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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [१४२] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः। [चकारादि सफेद चन्दनको गिलोयके रसमें पीसकर पीना सफेद चन्दन, खस, मजीठ, पटोलपत्र, नागरचाहिए। मोथा, नेत्रबाला, महुवेके फूल, मुलैठी, लाल चन्दन, ( मात्रा -... ? |-२ माशा ) । सारिवा, जीरा, कैवर्तमुस्तक, पद्माक और पुनर्नवा १६९६) चन्दनादिचूर्णम् (आ.वे.वि.अ.६८) समान भाग लेकर चूर्ण कर लीजिए । रक्ताङ्गबब्बूलरसः प्रियङ्ग इसे खांउयुक्त दृधके साथ सेवन करनेसे पित्तजम्बाम्रवीजेन्द्रयवं यमानी। रोग शान्त होते हैं। वन्या च सा मोचरसो गुडूची । (१६९८) चन्दनादिचूर्णम् . लौहस्य भस्म सममेव सर्वम् ।! ( भै. र. । स्त्री.; ग. नि. । चूर्णा, ; बूं. मा.; यो. मात्रैकमासप्रमिता विधेया र । रक्त. पि.; यो. त. । त. २६; र. र. प्रदर; प्रोक्तं महेशेन च चन्दनादिः । वृ. यो. त, । त. ७५) चूर्ण प्रमेहान् सकलांश्च तूर्णम् चन्दनं नलदं लोध्रमुशीर पद्मकेशरम् । ___ सपूयरक्तं लसिकारख्यमेहम् ॥ नागपुष्पश्च बिल्वश्च भद्रमुस्तश्च शर्करा ॥ सोपद्रवं हन्ति तथानिमान्य तृष्णाज्वरारोचकरोगसंघान् ॥ हीवेरश्चैव पाठा च कुटजस्य फलत्वचम् । शृङ्गवेरं सातिविषा धातकीच रसाञ्जनम् ।। लाल चन्दन, कीकरका गोंद, फूलप्रियंगु, आम्रास्थि जम्बुसारास्थि तथा मोचरसोद्भवः । जामन और आमकी गुठली, इन्द्रजौ, अजवायन, नीलोत्पलं समगा च मूक्ष्मैला दाडिमोद्भवम्॥ अजमोद, मोचरस, गिलोय और लोहभस्म समान चतुर्विंशतिभेतानि समभागानि कारयेत् । भाग लेकर चूर्ण कर लीजिए। तण्डुलोदकसंयुक्तं मधुना सह योजयेत् ॥ ___ इसे १ माशेकी मात्रानुसार सेवन करनेसे चतुष्प्रकारं प्रदरं रक्तातीसारमुल्वणम् । पीप और रक्तयुक्त प्रमेह, लसिका प्रमेह तथा अन्य रक्तार्शासि निहन्त्याशु भास्करस्तिमिरं यथा॥ समस्त प्रकारके उपद्रवयुक्त प्रमेह और अग्निमांद्य, अश्चिन्योःसम्मतो योगो रक्तपित्तनिवणः॥ तृष्णा,ज्वर और अरुचिका नाश होता है। (एतानि चूर्णानि समभागानि एकीकृत्य माषक(१६९७) चन्दनादिचूर्णम् | चतुष्टयं तण्डुलोदकेन मधुना च सह योजयेत् ) ( हा. सं.। स्था. ३ अ. ५१) __सफेद चन्दन, नल, लोध, खस, कमलकेसर, चन्दनोशीरमञ्जिष्ठा पटोलं घनवालकम। नागकेसर, बेलगिरी, नागरमोथा, खांड, नेत्रबाला, मधुकं मधुयष्टी च तथा लोहितचन्दनम् ।। | पाठा, कुडेकी छाल, इन्द्रजौ, सोंठ, अतीस, धायके सारिवा जीरकं मुस्तं पद्मकञ्च पुनर्नवा । फूल, रसौत, आम और जामनकी गुटलीकी मांगी क्षीरेण शर्करायुक्तं पानं पित्तोद्भवे गदे ॥ ( गिरी ), मोचरस, नीलोफर, मजीट, छोटी For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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