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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org चूर्ण प्रकरणम् ] अथ चकारादि चूर्ण प्रकरणम् । (१६८९) चणकाद्युद्भूलनम् (बृ.नि.र. । ज्वर.) अथवा चणकाः भ्रष्टा यवानीचूर्णमिश्रिताः । वचोषणारजोयुक्ता स्वेदसंशोषणा मताः ॥ भुने हुवे चने, अजवायन, बच और स्याह मिर्च समान भाग लेकर पीसकर मालिश करने से अधिक पसीना आना रुक जाता है । (१६९०) चतुःसमचूर्णम् (वृं. मा.; भै. र.; धन्वं. । शूला.) atori सैन्धवं पथ्या नागरञ्च चतुःसमम् । चूर्ण शूलं जयत्याशु सन्नष्टस्याग्नेश्च दीपनम् ॥ अजवायन, वानमक, हर्र और सोंठका समान भाग चूर्ण (२-३ माशेकी मात्रानुसार उष्ण जल के साथ) सेवन करनेसे शूल नष्ट होता और अनि दीप्त होती है। द्वितीयो भागः । (१६९१) चतुःसमप्रयोगः (बृ.मा. अर्श . ) तिलभल्लातकं पथ्या गुडश्चेति समांशकम् । दुर्नामश्वासकासह पाण्डुज्वरापहम् ॥११ तिल, शुद्ध भिलावा, हर्र और गुड़ समान भाग मिलाकर सेवन करने से बवासीर, श्वास, खांसी, तिल्ली, पाण्डु और बरका नाश होता है। (१६९२) चतुर्दशाङ्गलौहः (यो. र. । क्षय.;यो. त. । त. २७;यू. यो. त. त. ७६) रास्ताकर्पूरताली भेकपर्णी शिलाजतुः । त्रिकटु त्रिफला मुस्ता विडङ्गदहनाः समाः || चतुर्दशायसो भागास्तच्चूर्ण मधुसर्पिषा । लीढं कासं ज्वरं श्वासं राजयक्ष्माणमेव च ॥ बलवर्णापुष्टीनां वर्धनं दोषनाशनम् । [ १४१ ] तालीस पत्र, भेकपर्णी (मण्डूक रास्ता, कपूर, पर्णा - त्राह्मी भेद ) शिलाजीत, सोंठ, मिर्च, पीपल, हर्र, बहेड़ा, अमला, मोथा, बायबिडंग, और चीतेका चूर्ण १-१ भाग तथा शुद्ध लोह चूर्ण ( भस्म लेना उत्तम है ) १४ भाग लेकर एकत्र खरल कीजिए । Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir इसे शहद और घीके साथ सेवन करने से खांसी, वास, वर और राज यक्ष्माका नाश होता तथा बलवर्ण, अग्नि और पुष्टिकी वृद्धि होती है । (लोहपूर्ण युक्तकी मात्रा १ माशा | भस्म युक्तकी मात्रा ४ रत्ती । धी ६ माझे, शहद, २ तो. ।) (१६९३) चन्दनचूर्णयोगः ( वृं. मा., वं. से, ग. नि. । छर्दि ) चन्दनेनाक्षमात्रेण संयोज्यामलकीरसम् । पिषेन्माक्षिकसंयुक्तं छर्दिस्तेन निवर्त्तते ॥ १ क (१ । तोले) सफेद चन्दनको आमले के रस और शहद में मिला कर पीनेसे वमन शान्त होती है । (१६९४) चन्दन योग : ( वृ.यो.. । त. ६४ ) पीतं मधुसितायुक्तं चन्दनं तण्डुलाम्बुना । रक्तातिसार जिद्रक्तपित्ततृदाहमोहनुत् ॥ मिलाकर चावलों के पानी के साथ पीने से रक्तातिसार सफेद चन्दन के चूर्ण में शहद और मिश्री पित्त, पिपासा, दाह और मोह नष्ट होता है । (१६९५) चन्दनयोगः ( वै.म.र. | पटल ११ ) शीतपित्तशमनाय चन्दनं छिन्नरोहरसपेषितं तथा । शीतपित्त ( पित्ती ) की शान्तिके लिए For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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