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गुटिकाप्रकरणम्
द्वितीयो भागः।।
[ १५७]
___मानतः
भक्षयेत् प्रातरुत्थाय पश्चादुष्णोदकं पिबेत् । चिन्तामणिवटिका ( र. का. धे.) परिणामोद्भवं शूलं हन्ति शूलं नरस्य च ॥ । रस प्रकरणमें देखिए । ___चीता, निसोत, दन्तीमूल, बायबिडंग, सोंठ, ! चूलिकावटी ( भै. र. । उद.) मिर्च और पीपलका समान भाग चूर्ण सबके बराबर रस प्रकरण में देखिए । गुड़की चाशनीमें मिलाकर मोदक बना लीजिए। (१७४७) चतुःसममण्डूरम् इन्हें ( १ तोलेकी मात्रानुसार ) प्रातःकाल
(भै. र. धन्वं. । शूल.) उष्ण जलके साथ सेवन करनेसे परिणाम शूल
सद्यो लोहमलाज्यमाक्षिकसिता भागाः समाः नष्ट होता है ॥
पात्रे ताभ्रमये दिनान्तमथितं संस्थापयेदातपे। (१७४६) चित्रकादिवटकः (वृ.नि.र.।शूल.)
पश्चात्तद्धनतां प्रणीय रजनीमेकं बहिःस्थापयेत चित्रकं लवणं पाठा व्योषं लवणपञ्चकम्। अजाजी धान्यकं हिंस्रा दीप्यकं ग्रन्थिकं तथा।।
| पात्रे ताम्रमये निधेयमथवा पात्रे हविर्भाविते॥ एतानि समभागानि सूक्ष्मचूर्णानि कारयेत् ।
पश्चान्माषचतुष्टयं प्रतिदिनं जग्ध्वा जलं शीतलं
पेयं भोजनपूर्वमध्यविरतौ स्वच्छन्दभोज्यैनरैः । जम्बीरस्य रसेनैव वटकान्कारयेद्बुधः॥ हृच्छूलं पार्श्वशूलश्च आमशूलमरोचकम्।
जेतुं शूलहुताशमान्धकसनश्वासाम्लपित्तज्वरोअशीतिं वातजान् रोगान् नाशयेच तत्क्षणात् ॥
न्मादापस्मृतिमेहसर्वजठराजीर्णादिसर्वा रुजः॥
शुद्ध मण्डूर, घी, शहद और मिश्री समान चीता, सेंधानमक, पाटा, सोंठ, मिर्च, पीपल,
भाग लेकर १ दिन तांबेके पात्रमें घोटकर धूपमें सेंधा नमक, सौंचल (काला नमक), खारी नमक,
रख दीजिए, जब गाढ़ा हो जाय तो उसे १ रात कचलोना ( काच नमक ) समन्दर नमक, जीरा,
ओसमें रखिए । पश्चात् उसे तांबेके या घृतसे धनिया, कटैली, अजवायन और पीपलामूलका
चिकने किए हुवे मिट्टीके पात्रमें भरकर रख दीजिए। चूर्ण समान भाग लेकर सबको जम्बीरी नीबूके
इसे भोजनके आदि, मध्य और अन्तमें ४ रसमें घोटकर गोलियां बना लीजिए।
माशेकी मात्रानुसार शीतल जलके साथ सेवन ___ इन्हें (३-४ माशेकी मात्रानुसार गर्म पानीके
करनेसे शूल अग्निमांद्य, खांसी, श्वास, अग्लपित्त, साथ ) सेवन करनेसे हृच्छूल, पसलीका दर्द, आम
ज्वर, उन्माद, अपस्मार (मिर्गी) प्रमेह, समस्त उदर शूल, अरुचि और अस्सी प्रकारके वातज रोग
विकार और अजीर्णादि समस्त रोग नष्ट होते हैं। नष्ट होते हैं।
इसके सेवन कालमें भोजन स्वच्छन्दतापूर्वक चिन्तामणिगुटिका ( र. का. धे. । ज्व. ) ।
कर सकते हैं; किसी प्रकारके परहेजकी आवश्यकता रस प्रकरणमें देखिए ।
| नहीं है। चिन्तामणिरसगुटिका ( यो. चि.)
॥ इति चकारादिगुटिकाप्रकरणम् ॥ रस प्रकरणमें देखिए ।
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