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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org रसप्रकरणम् ] (घृतकुमारीर) के रस में पकाइये (धीकुमारके रसमें भिगोकर २१ दिन तक धूप में रखिए, जब रस कम हो जाय तो और डाल दिया कीजिए | ) इसे १ कर्ष (१। तोले) की मात्रानुसार दूधके साथ १ वर्ष तक निरन्तर सेवन करनेसे दिव्यदृष्टि और दीर्घायु प्राप्त होती है । द्वितीयो भागः । ( व्यवहारिक मात्रा - - १॥ माशा ) (१५३७) गन्धकशुद्धिः (यो . चि . । मिश्रा.; यो त । त. १७; वृ. यो त । त. ४३) दु घृते निम्बर से भृङ्गराजर सेथवा । गन्धकं शोधयेत्प्राज्ञो दोलायन्त्रेण वाससा ॥ दुग्धभाण्डेऽपि पटस्थितोयं शुद्धोभवेत्कूर्मपुटेन गन्धम् । सदुग्धभाण्डस्य मुखेषु वस्त्रं बवा क्षिपेद्रन्धकसूक्ष्मखण्डान् ॥ समुद्रयित्वा समिता दिनात्तत् मन्दाशिना यामयुगं पचेच | गन्धकके चूर्णको वस्त्रमें बांधकर दूध, घी, नीमके रस, और भांगरेके रसमेंसे किसी एक द्रवमें दोलायन्त्र विधिसे पकाने से वह शुद्ध हो जाता है । इस प्रकार गन्धक पिघल कर पात्र में चला जायगा, उसे निकालकर लीजिए । एक बरतन में दूध भरकर उसके मुखपर कपड़ा बांधकर उसपर गन्धकका चूर्ण फैला दीजिए और फिर उसके ऊपर एक दूसरा बरतन उल्टा ढककर दोनोंका जोड़ कपड़ मिट्टीसे भलीभांति बन्द करके एक गढ़े में रख दीजिए और ऊपरके बरतन पर अग्नि जलाइये । Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ ९९ ] (१५३८) गन्धकशोधनम् (रसें. चि. म. अ. ५) गन्धकस्य च पादांशं दत्वा च टंङ्कणं पुनः । मर्दयेन्मातुलुङ्गा रुतैलेन भावयेत् ॥ चूर्ण पाषाणगं कृत्वा शनैर्गन्धं खरातपे ॥ गन्धकके चूर्ण में चौथाई भाग सुहागा मिलाकर बिजौरे नीबू के रस में घोटकर अरण्डके तेलकी एक भावना दीजिए (अरण्डका तेल मिलाकर तेज धूप में रख दीजिए । ) इस प्रकार गन्धक शुद्ध हो जाता है । (१५३९) गन्धकशोधनविधिः ( भा. प्र. । प्र. खं । यो. चि. म. । मिश्र . ) लौहपात्रे विनिक्षिप्य घृतमग्नौ प्रतापयेत् । तप्ते घृते तत्समानं क्षिपेद्गन्धकजं रजः ॥ agi गन्धकं दृष्ट्वा तदनुवस्त्रे विनिक्षिपेत् । यथावस्त्राद्विनिस्रुत्य दुग्धमध्येऽखिलं पतेत् ॥ एवं स गन्धकशुद्धः सर्वकर्मोचितो भवेत् ॥ | लौहपात्र में घृत गर्म करके उसमें समान भाग गन्धकका चूर्ण डाल दीजिए, और जब गन्धक पिघल जाय तो उसे एक कपड़े से दुग्धपूर्ण पात्र में छान लीजिए । और फिर निकालकर गर्म जससे धो डालिए । इस क्रिया गन्धक शुद्ध और समस्त कार्यों के लिए उपयुक्त हो जाता है । | ( १५४०) गन्धकसत्वम् (र. का. घे. । शू. ) गन्धकस्य पलं चूर्ण वृहतीफलजद्रवैः । आकाशवल्लीस्वरसैर्गोमूत्रेण च भावयेत् ॥ नीचे वाले षड्वर्षीयश्यामदासपुत्रमूत्रेण च भावयेत् । धोकर पीस | एकविंशतिवारांश्च प्रत्येकं शोषितं च तत् ॥ काचयां विनिक्षिप्य वह्निर्यामाष्टकं भवेत् । For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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