SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 109
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir - - vvvvvvvvvvvvvvvvvvvvAnuruvvvvvvvx रसप्रकरणम् ] द्वितीयो भागः। - [९५ ] इसमेसे प्रतिदिन ४. माशेकी मात्रानुसार ____ आधा पल (२॥ तोले ) शुद्ध गन्धकको पानमें डालकर निरन्तर सेवन करनेसे बल, वर्ण दूधके साथ सेवन करने और दूधभातका आहार और सौन्दर्यको वृद्धि होती है। करनेसे सात दिनमें खुजली, खाज, और विचर्चिका ( व्यवहारिक मात्रा-५-६ बूंद। नष्ट हो जाती है। (१५२४) गन्धकपिष्टिरसः (रसें. मं. । अ.३) (१५२८) गन्धकभेदाः ( यो. र. ) गन्धकेन समायुक्तां कृत्वा नूतस्प पिष्टिकाम। चतुर्धा गन्धकः प्रोक्तो रक्तः पीतः सितोऽसित । यकत्या नागरिक रक्तो हेमक्रियामूक्तः पीतश्चैव रसायने । ___ ताम्र पात्रमें समान भाग शुद्ध पारद और वणादि लेपने श्वेतः श्रेष्ठः कृष्णसुदुर्लभः ।। गन्धकको धोटकर कजली के समान बना लीजिए। गन्धक ४ प्रकारका होता है-(१) लाल (२) इसके सेवनसे पांचों प्रकारकी हिक्का ( हिचको) पीला (३) सफेद और (४) काला । नष्ट होती है। लाल गन्धक हेम क्रियामें, पीला, रसायनमें, (मात्रा १-२ रत्ती । शहद में मिलाकर चटाएं।) और सफेद व्रणादि पर लेप करनेके लिए प्रयुक्त (१३२५) गन्धकप्रयोगः (र.का.धे.।अमे.२९) | होता है, और काला गन्धक प्राप्त होना ही दुर्लभ है। गन्धकं गुडसंयुक्तं कर्षे भुक्त्वा प्रमेहजित । (१५२९) गन्धकयोगः जयन्त्या वा जयायुक्तं हन्ति मेहं महाद्भतम् ॥ गन्धकं गुडसंयुक्तं कर्ष भुक्त्वा पयः पिबेत् । शुद्ध गन्धक चूर्णको ( चार गुने ) गुडमें । विंशतिस्तेन नश्यन्ति प्रमेहाः पिटिका अपि । मिलाकर जया या जयन्तीके रसके साथ सेवन । समान भाग शुद्ध गन्धक और गुड़ मिलाकर करनेसे प्रमेह रोग नष्ट होता है। | नित्य प्रति दूधके साथ सेवन करनेसे २० प्रकारके नोट-१। तोलेकी ४ मात्रा बनानी चाहिये। प्रमेह और प्रमेह पिडिका नष्ट होती हैं । (१५२६) गन्धकप्रयोगः (र.का.धे.कु.४०) (१५३०) गन्धकयोगः (र. प्र. सु. । अ, ६) गन्धकं तिलतैलेन निष्कमात्रं सदा पिबेत् । संशुद्धगन्धकं चैव तैलेन सह पेषयेत् । क्षीरशाल्यनभोजी स्थात्पामा हन्ति महाद्रुतम् । अपामार्गक्षार तोयैस्तैलेन मरिचेन च ॥ दूधभातका आहार करते हुवे नित्य प्रति शुद्ध विलिप्य सकलं देहं तिष्ठेत्सूर्यातपेषु च । गन्धकके चूर्णको तिलके तैटमें मिलाकर पीनेसे | भोजयेत्तक्रभक्तश्च तृतीये प्रहरे खलु ।। पामा ( खुजली ) अत्यन्त शीघ्र नष्ट होती है। वह्निना स्वेदयेद्रात्रौ प्रातरुत्थाय मर्दयेत् । ( मात्रा ---- गन्धक २-४ रत्ती, तैल ६ माशे। महिषस्य पुरीषेण स्नायाच्छीतेन वारिणा॥ प्रातःसायं सेवन करें ।) गन्धतैलं ततोऽभ्यज्य पश्चात्कोष्णेन वारिणा। (१५२७) गन्धकप्रयोगः (र.का.धे.।कु.४०) स्नानं कुर्यादुषस्येवं कण्डूः पामा च नश्यति ॥ गन्धकाध पलं शुद्धं पीतं दुग्धेन सप्तशः । दृष्टप्रत्यय योगोऽयं कथितोऽत्र मया खलु । दुग्धानभोजिनो हन्ति कण्डूपामाविचर्चिकाः। नाशयेचिरकालोत्थाः कुष्ठपामाविचर्चिकाः॥ For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy