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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [१५४ ] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः। [चकारादि इसके नित्य सेवन करनेसे २० प्रकारके अन्त्रवृद्धिं कटीशूलं श्वासं कासं विचचिकाम् । प्रमेह, शुक्रदोष और वलि ( शरीरकी झुर्रियां ) | कुष्ठान्यासि कण्डूं च प्लीहोदरभगन्दरम् ॥ पलित ( बालोंका सफेद होना ) रोग नष्ट होकर दन्तरोगं नेत्ररोगं स्त्रीणामार्त्तवजां रुजाम् । वृद्ध भी तरुणके समान हो जाता है। पुंसान्शुक्रगतान् दोषान्मन्दाग्निमरुचिं तथा ॥ ( मात्रा--१॥-२ माशे । साधारण अनुपान | वायुं पित्तं फर्फ हन्यावल्या वृष्या रसायनी । मिश्रीयुक्त दूध । अथवा जिस रोगमें व्यवहृत करनी | चन्द्रप्रभायां कर्षस्तु चतुःशाणो विधीयते ॥ हो उसको नष्ट करनेवाली ओषधिके काथके साथ कचूर ( मतान्तरमें बाबची ), बच, मोथा, खाएं) चिरायता, देवद्वार, हल्दी, अतीस, दारुहल्दी, (१७३९) चन्द्रप्रभावटी पीपलामूल, चीता, धनिया, हर्र, बहेड़ा, आमला, चव, बायबिडंग, गजपीपल, सोंठ, मिर्च, पीपल, (शा. स. । म. ख. अ. ७; नपुं. मृ. । त. ७; सोनामक्खी भस्म, यवक्षार, सजीखार, सेंधानमक, भै. र.; वै. र. । प्रमे. चि.; वृ. यो. त.। त. १०३) कालानमक और समुद्र नमक ५-५ माशे तथा चन्द्रप्रभा वचा मुस्तं भूनिम्बामृतदारुकम्। निसोत, दन्तीमूल, तेजपात, दारेचीनी, इलायची हरिद्रातिविषा दार्वी पिप्पलीमूलचित्रकौ ॥ और बंसलोचन १-१ कर्ष (२० माशे ) एवं धान्यकं त्रिफला चव्यं विडङ्गं गजपिप्पली। लोहभस्म २ कर्ष, मिश्री ४ कर्ष, शिलाजीत ८ व्योष माक्षिकधातुश्च द्वौ क्षारौ लवणत्रयम् ॥ कर्ष और गूगल ८ कर्ष लेकर सबका महीन चूर्ण एतानि शाणमात्राणि प्रत्येकं कारयेद्वधः। करके गोलियां बना लीजिए ।* यह चन्द्रप्रभा गुटिका' वीस प्रकारके प्रमेह, त्रिसदन्तीपत्रकश्च त्वगेला वंशरोचना ॥ मूत्रकृच्छ्र, मूत्राधात, पथरी, मलावरोध, अफारा, प्रत्येकं कर्षमात्राणि कुर्यादेतानि बुद्धिमान्।। शूल, भेहनग्रन्थि ( मूत्रग्रन्थि ), अर्बुद ( रसौली), द्विकर्ष हतलौहं स्थाचतुष्कर्षा सिता भवेत् ॥ अण्डवृद्धि, पाण्ड, कामला, हलीमक, अन्त्रवृद्धि, शिलाजत्वष्टकर्ष स्यादष्टौ कर्षांश्च गुग्गुलोः। कटिशूल, घास, खांसी, विचर्चिका, कुष्ठ, अर्श एभिरेकत्र संक्षुण्णैःकर्तव्या गुटिका शुभा॥ (बवासीर ), खुजली, तिल्ली, भगन्दर, दन्तरोग, चन्द्रप्रभेति विख्याता सर्वरोग प्रणाशिनी। नेत्ररोग, स्त्रियोंकी आर्तव पीड़ा, पुरुषों के शुक्रविकार, प्रमेहान्विशतिं कृच्छं मूत्राघातं तथाश्मरीम् ॥ मन्दाग्नि, अरुचि, वात, पित्त और कफनाशक तथा विबन्धानाहशूलानि मेहनग्रन्थिमबुंदम्। बल्या, वृष्या और रसायनी है । अण्डवृद्धि तथा पाण्डं कामलां च हलीमकम्॥ मात्रा--१॥-२ माशा । अनुपान-मिश्री * नोट-१-भैषज्य रत्नावलीमें कचूरसे लेकर चीते तककी समस्त ओषधे १-१ कर्ष लिखी हैं शेष प्रमोग समान है । २ वृ. यो. त. में विफलेके अतिरिक्त शेष प्रयोग समान है। For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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