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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [१७६] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः। [चकारादि - तिलका तेल ५ सेर, दशमूलका काढा ३० (१७९२) चन्दनादितैलम् सेर, दूध ३० सेर, कुलथी, वेर, जौ और खरैटीकी (हा. सं. । स्था. ३ अ. ९; वृ. नि. र. । पाण्डु) जड़का काथ ७० सेर (सब वस्तुएं समान भाग चन्दनं सरलं दारु यष्टयेला बालकं सठी । मिली हुई ७० सेर लेकर चार गुने पानीमें पका- नलशैलेय स्पृका पकं वनकेसरम् ॥ कर चौथाई शेष रहने पर छना हुआ काथ लेना कङ्कोलकं मुरामांसी सैरेयं हिहरीतकी। चाहिए।) | रेणुकात्वक कुङ्कमं च सारिवा तिक्तकागुरुः ।। सब वस्तुओंको एकत्र मिलाकर पकाएं। जब नालका च तथा द्राक्षा का सुपरिस्वतम् । पानी जलकर तैल मात्रशेष रह जाय तो उतारकर छान तैलमसूतया लाक्षारसेन समभागिकम् ।। लें । और उसमें सर्व गन्धको औषधे मिलाकर । गवकी औषधे मिलाकर मन्दामिना पचेत्तैलं सिद्धं पाने च वस्तिषु । स्वच्छ और उत्तम (कांचके) पात्रमें भरकर रखदें। नस्ये चाभ्यञ्जने चैव योजयेतं भिषग्वरः॥ हन्ति पाण्डं क्षयं कासं ग्रहघ्नं बलवर्णकृत् । इसके उपयोगसे सुकुमारी, धनवती, और मन्दज्वरमपस्मारं कुष्ठपामाहरं पुनः।। ऐशआराममें रहने वाली तथा गर्भवती स्त्रियोंकी करोति बलपुष्टयोनो मेधाप्रज्ञायुर्वर्धनम् । सौन्दर्य वृद्धि होती है। रूपसौभाग्यदं प्रोक्तं सर्वभूतयशस्करम् ।। यह तैल ८० प्रकारके वातरोग, विशेषतः सफेद चन्दन, चीरका बुरादा, देवद्वार, मुलेठी, वात रक्त, और सूतिकारोग, बालरोग, मर्माधात, | इलायची, नेत्रबाला. कचूर, तालीसपत्र, शिलाजीत, अस्थि भङ्ग, और क्षीगतामें अत्यन्त उपयोगी है। स्का, पद्माक, बनकेसर, कंकोल, मुरामांसी, कट यह जीर्णज्वर, दाहयुक्त और शीतयुक्त ज्वर, विषम सरैया, छोटी हर, बड़ी हरी, रेणुका ( संभालुके ज्वर, शोष, अपस्मार, और कुष्ठ रोग नाशक, तथा बीज ), दारचीनी, केसर, सारिया, कुटकी, अगर, वन्ध्या स्त्री, रोगग्रस्त, खुजली रोगसे पीड़ित, विशे नलिका और मुनक्का समान भाग लेकर चार गुने पतः रूक्षदेह और श्वेत कुष्टके रोगियों के लिए पानीमें पकाइये और चौथा भाग शेष रहने पर अत्यन्त हितकारक है। हरान लीजिए और इस काथमें इसका चौथाई तैल इसे सदैव व्यवहार में लानेसे कान्ति, लावण्य तथा उसके बराबर कची लाखक। क्वाथ ( चार और पुष्टिकी वृद्धि होती है। गुने पानीमें पकाकर चौथा भाग शेष रहा हुवा ) ___महर्षि आत्रेय निर्मित इस चन्दनादि तैलके मिलाकर मन्दाग्नि पर पकाइये जब तैल मात्र शेष उपयोगसे गलेसे ऊपरके किसी रोगके सहसा । रह जाय तो छान लीजिए । इसे रोगीको पिलाना आक्रमणका भय नहीं रहता और वृद्धावस्था और बस्ति, जम्ब तथा अभ्यङ्गद्वाग प्रयुक्त कराना नहीं आती। चाहिए । १ तैलमस्तु तथा लाजेति पाठान्तरम् । For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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