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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [१४८] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [ चकारादि P/ v vvvvvvvvvvvvvnrvvvvmoovvvvvvvvvvvvvvivvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvww. एतदामसमुत्थानमविसारं सवेदनम् । | (१७२४) चित्रकादिचूर्णम् (बृ.मा.;यो.र.।ग्रह.) कफात्मकं सपित्तं च वर्ची बध्नाति वै ध्रुवम् ॥ चित्रकं हपुषा हिङ्ग दद्याद्वा तक्रसंयुतम् ॥ चीता, पीपलामूल, बच, कुटकी, पाठा, पञ्चकोलकयुक्तं वा तक्रेणैव प्रदापयेत् ॥ इन्द्रजौ, हर्र और सोंठके चूर्णको (गर्म पानीके ___ संग्रहणीकी शान्तिके लिए चीता, हाऊबेर साथ १॥-२ माशेकी मात्रानुसार) सेवन करनेसे और हींगके चूर्णको अथवा पञ्चकोल (पीपल, वेदनायुक्त आमातिसार, कफातिसार और पित्ताति- | पीपलामूल, चव, चीता, सोंठ ) सहित इनके सारका नाश होता तथा मल बंध जाता है। चूर्णको तक्रके साथ पिलाना भी हितकर है। (१७२२) चित्रकादिचूर्णम् (१७२५) चित्रकादिचूर्णम् (र. र. । शू.) (यो. र.; वं. से. । आमवा,. वृ. यो. त.। त. ९३) चित्रकं कटुका पाठा कलिङ्गातिविषामृताः।। शुद्धलोहमलाचूर्ण षट्पलं पञ्चकार्षिकम् । देवदारु वचा मुस्ता नागरातिविषाभयाः॥ हरीतक्या:कठिन्याश्च रसगन्धकयोःपृथक् ।। पिबेदुष्णाम्बुना नित्यं चूर्णमाममरुत्प्रणुत ॥ अर्धकर्ष ततःकर्ष चित्रकं नागरं कणा। चीता, कुटकी, पाठा, इन्द्रजौ, अतीस, गिलोय सूक्ष्मैला तेजपत्रश्च वाटयालं भद्रमुस्तकम् ॥ देवद्वार, बच, मोथा, सोंठ अतीस और हर्र के थवानीधान्यकं धूपं विभीतक्यामलक्यपि। . समभाग मिश्रित चूर्णको (२-३ माशे की मात्रा- विडङ्गं शङ्खनाभिश्च अर्जुनाशनयोस्त्वचः ॥ नुसार) गर्म जलके साथ सेवन करनेसे आमवात | अपामार्गभवं मूलं सर्वमेकीकृतं शुभम् । (गठिया) रोग नष्ट होता है । पीठोपरि पदं न्यस्य प्रस्तये घृतभाजने ॥ नोट-अतीस २ भाग और अन्य सब पदार्थ भुक्तोपरि च तचूर्ण कर्ष कामाचरेत् । १-१ भाग लेने चाहिएं । अथवा आधे आधे तप्तोदकानुपानश्च ताम्बूलं भक्षयेत्ततः ॥ श्लोकद्वारा कथित (६-६ ओषधियोंके) दो प्रयोग ततो भूमौ पदं दत्वा भूमे किश्चिद्यथा सुखम् । भी हो सकते हैं। प्रत्यहं भक्षयेद्भक्त्या वह्निसन्दीपनं परम् ।। (१७२३) चित्रकादिचूर्णम् (वृ. नि.र.।कास.) शूलमष्टविधं हन्ति विशेषात्परिणामजम् । चित्रकं पिप्पलीमूलं पिप्पली गजपिप्पली। अन्नद्रवं कृतं शूलं यकृत्प्लीहकृतश्च यत् ।। एतचूर्ण समं युक्तं मधुना श्लेष्मकासनुत् ॥ । शूलानामपि सर्वेषामौषधं नास्ति तत्परम् । ' चीता, पीपलामूल, पीपल और गजपीपलके कामलापाण्डुरोगघ्नं हलीमकविनाशनम् ॥ 'चूर्णको (१॥-२ माशेकी मात्रानुसार) शहद में मानवानां कृपाहेतोर्देवदेवेन निर्मितम् । मिलाकर चाटनेसे कफज खांसी नष्ट होती है। चित्रकाद्यमिदं चूर्ण सर्वशूलान्तकं मतम् ॥x x नोट-यह अन्तिम श्लोक किसी अन्य प्रयोग का प्रतीत होता है और लेखककी भूलसे यहां लिखा गया है, एवं इसीकारण इस योगका नाम भी “चित्रकादि" रखना पड़ा है। For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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