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चूर्णप्रकरणम् ]
द्वितीयो भागः।
[१४९]
शुद्ध मण्डूरका चूर्ण ६ पल (३० तोले) चीता, पीपलामूल, पीपल, गजपीपल, हींग, हर्रका चूर्ण ५ कर्ष (६। तोले ), खिरिया मिट्टी पोखरमूल, अनारदाना, कालाजीरा, बायबिडंग, ५ कर्ष, पारा आधा कर्ष, गन्धक आधा कर्ष, चीता, थनिया, हाऊबेर, सोया, हिंगुपत्री, चव, अमलवेत, सोंठ, पीपल, छोटी इलायची, तेजपात, खरैटी, जीरा, अजवायन, कचूर, बच, तुम्बुरु (नेपाली नागरमोथा, अजवायन, धनिया, राल, बहेड़ा, धनिया) अजमोद, अजवायन, और कालानमक आमला, बायबिडंग, शंखकी नाभि, अर्जुनकी छाल, समान भाग तथा सबके बराबर सोंठ लेकर महीन असन (पीतशाल) की छाल और चिरचिटेकी जड़ चूर्ण करके बिजौ रे नीबूके रसमें घोटकर सुखा का चूर्ण १-१ कर्ष लेकर एकत्र खरल करके | लोजिए। घृतके चिकने पात्रमें भरकर रख दीजिए।
इसे १ कर्ष (१। तोले) की मात्रानुसार ___इसे १ कर्ष या आधे कर्षकी मात्रानुसार उष्ण जलके साथ सेवन करनेसे, सर्वांगशूल, उदर उष्ण जलके साथ भोजनके पश्चात् खाकर पान शूल पसलीकाशूल, बवासीर, उदररोग (प्लीहादि) खा लिया कीजिए। इसके सेवनसे अग्निवृद्धि गुल्म और आमवातका नाश होता है । होती और आठ प्रकारके शूल, विशेषतः परिणाम
यह चित्रकादि चूर्ण' अत्यन्त अग्निदीपक है। शूल, अन्नद्रव शूल, यकृत् शूल और सीह शूल नष्ट होता है। शूलके लिए इससे उत्तम अन्य
(१७२७) चित्राङ्गधादिचूर्णम् औषध नहीं है।
(ग. नि. । ज्वरा. १) ___ यह कामला, पाण्डु और हलीमक रोगको चित्राङ्गी सिंहवदनस्ताम्रमली महौषधम् । भी नष्ट करता है ।
| पयोधरशिवं काली चूर्णमुष्णाम्बुसंयुतम् ॥ (१७२६) चित्रकाद्यं चूर्णम् (ग. नि.। चूर्णा.) प्रपीतं विषमं हन्ति जठरानलदीपनम् ।। चित्रकं पिप्पलीमूलं पिप्पली गजपिप्पली।।
मजीठ, बासा, धमासा, सौंठ, नागरमोथा, हिङ्गु पुष्करमूलञ्च दाडिमं कृष्णजीरकम् ॥
आमला और कलौंजीके समान भाग मिश्रित चूर्ण विडङ्गधान्यहपुषाशताबाहिङ्गपत्रिकाः।
को (३ माशेकी मात्रानुसार) उष्ण जलके साथ चव्याम्लवेतसाजाजीवस्तगन्धाशठीवचाः ॥
सेवन करनेसे विषमज्वर नष्ट होता और अग्नि तुम्बरूण्यजमोदा च यवानी रुचकं तथा। ।
प्रदीस होती है। समभागानि सर्वाणि सर्वैस्तुल्यं तु नागरम् ।। सूक्ष्मचूर्ण ततः कृत्वा मातुलुङ्गेन भावयेत् ।
(१७२८) चिन्तामणि चूर्णम् (वै.जी ।वि.३) ततो विडालपदकं पिबेदुष्णेन वारिणा ॥
रास्तावलापद्मकदेवदारु जयेत्सर्वाङ्गजं शूलं कोष्ठगं कुक्षिगं तथा ॥
फलत्रिकषणवेल्लचूर्णम् । अर्शीजठरगुल्मघ्नं दीपनीयं विशेषतः । चिन्तामणि क्षौघृतोपपन्नं चित्रकाद्यमिदं चूर्णमामवातहरं परम् ।।
श्वासं च कासं च निराकरोति ।।
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