्दनादियमकः लोहचूर्ण तथा केशी शारिवे द्वे तथैव च। ( वृ. मा.; ग. नि.; र. र.; च. द.; वं. से. । ब्रण; मार्कवस्वरसेनैव तैलं मृद्वग्निना पचेत् ॥ यो. र. । भन्न.; वृ. यो. त. । त. ११४ ) शिरस्युत्पतिताः केशा जायन्ते घनकुञ्चिताः। चन्दनं वटशुङ्गाश्च मञ्जिष्ठा मधुकन्तथा। दृढमूलाश्च स्निग्धाश्च तथा भ्रमरसन्निभाः॥ प्रपौण्डरीकं दूर्वा च पतङ्गं धातकी तथा ॥ : नस्येनाकालपलितं निहन्यात्तैलमुत्तमम् ॥ एतैस्तैलं विपक्तव्यं सर्पिष्क्षीरसमायुतम् । सफेद चन्दन, मुलैठी, मूर्वा, हर्र, बहेडा, अग्निदग्धवणे श्रेष्ठं तत्क्षणाद्रोपणं परम् ॥ आमला, नीलोफर, रेणुका, बड़के अङ्कर, गिलोय, चन्दन, बड़के अङ्कुर, मजीठ, मुलैठी, कमलनाल, लोहे का बुरादा, जटामांसी और दोनों पुण्डरिया, दूर्वा ( दूबड़ा ), पतङ्गकी लकड़ी, और प्रकारकी सारिवा । इनके कल्क और भांगरेके धायके फूल । इनके कल्क और दूधके साथ तैल स्वरससे मन्दाग्नि पर तैल पका लीजिए। तथा घृत मिलाकर पका लीजिए । भा० २३ For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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