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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir घृतप्रकरणम् ] द्वितीयो भागः। [१७१] अस्रदोषे योनिदोषे मूत्रदोषे तथैव च ॥ और हिज्जल ४ भाग लेकर इनके कल्क ( और प्रयोक्तव्यमिदं सर्पिश्चित्रकाद्यं सदा बुधैः॥ चार गुने पानी ) के साथ घृत पका लीजिए। चीता, श्वेत सारिवा, खरैटी, कृष्ण सारिवा, यह घृत अथवा उक्त औषधोंका चूर्ण कफज मुनक्का, इन्द्रायणकी जड़, पीपल, त्रिफला, मुलैठी उदर रोगका नाश करता है । और आमलोंका १–१ कर्ष कल्क और १ द्रोण (१७८०) चित्रकादिघृतम् (१६ सेर ) दूध तथा १ द्रोण जलके साथ ४ (च. सं. । चि. स्था. अ. १७; वं. से.; धन्वं.; सेर घृत पका लीजिए, जब घृत मात्र शेष रह बूं. मा. । शोथ.; ग. नि. । घृत.) जाय तो छानकर उसमें १ प्रस्थ ( १ सेर ) सचित्रकं धान्ययवान्यजाजी' मिश्री, और १ प्रस्थ बंसलोचन मिला दीजिए। सौवर्चलं' व्यूषणवेतसाम्लम्। __इसे यथाकाल, दोष बलानुकूल मात्रामें पीनेसे बिल्वात्फलं दाडिमयावशूको मूत्रग्रन्थि, मूत्रावरोध, सोज़ाक, रक्त प्रदर, और सपिप्पलीमूलमथोऽपि चव्यम् ॥ अतिसारका नाश होता है। इस घृतको बस्ति पिष्ट्वाक्षमात्राणि जलाढकेन कुण्डली, रक्तप्रदर, योनिरोग, और मूत्ररोगोंमें भी पक्त्वा घृतपस्थमथो विदध्यात्। देना चाहिए। इसके सेवनसे स्त्रियोंको गर्भधारणकी शक्ति अशौसि गुल्मश्वयथुश्च दुःखम् प्राप्त होती है। तद्धन्ति वह्निं च करोति दीप्तिम् ॥ (१७७८) चित्रकादिघृतम् चीता, धनिया, जीरा, अजवायन, सौंचल, (च. सं. । चि. स्था. अ. २८) | त्रिकुटा, अमलबेत, बेलगिरी, अनारदाना, जवाखार, चित्रकं नागर रास्नां पौष्करं पिप्पलींशटीम। पीपलामूल और चव का कल्क १-१ कर्ष (१।-१। पिष्ट्वा विपाचयेत्सपिर्वातरोगहरं परम्॥ . तोला ) और १ आढक ( ४ सेर ) पानीके साथ चीता, सोंठ, रास्ना, पोखरमूल, पीपल और १ प्रस्थ ( १ सेर ) घृत पका लीजिए। कचूरके क क ( तथा चार गुने जल )से सिद्ध यह घृत बवासीर, गुल्म, और शोथ नाशक घृत वात रोगोंका नाश करता है। तथा अग्निदीपक है। (१७७९) चित्रकादिघृतम् (ग. नि.। उदरा.) । (१७८१) चित्रकाद्यं घतम् चित्रको हिङ्ग च समं त्रिवृदद्वयंशाच सातला। ( वं. से.; यो. र. । गुल्म.; सु. सं.।उ.त. अ.४२) चतुर्गुणानि दन्त्याहनिचुलानि च तैघृतम् ॥ चित्रक योषसिन्धूत्थपृथ्वीकाचव्यदाडिमैः। सिद्धं कफोदरे तद्वन्वर्ण वा चित्रकादिकम्। दीप्यकग्रन्थिकाजाजीहपुषाधान्यकैःसमैः॥ चीता १ भाग, हींग १ भाग, निसोत २ | दध्यारनालबदरमूलकस्वरसैघृतम् । भाग और सातला २ भाग, दन्तीमूल ४ भाग | तत्पिवेद्वातगुल्मानिदौर्बल्याटोपशूलनुत् ॥ १ यवानिपाठति पाठान्तरम् । २ सदीप्यकेति पाठान्तरम् । - For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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