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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir घृतपकरणम् ] द्वितीयो भागः। [१६७] (१७६५) चव्यादिघृतम् (हा.सं.स्था.३अ.११) सज्जीखार और पांचों नमकका महीन चूर्ण मिला चव्यपाठात्रिकटुमगधामूलकुस्तुम्बरूणाम् दीजिए । विल्वाजाजी रजनि सुरसा पथ्यया सैन्धवश्च। इसे यथोचित मात्रानुसार पीनेसे क्षयकासका पिष्टवा चैतत् समगविघृतं पाचयेत्सुप्रयुक्तम् नाश होता है। पानाभ्यङ्गे हरति गुदजान् वातरोगाश्मरीश्च॥ (१७६७) चव्याद्यं घृतम् चव, पाठा, सोंठ, मिर्च, पीपल, पीपलामूल, (वं. से. । अर्श.; वृ. नि. र.। संप्र.; ग. नि । घृता.; कुस्तुम्बरु, बेलकी छाल, जीरा, हल्दी, तुलसी, च. द.;. मा. । अर्शा.; च. सं. । चि.स्था. अ.८) हैड और सेंधानमकके कल्क (तथा चार गुने पानी) के साथ गायका घी पका लीजिए। चव्यं त्रिकटुकं पाठा क्षारं कुस्तम्बुरूणि च, इसे पिलाने और मालिश करानेसे बवासीरके यवानी पिप्पलीमूलमुभे च विडसैन्धवे।। मस्से, वातरोग और पथरीरोगका नाश होता है। चित्रकं बिल्वमभयां च पिश्वा सर्पिर्विपाचयेत्, (विधिः-गोघृत ५२ तो., कल्क द्रव्य सकृद्वातानुलोम्याथै जले दन्नि चतुर्गुणे ॥ प्रत्येक १ तो., पानी २०८ तो.।) प्रवाहिकां गुदभ्रंशं मूत्रकृच्छू परिवम् , ___मात्रा---१ तो. से १॥ तोले तक, गर्म गुदवङ्क्षणशूलश्च घृतमेतद्वयपोहति ।। दूधके साथ चव, सोंठ, मिर्च, पीपल पाठा, जवाखार, (१७६६) चव्यादिघतम (वा.भ.।चि.स्था.अ.२) कुस्तुम्बरु (नैपाली धनिया), अजवायन, पीपलामूल, चविका त्रिफला भाजी दशमूलैः सचित्रकैः बिड़नमक, सेंधानमक, चीता, बेलकी छाल, हैड़ । इनके कल्क और घीसे चार गुने दही तथा पानी कुलत्थपिप्पलीमूलपाठाकोलयवैर्जले । श्रुतै गरदु'स्पर्शपिप्पलीशठिपौष्करः के साथ घृत सिद्ध कर लीजिए। पिष्टैःकर्कटशृङ्गया च सभैःसपिर्विपाचयेत् ॥ यह घृत वातानुलामन, प्रवाहिका (पेचिश), भासोपान गुदभ्रंश (कांच निकलना), मूत्रकृच्छ्र, मूत्रातिसार, दत्वा युक्त्या पिबेन्मात्रां क्षयकासनिपीडितः। गुदशूल जौर वंक्षणशूलका नाश करने वाला है। ___काथ्य द्रव्य---चव, हर्र, बहेड़ा, आमला, (१७६८) चाङ्गेरीघृतम् (ग. नि. । घृता० १) भारंगी, दशमूल, चीता, कुलथी, पोपलामूल, पाठा, पिप्पली नागरं पाठा यवानी विश्वभेषजम्: बेर, और जौ। | भागांत्रिपलिकान् कृत्वा कषायमुपकल्पयेत् । कल्क द्रव्य-सोंठ, धमासा, पीपल, कचूर भार्गी च पिप्लीमूलं व्योष चव्यं सचित्रकम्। पोखरमूल और काकड़ा सिंगी। श्वदंष्ट्रा पिप्पली धान्यं बिल्वं पाठा यवानिका ॥ विधिः-काथ्य द्रव्योंके काथ और कल्क एतैः पलार्धकैव्यैः कृत्वा कल्क विपाचयेतः द्रव्योंके कल्कके साथ घी पकाकर उसमें जवाखार, पलानि सर्पिषस्तस्मिन् चत्वारिंशत्समावपेत् । For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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